एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बुजुर्गों के मुकाबले बच्चों को भारी गर्मी, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ेगा. नेपाल से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक नवयुवक नेताओं से इसे नजरअंदाज ना करने की अपील कर रहे हैं.
विज्ञापन
'सेव द चिल्ड्रन' एनजीओ की एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से बच्चों को औसतन सात गुना ज्यादा गर्मी की लहरों और करीब तीन गुना ज्यादा सूखे, बाढ़ और फसलों के बेकार होने का सामना करना पड़ सकता है.
मध्य और कम आय वाले देशों के बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. अफगानिस्तान में वयस्कों के मुकाबले बच्चों को 18 गुना ज्यादा गर्मी की लहरों का सामना करना पड़ सकता है. माली में संभव है कि बच्चों को 10 गुना ज्यादा फसलों के बेकार हो जाने का असर झेलना पड़े.
बच्चों पर ज्यादा असर
नेपाल की रहने वाली 15 वर्षीय अनुष्का कहती हैं, "लोग कष्ट में हैं, हमें इससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए...जलवायु परिवर्तन इस युग का सबसे बड़ा संकट है." अनुष्का ने पत्रकारों को बताया, "मैं जलवायु परिवर्तन के बारे में, अपने भविष्य के बारे में चिंतित हूं. हमारे लिए जीवित रहना लगभग नामुमकिन हो जाएगा."
एनजीओ ने अनुष्का का पूरा परिचय नहीं दिया. उसे सुरक्षित रखने के लिए संस्था ने उसके साथ साथ पत्रकारों से बात की. नया शोध सेव द चिल्ड्रन और बेल्जियम के व्रिये यूनिवर्सिटेट ब्रसल्स के जलवायु शोधकर्ताओं के बीच सहयोग का नतीजा है.
इसके लिए 1960 में पैदा हुए बच्चों के मुकाबले 2020 में पैदा हुए बच्चों के पूरे जीवन काल में चरम जलवायु घटनाओं के उनके जीवन पर असर का हिसाब लगाया गया. यह अध्ययन विज्ञान की पत्रिका "साइंस" में भी छपा है.
बदल सकती है स्थिति
इसमें कहा गया है कि वैश्विक तापमान में अनुमानित 2.6 से लेकर 3.1 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़त का "बच्चों पर अस्वीकार्य असर" होगा. सेव द चिल्ड्रन के मुख्य कार्यकारी इंगर अशिंग ने कहा, "जलवायु संकट सही मायनों में बाल अधिकारों का संकट है."
अशिंग ने आगे कहा, "हम इस स्थिति को पलट सकते हैं लेकिन उसके लिए हमें बच्चों की बात सुननी होगी और तुरंत काम शुरू कर देना होगा. अगर तापमान के बढ़ने को 1.5 डिग्री तक सीमित किया जा सके तो आने वाले समय में पैदा होने वाले बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए काफी ज्यादा उम्मीद बन सकती है."
सीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
जरूरी है महासागरों का स्वस्थ रहना
विश्व महासागर दिवस 2021 एक अवसर है पृथ्वी के महासागरों को बचाने का और यह सुनिश्चित करने का कि धरती की नाजुक व्यवस्था का स्वास्थ्य बना रहे. जानिए कैसे यह लक्ष्य 2030 तक हासिल किया जा सकता है.
तस्वीर: World Resources Institute
नीले ग्रह की रक्षा
इस साल विश्व महासागर दिवस का लक्ष्य है 2030 तक पृथ्वी के कम से कम 30 प्रतिशत हिस्से को बचा रखना. समुद्री जल जीवन धरती पर जीव जंतुओं की तुलना में दोगुनी गति से खत्म हो रहा है. उसको बचाने के साथ साथ महासागरों को उनके तापमान के बढ़ने से भी बचाना है. इससे मूंगे की चट्टानें भी खत्म हो रही हैं और पानी में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा भी घट रही है.
