नाजी तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने 1933 में यहूदी सैनिकों को सेना से बाहर कर दिया था. इसके करीब 90 साल बाद जर्मन संसद ने रब्बियों को देश की सेना में पुरोहित के रूप में बहाल करने का बिल पास कर दिया है.
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जर्मन सेना बुंडसवेयर में यहूदी सैनिकों की धार्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रब्बियों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है. लगभग एक सदी के बाद यह व्यवस्था फिर से बनाई जा रही है. जर्मन संसद ने इस पर सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी है. अब तक सेना में सिर्फ ईसाई पुरोहितों की ही नियुक्ति हो रही थी. वो कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट हो सकते हैं.
बीते साल दिसंबर में रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबाउर ने इस बिल का प्रस्ताव रखा था. इस बिल का यहूदी गुटों के साथ ही सभी दलों के सांसदों ने स्वागत किया. रक्षा मंत्री ने जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग में कहा, "यह एकजुटता और स्वीकृति की खास निशानी है." इसके साथ ही रक्षा मंत्री ने कहा, "हमारे समाज में रोज रोज और बढ़ते यहूदी विरोध" के खिलाफ रब्बी अहम योगदान देंगे.
रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि वह सेना में इमामों और ईसाई ऑर्थोडॉक्स पुरोहितों को भी इसी तरह की भूमिकाओं के लिए नियुक्त करने के लिए बिल पेश करने की योजना बना रही हैं. ग्रीन पार्टी और वामपंथी दलों ने सरकार से आग्रह किया है कि वो इमामों की नियुक्ति का बिल पेश करने में देर ना करें.
पहले विश्वयुद्ध में हिस्सा लेने वाली जर्मन सेना में यहूदी सैनिक भी शामिल थे. 1933 में अडोल्फ हिटलर ने सत्ता संभाली थी और उस वक्त सेना में रब्बियों की मौजूदगी आम बात थी.
सेना में लोकतांत्रिक रवैया
वर्तमान में जर्मन सेना में 300 यहूदी सैनिक हैं. इनके अलावा 3000 मुस्लिम सैनिक और करीब 90 हजार ईसाई हैं. करीब 178,000 सैनिकों वाली सेना के करीब आधे लोंगों ने अपने धर्म के बारे में या तो जानकारी नहीं दी है या फिर उनका कहना है कि वो किसी धर्म में आस्था नहीं रखते.
जर्मन यहूदी केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष जोसेफ शुष्टर ने जर्मन संसद से कहा है कि रब्बी केवल यहूदी सैनिकों के लिए ही जरूरी नहीं हैं, "सैन्य रब्बी अपने सुझाव पूरे बुंडसवेयर के लिए देंगे." शुष्टर ने यह भी कहा कि यह कदम, "सैनिकों के लोकतांत्रिक रवैये के लिए भी बहुत सहयोगी होगा."
अक्टूबर 2019 में यहूदी त्योहार योम किप्पुर की छुट्टी के वक्त हाले के एक सिनोगॉग पर हमला हुआ था. शुष्टर ने इस घटना के बाद जर्मनी में यहूदी विरोधी भावना के चिंताजनक रूप से बढ़ने के प्रति चेतावनी दी थी. बीते कुछ सालों में जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ हमलों की संख्या बढ़ी है.
भारतीय सेना में भी पुरोहित
दुनिया की ज्यादातर सेनाओं में पुरोहितों की नियुक्ति होती है. इनका काम धार्मिक कामों में सेना के जवानों और अधिकारियों की मदद करना होता है. ये लोग सैनिकों के अंतिम संस्कार भी कराते हैं और सजायाफ्ता सैनिकों की धार्मिक जरूरतों का भी ध्यान रखते हैं. आमतौर पर इनका दर्जा जूनियर अधिकारी या फिर अधिकारी का होता है.
भारत की सेना में भी अलग अलग धर्मों के पुरोहितों की नियुक्ति की जाती है. पिछले साल ही करीब 150 पुरोहितों के लिए सेना में वैकेंसी निकली थी. ब्रिटेन, नीदरलैंड्स और दक्षिण अफ्रीका की सेना में दूसरे धर्मों के साथ ही हिंदू पुरोहित भी हैं.
निखिल रंजन (डीपीए,केएनए)
2019 में किस देश ने किया कितना सैन्य खर्च
साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 3.6 प्रतिशत तक बढ़ा है. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. सीपरी के रिसर्चर नान तिआन ने बताया, "शीत युद्ध के खत्म होने के बाद सैन्य खर्च का यह चरम है."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Lo Scalzo
अमेरिका
सभी देशों में पहला स्थान अमेरिका का है, जिसने अनुमानित 732 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.3 प्रतिशत ज्यादा है और पूरी दुनिया में हुए खर्च के 38 प्रतिशत के बराबर है. 2019 अमेरिका के सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार दूसरा साल रहा. इसके पहले, सात साल तक अमेरिका के सैन्य खर्च में गिरावट देखी गई थी.
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चीन
दूसरे स्थान पर है चीन जिसने अनुमानित 261 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.1 प्रतिशत ज्यादा था. पिछले 25 सालों में चीन का खर्च उसकी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ही बढ़ा है. उसका निवेश उसकी एक "विश्व स्तर की सेना" की महत्वाकांक्षा दर्शाता है. तिआन का कहना है, "चीन ने खुल कर कहा है कि वो दरअसल एक सैन्य महाशक्ति के रूप में अमेरिका के साथ प्रतियोगिता करना चाहता है."
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भारत
तीसरे स्थान पर भारत है. अनुमान है कि 2019 में भारत का सैन्य खर्च लगभग 71 अरब डॉलर रहा, जो 2018 में किए गए खर्च से 6.8 प्रतिशत ज्यादा था. विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के ही हैं.
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रूस
2019 में रूस ने अपना सैन्य खर्च 4.5 प्रतिशत बढ़ा कर 65 अरब डॉलर तक पहुंचा दिया. ये रूस की जीडीपी का 3.9 प्रतिशत है और सिपरी के रिसर्चर अलेक्सांद्रा कुईमोवा के अनुसार ये यूरोप के सबसे ऊंचे स्तरों में से है.
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सऊदी अरब
सऊदी अरब ने 61.9 अरब डॉलर खर्च किया. इन पांचों देशों का सैन्य खर्च पूरे विश्व में होने वाले खर्च के 60 प्रतिशत के बराबर है.
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जर्मनी
सिपरी के अनुसार, ध्यान देने लायक अन्य देशों में जर्मनी भी शामिल है, जिसने 2019 में अपना सैन्य खर्च 10 प्रतिशत बढ़ा कर 49.3 अरब डॉलर कर लिया. सबसे ज्यादा खर्च करने वाले 15 देशों में प्रतिशत के हिसाब से यह सबसे बड़ी वृद्धि है. रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, जर्मनी के सैन्य खर्च में वृद्धि की आंशिक वजह रूस से खतरे की अनुभूति हो सकती है.
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अब हो सकती है कटौती
सिपरी के रिसर्चर नान तिआन के अनुसार, "कोरोना वायरस महामारी और उसके आर्थिक असर की वजह से यह तस्वीर पलट भी सकती है. दुनिया एक वैश्विक मंदी की तरफ बढ़ रही है और तिआन का कहना है कि सरकारों को सैन्य खर्च को स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च की जरूरतों के सामने रख कर देखना होगा. तिआन कहते हैं, "हो सकता है एक साल से ले कर तीन साल तक खर्चों में कटौती हो, लेकिन उसके बाद के सालों में फिर से वृद्धि होगी."