केंद्र सरकार द्वारा जलियांवाला बाग स्मारक को दिए गए नए स्वरूप की आलोचना हो रही है. आरोप लग रहे हैं कि रंग-बिरंगी रोशनी और तेज संगीत के माहौल से शहीदों की मर्यादा का अपमान हो रहा है.
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जलियांवाला बाग स्मारक के नए स्वरूप का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त को किया था. राजनीतिक दलों के नेताओं और कई इतिहासकारों ने स्मारक के नए स्वरूप पर ऐतराज जताया है.
अमृतसर के इस ऐतिहासिक स्थल पर कई बदलाव लाए गए हैं. मुख्य स्मारक की मरम्मत की गई है, शहीदी कुएं का जीर्णोद्धार किया गया है, नए चित्र और मूर्तियां लगाई गई हैं और ऑडियो-विजुअल और थ्रीडी तकनीक के जरिए नई गैलरियां बनाई गई हैं.
पुराना स्वरूप गायब
इसके अलावा लिली के फूलों का एक तालाब बनाया गया है और एक लाइट एंड साउंड शो भी शुरू किया गया है. आपत्ति मुख्य रूप से लाइट एंड साउंड शो और बाग तक ले जाने वाले ऐतिहासिक संकरे रास्ते में किए गए परिवर्तन को लेकर व्यक्त की जा रही है.
पहले, इस संकरे रास्ते के दोनों सिर्फ साधारण और कोरी दीवारें थीं. अब इन दीवारों पर टेक्सचर पेंट लगा दिया गया है और इन पर लोगों की आकृतियां उकेर दी गई हैं. इन आकृतियों को हंसते, मुस्कुराते हुए चेहरे भी दिए गए हैं.
डेनिश-ब्रिटिश इतिहासकार किम वैग्नर का कहना है कि बाग तक जाने वाले रास्ते का स्वरूप इस कदर बदल दिया गया है कि अब वो बिलकुल भी वैसा नहीं दिखता जैसा वो 13 अप्रैल 1919 की उस शाम को था जब अंग्रेज जनरल डायर ने वहां इकट्ठा हए निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवा दीं थी.
विरासत का सवाल
ब्रिटेन की संसद में भारतीय मूल की सांसद प्रीत कौर गिल ने भी स्मारक के इस नए रूप की आलोचना की है और इसे "हमारे इतिहास को मिटाने" वाला कदम बताया है.
भारतीय इतिहासकार एस इरफान हबीब ने इसे ऐतिहासिक स्मारकों का 'कॉर्पोरेटाइजेशन' बताया है और कहा है कि ऐसा करने से स्मारकों की विरासत का मूल्य नष्ट हो जाता है.
हालांकि बीजेपी से राज्य सभा के सदस्य श्वैत मलिक का मानना है कि दीवारों पर बनाई गई ये आकृतियां वहां आने वालों से उनका परिचय कराएंगी जो हत्याकांड के दिन बाग में मौजूद थे और मारे गए थे. मलिक जलियांवाला बाग ट्रस्ट के ट्रस्टियों में से एक हैं.
उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि पहले लोग बिना इस तंग गली का इतिहास जाने यहां आया करते थे, लेकिन अब जब वो यहां चलेंगे तो इतिहास के साथ साथ चलेंगे.
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शहीदों का अपमान
बाग में शुरू किए गए नए लाइट एंड साउंड शो की भी काफी आलोचना हो रही है. सोशल मीडिया पर टिप्पणियों में कहा जा रहा है कि एक हत्याकांड के स्मारक को लगभग एक एयरपोर्ट या होटल की लॉबी या एक मनोरंजन पार्क जैसा बना दिया गया है.
कई राजनीतिक दलों ने भी अपना विरोध जताया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट में इसे शहीदों का अपमान बताया.
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि स्मारक के जीर्णोद्धार का पूरा काम संस्कृति मंत्रालय ने करवाया. इस परियोजना की देख रेख के लिए एक सलाहकार समिति बनाई गई थी.
समिति में संस्कृति मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय, पुरातत्व विभाग और निर्माण क्षेत्र की सरकारी कंपनी एनबीसीसी के अधिकारी शामिल थे. परियोजना के लिए 20 करोड़ का टेंडर निकाला गया और गुजरात की एक कंपनी वामा कम्यूनिकेशन्स को यह काम सौंपा गया.
जर्मनी के संरक्षित स्मारक
जर्मनी में स्मारकों को संरक्षित करने की लंबी परंपरा है. स्मारकों में सिर्फ इमारतें ही नहीं औद्योगिक संयंत्र, बाग बगीचे, मोहल्ले और लैंडस्केप भी शामिल हैं.
