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जलवायु सम्मेलन से उम्मीद खोना जल्दबाजी

१ दिसम्बर २०१५

सभी राज्य व सरकार प्रमुख जलवायु परिवर्तन को रोकना चाहते हैं. तो क्या पेरिस सम्मेलन के अंत में क्या ऐसा समझौता संभव है जो पर्यावरण की रक्षा कर पाएगा? डॉयचे वेले के येंस थुराऊ का कहना है कि यह अभी तक पक्का नहीं है.

Frankreich Paris Klimakonferenz Plakate
तस्वीर: Reuters/B. Tessier

सबसे पहले एक अच्छी खबर. पेरिस के जलवायु सम्मेलन में भाग लेने वाले 150 से ज्यादा राज्य और सरकार प्रमुखों में किसी को भी अब ये संदेह नहीं है कि ग्रीनहाउस प्रभाव होता है और अब उसे खिलाफ कुछ करने की जरूरत है. यह बहुत स्वाभाविक सा लगता है लेकिन है नहीं. लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में बहुत से राजनीतिज्ञों ने इंकार और अज्ञान का परिचय दिया है. लेकिन अब लगता है कि वह वक्त बीत गया.

हां, सभी समझौता चाहते हैं और तूफान और सूखे से प्रभावित दक्षिण के देशों की अरबों खर्च कर मदद करना चाहते हैं ताकि वे बांध बनाएं, फसल उगाने का समय बदलें और ऊर्जा के लिए कोयले और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल न करें. इतना तो ठीक ठाक है. लेकिन इस समस्या को जड़ से सुलझाना वाला समझौता अभी भी दूर है.

येंस थुराऊ

छोटे बारीक अंतर

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा, रूस के पुतिन, चीन के शी जिन पिंग और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के भाषणों में उनके उत्साह में अंतर साफ दिख रहा था, जिसने बहुत से जलवायु सम्मेलनों को निराशाजनक अनुभव बनाया है. हालांकि जर्मन चांसलर ने दो डिग्री से कम का लक्ष्य रखकर तारीफ का काम किया है, यह जानते हुए कि सदस्य देशों द्वारा पेश राष्ट्रीय लक्ष्यों का मतलब 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगा. सरकार प्रमुखों ने इसे स्वीकार कर लिया है लेकिन वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि 2 डिग्री से ज्यादा के नतीजों का संभावना मुश्किल होगा.

और बराक ओबामा ने स्वीकार किया कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है. और उन्होंने बहुत ज्यादा धन देने का भी वादा किया ताकि गरीब देश अपने नागरिकों के लिए जलवायु बीमा करवा सकें. कितना धन, इसका फैसला ओबामा ने भविष्य पर छोड़ दिया और इसके साथ सम्मेलन की शुरुआत में ही उसे गति देने का मौका गंवा दिया.

किसकी जिम्मेदारी

चीन भी पर्यावरण समझौते का समर्थन कर रहा है. लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भाषण पहले के सम्मेलनों में चीनी नेताओं के भाषण जैसा ही था. ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए औद्योगिक देश दोषी हैं, जिसमें चीन औपचारिक रूप से शामिल नहीं है, हालांकि वह सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैस पैदा करने वाला देश है. बीजिंग के मुताबिक पर्यावरण की सुरक्षा का दायित्व भविष्य में हर एक देश का होना चाहिए. जलवायु सम्मेलन का यह मकसद नहीं था जब उसने सदस्य देशों के लक्ष्यों को एक संधि में शामिल करने का फैसला किया था.

अभी भी 14 दिनों का समय है कि इन विरोधाभासी भाषणों को मिलाकर एक सर्वमान्य समझौता तैयार करने के लिए, जो पर्यावरण की सचमुच सेवा करे. हालात पहले जैसे ही लगते हैं. कोई रोक रहा है तो कोई बच रहा है, कुछ यूरोपीय देश आगे बढ़ना चाहते हैं और गरीब देश धन चाहते हैं. लेकिन पेरिस सम्मेलन के शुरू में ही हिम्मत खोना जल्दबाजी होगी.

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