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जलाना या दफनाना - क्या हैं शवों के बारे में दिशा निर्देश?

६ अप्रैल २०२०

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अभी तक कोविड-19 की वजह से मरने वालों के शरीर के संपर्क में आने से किसी के भी संक्रमित होने का कोई भी प्रमाण नहीं मिला है. फिर भी शवों को जलाने या दफनाने को लेकर असमंजस क्यों है?

Spanien Madrid Coronavirus Beerdigung
तस्वीर: Reuters/J. Medina

आम तौर पर मृत्यु को व्यथाओं का अंत माना जाता है और कहा जाता है कि जिसकी मृत्यु हो गई वह एक बेहतर दुनिया में चला गया. इसलिए जाने वाले की मुकम्मल विदाई की जाती है, जिस भी धार्मिक पद्धति में उसका विश्वास था उस पद्धति से. 

पूरे विश्व में कोविड-19 से मौतों का आंकड़ा अब 70,000 के पास पहुंच गया है. भारत में भी 100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और यह आंकड़ा रोज बढ़ रहा है क्योंकि लगभग पूरी दुनिया अभी भी इस महामारी की चपेट में है. महामारी से जुड़े हालात के प्रबंधन में शामिल लोग जिन सवालों से रोज जूझते हैं उनमें एक सवाल यह भी है कि मृतकों के शरीरों के साथ कैसा व्यवहार करना है. क्या मृत्यु के बाद भी वायरस शरीर में रह सकता है और अगर हां तो ऐसे में शव को अंतिम विदाई के लिए कैसे तैयार किया जाए और फिर विदाई भी किस तरह से की जाए. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस सन्दर्भ में 24 मार्च को अंतरिम दिशा निर्देश जारी किए थे. संगठन का कहना है कि अभी तक कोविड-19 की वजह से मरने वालों के शरीर के संपर्क में आने से किसी के भी संक्रमित होने का प्रमाण नहीं मिला है. हां, शवों के प्रबंधन में सीधे रूप से शामिल होने वालों को अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक हाइजीन और सुरक्षा किट इस्तेमाल करने चाहिए. 

तस्वीर: AFP/E. Ortiz

क्या कहता है विश्व स्वास्थ्य संगठन

संगठन कहता है कि मृतक की मर्यादा, उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा और उनके परिवार की इच्छाओं का सम्मान किया जाना चाहिए. संगठन के अनुसार यह एक मिथक है कि संक्रामक बीमारियों से मरने वालों के शवों को जलाना ही चाहिए और कोविड-19 से मरने वालों को जलाया भी जा सकता है या और दफनाया भी जा सकता है. 

भारत सरकार के दिशा निर्देश 

भारत में केंद्र सरकार के दिशा निर्देश भी मुख्य रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन से ही प्रेरित हैं. शवों को जलाने और दफनाने दोनों की इजाजत है. सिर्फ फेफड़ों के संक्रमित होने की संभावना की तरफ ध्यान दिलाया गया है और उसकी वजह से ऑटोप्सी या तो ना ही करने या करते समय सावधानी बरतने की सलाह दी गई है. लेकिन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के दिशा निर्देशों में में शवों को दफनाने पर प्रतिबंध तो नहीं है लेकिन जलाने को उपयुक्त बताया गया है. शायद इस वजह से राज्यों में इसको लेकर भ्रांति है.

मुंबई में कुछ ही दिनों पहले नगरपालिका ने एक अधिसूचना जारी कर शवों को जलाना अनिवार्य कर दिया, भले ही मृतक की किसी भी धर्म में मान्यता हो. जब जनता में इसे लेकर आक्रोश फैला तो अधिसूचना को वापस ले किया गया. राज्य सरकार का कहना है कि राज्य में कोविड-19 से मरने वालों को दफनाने की भी इजाजत है. लेकिन इसका पूरी तरह से पालन नहीं हो पा रहा है.

तस्वीर: Colourbox

पिछले सप्ताह मुंबई में ही एक 65 वर्षीय मुस्लिम की कोविड-19 से मृत्यु हो जाने के बाद उसके परिवार वाले चाह करके भी उसे दफना नहीं सके. कम से कम तीन कब्रिस्तानों ने उसके शव को दफनाने से मना कर दिया, जिसके बाद  परिवार के सदस्यों को मजबूरी में शव जलाना ही पड़ा. 

शव को बैग में डालें या नहीं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि अंतिम संस्कार से पहले शव के सभी छिद्रों को बंद कर देना चाहिए ताकि शरीर के अंदर का किसी भी किस्म का फ्लुइड बाहर ना गिरे. इसके बाद शव को एक साफ कपडे में लपेट कर श्मशान तक पहुंचा जाना चाहिए. संगठन ने साफ कहा है कि शवों को बैग या पैकेट में डालने की आवश्यकता नहीं है. 

लेकिन इसके विपरीत भारत सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार शवों को रिसाव-मुक्त प्लास्टिक के बॉडी बैग में डालना अनिवार्य है. उसके बाद बैग को हाइपोक्लोराइट से साफ करना चाहिए और फिर कपडे में लपेटना चाहिए. अंतिम संस्कार से पहले अगर मृतक के रिश्तेदार चेहरा देखना चाहें तो सिर्फ चेहरे पर से जिप खोल कर उन्हें चेहरा दिखाया  जा सकता है. प्रार्थना करने की और शव पर पवित्र जल छिड़कने की इजाजत है. छूने, चूमने, गले लगाने या नहलाने पर पाबंदी है. ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने की भी इजाजत नहीं है और कम से कम लोगों को अंतिम संस्कार के समय मौजूद रहने के लिए कहा गया है. 

हिन्दू पद्धति से शव को जलाने के बाद जो राख बचती है उस से किसी भी तरह का जोखिम नहीं है और उसे श्मशान गृह से लिया जा सकता है. जल में प्रवाहित करने के बारे में विशेष रूप से कुछ नहीं बताया गया है.

तस्वीर: AFP/A. Singh

मृतक के सामान का क्या करें?

मृतक के कपड़ों, सामान इत्यादि के बारे में केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों में कुछ विशेष नहीं है. लेकिन स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मृतक के सामान को जलाने या नष्ट करने की जरूरत नहीं है. उन्हें दस्ताने पहन कर डिटर्जेंट से साफ करना चाहिए और फिर 70 प्रतिशत एथेनॉल या 0.1 प्रतिशत ब्लीच वाले सोल्यूशन से डिसइंफेक्ट करना चाहिए. मृतक के कपड़ों को मशीन में 60 से 90 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में और डिटर्जेंट में धोना चाहिए.

अगर मशीन उपलब्ध नहीं हो तो टब में भी इन्हें धोया जा सकता है. लेकिन एक लम्बे डंडे का इस्तेमाल करके और इस बात का भी ध्यान रखते हुए कि पानी बाहर ना छलके. कपड़ों को फिर 0.05 प्रतिशत क्लोरीन में लगभग आधे घंटे तक डुबोएं, फिर साफ पानी से धोएं और अच्छी तरह से धूप में सुखा लें.

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