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जलवायु परिवर्तन के आगे बेबस योद्धा

९ अगस्त २०१३

लगातार पड़ते सूखों ने मसाई कबीले के जानवरों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है. विख्यात योद्धाओं को अब अगली जंग पर्यावरण के लिए लड़नी होगी, हथियार होंगे शिक्षा और आदतों में बदलाव.

तस्वीर: picture alliance / Kai-Uwe Wärner

अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत किलिमनजारो की तलहटी में बसे अम्बोसेली नेशनल पार्क के काफी भीतर एक बड़ी खुली जगह में स्त्री पुरुष एक शामियाने के नीचे जमा हुए हैं. यह मसाई लोग हैं जो आस पास के इलाके से यहां अपने सालाना उत्सव एंकांग उ न्कीरी के लिए आए हैं. यह गोश्त खाने का उत्सव है. बीज में मसाई बुजुर्ग ओले नितिमामा युवा योद्धाओं के बीच बैठे हैं. वह उन युवाओं को कतार में खड़ा करते हैं जिन्हें बलि के सांड को मारना है. यह ऐसा मौका होता है जब योद्धाओं को महिलाओं के सामने गोश्त खाने का अधिकार मिलता है. (आओ पर्यावरण पर्यावरण खेलें)

अब इस परंपरा को जारी रखना मुश्किल होता जा रहा है. पर्यावरण में बदलाव के कारण मवेशी खत्म हो रहे हैं और मसाई को अपनी परंपरा बचाए रखनी है तो उन्हें मांस की जगह कुछ और लाना होगा. मसाई देवता ने इस कबीले को दुनिया भर के मवेशियों का रक्षक बनाया है लेकिन बदलते मौसम ने उनका काम पहले के मुकाबले बेहद मुश्किल कर दिया है. ओले नितिमामा बताते हैं, "जितनी गायें मैंने बेची हैं उनकी तुलना में सूखे के कारण मरने वाली गायें बहुत ज्यादा हैं. इस मुश्किल समय में जहां तहां मरी गायों को पड़े देखना बहुत आम हो गया है."

तस्वीर: DW/A.Wasike

विनाशकारी बदलाव

बरसात छोटी और अनिश्चित होने लगी है. अगला सूखा आए उससे पहले घास को उगने का मौका नहीं मिल रहा जिसका मतलब है कि मवेशियों के पास खाने को कुछ नहीं. मसाई चरवाहे चारे की तलाश में हफ्तों तक जंगलों में भटकते रहते हैं. कइयों ने तो अपने मवेशियों को मार दिया है और पैतृक जमीन बेच दी है ताकि परिवार को खाना खिला सकें. ओले नितिमामा इन सबके लिए बदलते मौसम को जिम्मेदार ठहराते हैं. उनका कहना है कि यह न सिर्फ मसाई के लिए विनाशकारी है बल्कि धरती के लिए भी. नितिमामा ने कहा, "सूखे के कारण पानी की कमी हो गई है और इस वजह से गायें पर्याप्त दूध नहीं दे रही हैं. गायों के दूध, खून और मांस पर पलने वाले मसाई केवल अनाज खा कर जीने को मजबूर हैं और वह भी उन्हें खरीदना पड़ रहा है. पर्यावरण में बदलाव ने उनकी जिंदगी का पूरा तौर तरीका ही बदल दिया है.

तस्वीर: DW/A.Wasike

बदलते मौसम से जंग

बीट्रीस लूकेलेसिया मसाई वूमन फॉर एजुकेशन एंड एनवायरंमेंट बेटरमेंट की प्रोग्राम ऑफिसर हैं. उनका कहना है कि महिलाओं समेत यहां हर कोई पर्यावरण में बदलाव को महसूस कर रहा है. लूकेलेसिया ने मसाई महिलाओं के बारे में कहा, "उनके पति जानवरों के लिए अच्छे चारे और पानी की तलाश में जाते हैं. भोजन का एकमात्र जरिया जानवर हैं और वो पुरुषों के साथ चले जाते हैं." इसकी सीधी मार सबसे ज्यादा महिलाओं पर पड़ती है. संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल जानने वाले मसाई जमीन और जंगल के स्वाभाविक रक्षक समझे जाते हैं लेकिन बारिश की कमी ने उनका जीवन स्तर बहुत गिरा दिया है. लूकेलेसिया बताती हैं, "मसाई पहले अमीर कबीले होते थे, हरेक शख्स के पास पांच सौ गायें होती थीं. सूखे ने गायों की संख्या बहुत ज्यादा घटा दी है."

तस्वीर: DW/A.Wasike

लूकेलेसिया और उनके सहयोगी मसाई गांवों में काम करते हैं, वो उन लोगों को पर्यावरण में बदलाव के साथ खुद को ढालना सिखा रहे हैं. वो मसाई औरतों को बताते हैं कि गाय के गोबर को कैसे जैव ईंधन में बदला जा सकता है जिससे कि वो ईंधन के लिए लकड़ी पर निर्भर न रहें. तीन साल पहले केन्या ने नया संविधान बनाया. इसमें मसाई और जमीन, दोनों को बचाने की बात कही गई है. इसके लिए मसाई लोगों को कृषि और जल संरक्षण के तरीके भी सिखाए जा रहे हैं. मसाई योद्धा हैं और वो सदियों से अपने जंगल और जानवरों के लिए लड़ रहे हैं. इस बार उनकी लड़ाई बदलते मौसम से है.

रिपोर्टः एंड्र्यू वासिके/एनआर

संपादनः ओएसजे

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