तस्वीर: Colourbox
धरती का सहारा
महासागर धरती की सतह के 70 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्से में फैले हुए हैं और धरती पर मौजूद ऑक्सीजन का कम से कम 50 प्रतिशत वही बनाते हैं. वो धरती की अधिकांश जैव-विविधता को पनाह देते हैं और पूरी दुनिया में एक अरब से भी ज्यादा लोगों के लिए प्रोटीन का स्त्रोत हैं. समुद्र पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं को समुद्र को बचाने के लिए आगा आना होगा.
तस्वीर: Imago-Images/Leemage/Novapix/P. Carril
धरती का सहारा
कार्बन उत्सर्जन से बचाव
मैंग्रोव, समुद्री शैवाल और कच्छ भूमि मिल कर "नीला कार्बन" इकोसिस्टम बनाते हैं जो जमीन पर जंगलों के मुकाबले चार गुना ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर पर्यावरण में उसकी मात्रा घटा सकते हैं. इसकी वजह से पेरिस में तय हुई जलवायु संधि के तहत 2050 तक उत्सर्जन घटाने के लक्ष्यों को हासिल करने में महासागरों की अत्यावश्यक भूमिका है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/USGS
नीली अर्थव्यवस्था को कायम रखना
लेकिन समुद्र जीविका का स्त्रोत तभी तक रह पाएंगे जब समुद्र-आधारित अर्थव्यवस्थाओं, या नीली अर्थव्यवस्थाओं, का ठीक से प्रबंधन हो पाएगा. जैसे मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों को जिंदा रखने से वैश्विक दक्षिण की तटीय अर्थव्यवस्थाएं जीविका भी बचाए रख सकती हैं और जैव-विविधता और संस्कृति को भी. अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल कर समुद्र को तापमान में बढ़ोतरी से भी बचाने का लक्ष्य है.
तस्वीर: picture-alliance/Demotix
'ओवरफिशिंग' पर रोक
महासागरों को बचाए रखने के लिए गैर कानूनी तरीके से मछलियां पकड़ने के व्यापार और 'ओवेरफिशिंग' यानी जरूरत से ज्यादा मछलियां पकड़ने को बंद करना होगा. चीनी जहाज लातिन अमेरिका में यह करने के लिए बदनाम हैं. इसके अलावा ग्रीनपीस ने भूमध्यसागर में ब्लूफिन टूना की आबादी पर मंडरा रहे खतरे के बारे में कई बार चेताया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Solaro
प्लास्टिक कचरा
प्रशांत महासागर का ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक का एक विशालकाय द्वीप बन चुका है. आकार में ये अब अमेरिकी राज्य टेक्सास का दुगुना है. कहते हैं इसमें प्लास्टिक के इस तरह के 1,000 अरब टुकड़े हैं और 80,000 टन कचरा है. प्लास्टिक कचरे को समुद्र में जाने से रोकना एक बड़ा लक्ष्य है.
तस्वीर: Greenpeace/Justin Hofman
ऊर्जा के स्त्रोत
ओशन एनर्जी यूरोप संस्था के मुताबिक लहरों की ऊर्जा से अगर बिजली बनाई जाए तो उससे यूरोप की 10 प्रतिशत बिजली जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. यूरोप के सागरों में पूरे यूरोप की ज्वारीय ऊर्जा का 50 प्रतिशत और लहरों की ऊर्जा का 35 प्रतिशत का उत्पादन होता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Bielmann
मानवता का समुद्र से संबंध
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने एक बार कहा था कि "हम सभी की नसों के खून में ठीक उतना प्रतिशत नमक है जितना समुद्र में है." उन्होंने यह भी कहा था, "हम समुद्र से बंधे हुए हैं और जब हम उसकी तरफ वापस लौटेंगे तो हम अपनी शुरुआत के तरफ ही लौट जाएंगे." - स्टुअर्ट ब्राउन