जर्मन सेना बुंडेसवेयर ने 2016 में अपने सैनिकों को नए सैन्य जूते देने की योजना बनाई. लेकिन सैनिकों को इसके लिए अभी और लंबा इंतजार करना पड़ेगा.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जर्मन सैनिकों को नए सैन्य जूते पाने के लिए 2022 तक इंतजार करना होगा. वजह ये कि जहां इसका निर्माण हो रहा है, उसकी क्षमता सीमित है. सैनिकों को जरूरी जूते मुहैया कराने में नाकामी सैन्य उपकरणों में कमी के स्कैंडलों का हिस्सा है और वह नाटो के सदस्य जर्मनी की युद्ध तैयारी पर सवाल उठाता है.
बुंडेसवेयर ने 2016 के बाद से सभी मौसम में पहने जाने वाले सामान्य जूतों की जगह अपने सैनिकों को दो जोड़ी भारी सैन्य जूते और एक जोड़ी हल्के सैन्य जूते देने की योजना बनाई. बर्लिन के दैनिक टागेश्पीगेल ने संसदीय जांच में रक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब के आधार पर लिखा है, "यह 2020 तक पूरा होना था लेकिन अब इसकी समय सीमा 2022 के मध्य तक पहुंच गई है." रक्षा मंत्रालय के अनुसार, "सीमित मात्रा में उत्पादन की वजह से सभी सैनिकों को जूते देने का समय तय नहीं किया जा सका है."
जर्मनी में क्या कर रहे हैं चीनी सैनिक
अपनी तरह के पहले कार्यक्रम में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक जर्मन सेना बुंडेसवेयर के सैनिकों के साथ बवेरिया के एक शहर में अभ्यास कर रहे हैं. देखिए 'कंबाइंड एड 2019' की झलकियां.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
खास डिलीवरी
यह ट्रेनिंग प्रोग्राम सैन्य चिकित्साकर्मियों के लिए है. चीन से उनके विशेष बचाव वाहन मंगाए गए हैं. ये पानी के जहाज से हैम्बर्ग के पोर्ट पर पहुंचे फिर इन्हें दक्षिण जर्मनी के फेल्डकिर्शेन शहर में पहुंचाया गया. कुल 92 चीनी और 120 जर्मन सैनिक साथ कर रहे हैं अभ्यास. इनके अलावा भी 120 महिला और पुरुष सहायक भूमिकाओं में हैं.
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कोई आम बात नहीं
'आर्मर्ड मेडिकल इवैक्यूएशन व्हीकल' के अलाव कुछ और चीनी सप्लाई भी फेल्डकिर्शेन पहुंची है. ऐसा संयुक्त अभ्यास जर्मन-चीनी सैन्य सहयोग के लंबे इतिहास में अपनी तरह का पहला प्रोग्राम है. सन 2016 में जर्मनी के 38 सैन्य चिकित्साकर्मी ऐसे अभ्यास के लिए चीन गए थे.
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फोल्डिंग अस्पताल
इस अभ्यास में चुनौती थी कि किसी इलाके में संयुक्त राष्ट्र की तैनाती होने पर वहां फटाफट अस्पताल कैसे स्थापित किया जाए. इसके लिए चीनी अर्दलियों ने अपने साथ लाए मोबाइल अस्पताल के सामान से देखते ही देखते फोल्डिंग अस्पताल खड़ा कर दिया. इसे किसी तंबू की तरह खोला या समेटा जा सकता है.
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मेडिकल ट्रेनिंग
2016 की ट्रेनिंग में भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर ध्यान दिया गया था. चीन को इस क्षेत्र में काफी अनुभव है. 2008, 2010 और 2012 के दौरान चीन में बड़े भूकंप आए थे. इस दौरान हुई हर आपदा में करीब 40 से 50 हजार लोग घायल हुए. 2019 के अभ्यास में जोर ऐसे मेडिकल स्टाफ पर है जो सैन्य सहयोग के समय हरकत में आए.
तस्वीर: Bundeswehr / Dirk Bannert
अनुवादकों का सहारा
संयुक्त अभ्यास के दौरान चीनी और जर्मन भाषा से अंग्रेजी जैसी किसी व्यापक रूप से समझी जाने वाली भाषा अनुवाद करने वालों की मदद ली जा रही है. बुंडेसवेयर इसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने में बहुत उपोगी मानती है. भविष्य में किसी क्रॉस-बॉर्डर अभियान में इससे मदद मिलने की उम्मीद है.
