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समाज

जलवायु परिवर्तन की मार से जूझती एक धरोहर

११ नवम्बर २०१७

असम में ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप जलवायु परिवर्तन की मार का सबसे बड़ा शिकार है. साल दर साल बदलते मौसम के मिजाज के चलते यह द्वीप लगातार नदी में समा रहा है.

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तस्वीर: Reuters

अब माजुली द्वीप को बचाने की दिशा में ठोस पहल हो रही है. मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए इसी साल मार्च में इलाके में एक योजना शुरू की है. अब इसी महीने वहां एक कार्बनमुक्त पर्यटन परियोजना भी शुरू की गई है. इसके तहत सैलानियों को साइकिलों के जरिये द्वीप के विभिन्न गांवों में घुमाया जाएगा.

माजुली की विविधता

दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली अपने आप में गागर में सागर समेटे है. द्वीप के 23 गांवों में कोई 1.68 लाख लोग रहते हैं. यह 15वीं सदी से ही वैष्णव सत्रों या पूजास्थलों का प्रमुख केंद्र रहा है. अब भी यहां 30 ऐसे सत्र हैं. यह सत्र सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र तो हैं ही, छोटे-मोटे विवादों के निपटारे में भी अहम भूमिका निभाते हैं. द्वीप के तमाम गांव अपने-अपने इलाकों में स्थित सत्रों से जुड़े हैं और वहां तमाम धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं. माजुली रास उत्सव, टेराकोटा और नदी पर्यटन के लिए भी मशहूर है. लेकिन अपनी सांस्कृतक व जैविक विविधताओं वाला यह द्वीप मौसम के लगातार बदलते मिजाज की वजह से अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है.

हर साल आने वाली बाढ़ इसका कुछ हिस्सा अपने साथ बहा ले जाती है. वर्ष 1891 में जहां माजुली का कुल क्षेत्रफल 1250 वर्गकिलोमीटर था वहीं अब यह महज 515 वर्गकिलोमीटर रह गया है. बरसों से इसे यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल कराने के प्रयास होते रहे हैं. लेकिन अब तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है. गैर-सरकारी संगठन माजुली द्वीप सुरक्षा व विकास परिषद का कहना है कि इलाके में तटकटाव की स्थिति इतनी गंभीर है कि अगले 15-20 वर्षों में इस द्वीप के पूरी तरह ब्रह्मपुत्र में समाने का अंदेशा है. बीते एक दशक के दौरान जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग के चलते ब्रह्मपुत्र के बहाव की दिशा बदलने से तटकटाव की दर भी तेज हुई है.

तस्वीर: Imago/Hindustan Times

मौसम की मार

सेंटर फॉर एन्वायरनमेंट, सोशल एंड पालिसी रिसर्च (सीईएसपीआर) ने इंडियन नेटवर्क ऑन एथिक्स एंड क्लाइमेट चेंज के साथ मिल कर किये गये एक साझा अध्ययन में कहा है कि जलवायु में होने वाले बदलावों से असम में बाढ़ व कटाव की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है और उसकी वजह से राज्य में लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही है. इस अध्ययन में राज्य के जिन छह जिलों को शामिल किया गया था उनमें माजुली भी है. सीईएसपीआर की प्रवक्ता सविता देवी कहती हैं, "माजुली की महिलाएं पहले महज गृहिणी की भूमिका में थीं. लेकिन अब वह घरों से निकल कर बुनाई या मजदूरी करने पर मजबूर हैं ताकि परिवार की रोजी-रोटी चल सके." वह कहती हैं कि बाढ़ में खेतों के बह जाने या रेत की परत की वजह से उनके अनुपजाऊ होने के कारण उनलोगों के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है.

असम कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केके सहारिया कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन का आकलन महज खेती और अर्थव्यवस्था के विकास, धर्म, परंपराओं, जीवन व आजीविका, सामाजिक संक्रमण और ऐसे ही कुछ अन्य मुद्दों के संदर्भ में ही नहीं किया जाना चाहिए. स्थानीय लोगों की जीवन प्रणाली पर मंडराते खतरे और उनके आसपास की तेजी से बदलती दुनिया के साथ सामंजस्य के पैमाने पर भी इसका आकलन किया जाना चाहिए."

तस्वीर: Arte France & What's up Productions

पहल

अब बीते साल माजुली से चुनाव लड़ने वाले मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की जीत के बाद केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारों ने इस द्वीप की समस्याओं पर ध्यान देने की शुरुआत की है. सबसे पहले तो इसे जोरहाट से अलग कर अलग जिले का दर्जा दिया गया. उसके बाद इस साल मार्च में सरकार ने द्वीप पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने के लिए पर्यावरण सम्मत विकास की योजना शुरू की है. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने की योजना फ्रांस की विकास एजेंसी की सहायता से असम के जंगल और जैविक-विविधता के संरक्षण के लिए चलाई जा रही परियोजना का हिस्सा है. मुख्यमंत्री सोनोवाल कहते हैं, "इस योजना का मकसद माजुली में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगा कर वर्ष 2020 तक इसे देश का पहला कार्बनमुक्त जिला बनाना है." इस योजना को लागू करने के लिए जिला उपायुक्त की अगुवाई में एक समिति का गठन किया गया है.

सरकार ने इसी महीने माजुली में एक कार्बनमुक्त पर्यटन योजना भी शुरू की है. इस माजुली सस्टेनेबल टूरिज्म डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का मकसद इस द्वीप पर कार्बममुक्त पर्यटन को बढ़ावा देना है. इसके तहत यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को साइकिल से द्वीप के विभिन्न गावों में घूमने को लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. उनको यह साइकिलें किराए पर दी जाएंगी. पहले चरण में ऐसी नारंगी रंग की गियरवाली ऐसी 30 खास साइकिलें खरीदी गई हैं. इस योजना में स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ाने की भी योजना है. पर्यावरणविदों का कहना है कि महज इन योजनाओं को शुरू कर देने भर से काम नहीं चलेगा. इनको लंबे अरसे तक लगातार जमीनी स्तर पर लागू करने से ही इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे.

रिपोर्टः प्रभाकर

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