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बीमारियों के खिलाफ भी साथ
बुंडेसवेयर का कहना है, "इंसानी आबादी को महामारियों और संक्रामक बीमारियों से बचाना एक अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी है." इस अभ्यास के लिए एक संयुक्त लोगो तक बनाया गया है. (मार्को म्यूलर/आरपी)
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संसदीय जांच के अनुसार एक लाख 83 हजार सैनिकों में से एक लाख 60 हजार सैनिकों को भारी सैन्य जूते की पहली जोड़ी मिल चुकी है. हालांकि, उन्हें दूसरी जोड़ी नहीं मिली है. सिर्फ 31 हजार सैनिकों को अभी तक हल्के सैन्य जूते मिले हैं. रक्षा मंत्रालय से सूचना मांगने वाली विपक्षी पार्टी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य मारी आग्नेस श्ट्राक सिम्मरमन ने कहा, "मुझे यह अजीब लगता है कि सैनिकों को नए जूते मिलने में आठ साल का वक्त लग रहा है. यह फैशन का सवाल नहीं बल्कि सुरक्षा की बात है. कल्पना कीजिए कि दमकलकर्मी चप्पल पहन कर आग कैसे बुझाएंगे."
सैनिकों ने सभी मौसम में पहनने वाले जूतों की गुणवत्ता और सुविधा को लेकर शिकायत की है. कुछ ने खुद से जूते खरीदे लेकिन यह नियमों के विरुद्ध है हालांकि कभी-कभी ऐसा करने की इजाजत दी जाती है. हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट में सशस्त्र सेना के कमिश्नर हंस पेटर बार्टेल्स ने नए जूते के लिए इंतजार का समय बढ़ने की आलोचना की है. उन्होंने कहा, "दुर्भाग्यवश उत्पादन की गति धीमी है. कई सैनिकों के अनुमान के अनुसार रंगरूटों को प्राथमिकता के आधार पर नए मॉडल के जूते दिए जा सकते हैं. जिन सैनिकों को जूते बदलने पर भी पुराने मॉडल के मिले हैं, वे खुद को दोयम दर्जे के सैनिकों की तरह महसूस कर रहे हैं."
थाईलैंड के जंगलों में अमेरिकी सेना की प्रशांत कमांड के सैनिक थाई सेना के साथ खास कंमाडो ट्रेनिंग करते हैं. देखिए, कितनी मुश्किल होती है ये ट्रेनिंग. इसकी कुछ तस्वीरें विचलित कर सकती हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
कोबरा गोल्ड कही जाने वाली इस ट्रेनिंग में 2019 में अमेरिका और थाईलैंड के साथ करीब 29 देशों की सेनाओं ने हिस्सा लिया. ट्रेनिंग के दौरान सैनिक जंगल में सांप, बिच्छू और मकड़ी समेत कई विषैले कीटों के साथ रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में सैनिक ने एक सांप को अपने दांतों से काटा. सांप का विष भरा दांत पहले ही निकाला जा चुका है. इस ट्रेनिंग का मकसद सैनिकों के मन से सांप के डर को धीरे धीरे भगाना है.
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सैनिक अभ्यास के दौरान सैनिकों के ट्रेन करने के लिए शिविर में 29 कोबरा लाए गए थे. हालांकि इन सभी की दांतों से विष निकाल लिया गया था.
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अभ्यास का लक्ष्य है विषम परिस्थितियों में जीवित रहना. जंगल में कंमाडो ऑपरेशन के दौरान सैनिकों को अक्सर आस पास मौजूद चीजों को खाना पड़ता है, फिर वह मकड़ी ही क्यों न हो.
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जंगल में जिंदा रहने के लिए सांप को भी काटकर खाना पड़ सकता है. सैनिक अक्सर सांप का खून भी पी जाते हैं.
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सांप का खून पीने के बाद उसका मांस खाने की बारी आती है. सैनिकों को एक के बाद एक बाइट लेनी पड़ती है.
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कैंप के दौरान सैनिकों को जंगल में मिलने वाले कई तरह के भोजन की जानकारी दी जाती है. यह तस्वीर मकड़ी के अंडों की है.
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इस तस्वीर में सैन्य अभ्यास में शामिल सैनिकों को सांप पकड़ने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
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पानी सिर्फ जलधाराओं में ही नहीं होता. कई पेड़ और पत्ते भी पानी स्टोर किए रहते हैं.
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इस तस्वीर में कमांडर सैनिकों को सिखा रहा है कि अलग अलग चीजों में मुट्ठी भर चावल कैसे पकाया जाए. 12 दिनों की ट्रेनिंग के दौरान हर सैनिक के पास थोड़ा बहुत चावल होता है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
यह सैनिक मिट्टी में मिलने वाले कीड़े को खा रहा है. युद्ध के दौरान जंगल में क्या मिलेगा, ये किसी को नहीं पता इसीलिए हर तरह का खाना खाने का अभ्यास होना चाहिए.