तस्वीर: imago/Hans Blossey
विल्हेम पैलेस
विल्हेम पैलेस कारों के शहर श्टुटगार्ट के सिटी सेंटर में है. यहां वुर्टेमबर्ग के आखिरी राजा विल्हेम द्वितीय रहा करते थे. ये महल द्वितीय विश्वयुद्ध में पूरी तरह नष्ट हो गया था. इसे 1961 से 1965 के बीच में आधुनिक तरीके से बनाया गया है.
तस्वीर: imago/A. Hettrich
ब्रेमेन सिटी हॉल
सिटी हॉल में शहर के मेयर और सीनेट के अध्यक्ष का दफ्तर है. ये यूरोप में गोथिक कला के सबसे प्रमुख नमूनों में शामिल है और 1973 से स्मारक संरक्षण कानून के तहत संरक्षित है. 2004 में इस इमारत को यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/K. Nowottnick
शिकार महल
झोपाऊ शहर का यह महल शिकार महल के नाम से जाना जाता है. सैक्सनी के सामंत ने इसे 1547 में बनवाया था. 1994 से विल्डेक महल सरकारी नियंत्रण में है और तब से इसका क्रमिक रूप से जीर्णोद्धार किया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Exss
क्वेडलिनबुर्ग
क्वेडलिनबुर्ग के फाखवैर्कहाउस दुनिया भर में मशहूर हैं. 910 ईसवी में इसे शहर का दर्जा मिला था और यहां अलग अलग काल के लकड़ी के ढांचों वाले मकानों को एक साथ देखा जा सकता है. इसी खासियत की वजह से यह शहर 1994 से यूनेस्को का धरोहर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Wolf
पाउलुस चर्च फ्रैंकफर्ट
फ्रैंकफर्ट का पाउल चर्च शहर का ऐतिहासिक महत्व वाला चर्च है. यहां 1848 में फ्रैंकफर्ट संसद का मुख्यालय था जो जर्मनी की पहली स्वतंत्र रूप से निर्वाचित विधायिकी थी. यहां देश का पहला संविधान बना लेकिन वह लागू नहीं हो पाया.
तस्वीर: picture-alliance/J. Haas
आखेन डोम
आखेन का कैथीड्रल यूरोप के सबसे पुराने रोमन कैथीड्रलों में एक है. इसे सम्राट शार्लेमान्ये के आदेश पर बनाया गया था. 814 ईसवी में उन्हें यहीं दफनाया गया. इस गिरजे में 936 से 1531 तक 31 राजाओं और 12 रानियों का राज्याभिषेक हुआ.
तस्वीर: picture alliance/dpa/D. Kalker
कम्युनिस्ट नेताओं का मोहल्ला
जंगल में बने इस मोहल्ले वांडलित्स में पूर्वी जर्मनी के शीर्ष कम्युनिस्ट नेता रहते हैं. मोहल्ले में 23 मकान थे जिनमें पोलित ब्यूरो के सदस्य रहा करते थे. जीडीआर के विघटन के बाद यहां संरक्षित मकानों में रिहैब क्लिनिक काम कर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Settnik
वुर्त्सबुर्ग रेसिडेंस
दक्षिणी शहर वुर्त्सबुर्ग का ये महल वियना में शोएनब्रुन और वर्साय के महलों की कतार में बना बारोक महल है. 1719 से 1744 तक बने इस महल को यूनेस्को ने 1981 में विश्व घरोहर का दर्जा दिया. 1987 में जीर्णोद्धार के बाद से इसका इस्तेमाल म्यूजियम के रूप में होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Kalker
जर्मन संसद का भाषण मंच
द्वितीय विश्व युद्ध में हार और जर्मन विभाजन के बाद पश्चिम जर्मनी की संसद का मुख्यालय बॉन में था. यहां छोटे से अधिवेशन कक्ष में संसदीय बहस के लिए सांसद इस डेस्क का इस्तेमाल करते थे. बाद में बॉन में नया संसद भवन बना और ये डेस्क संरक्षित धरोहरों में शामिल हो गया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/D. Kalker
बॉन का चांसलर बंगला
बॉन में चांसलर बंगले के किचन में खाने की मेज. चांसलर हेल्मुट कोल राजधानी में होने पर इस बंगले में रहा करते थे. राजधानी के बॉन से बर्लिन जाने के बाद ये बंगला भी किसी काम का नहीं रहा और इसे संरक्षित स्मारक बनाने का फैसला लिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बोर्जिस स्क्वैयर
रुअर इलाके में बसे डॉर्टमुंड शहर का एक चौराहा. जर्मनी के औद्योगिक नगर अपने मकानों, चौराहों और सिटी प्लानिंग के लिए जाने जाते हैं. बोर्जिस स्क्वैयर पर बनी ऐतिहासिक इमारतें भी अब संरक्षित स्मारक की क्षेणी में आती है और उन्हें मनमाने तरीके से बदला नहीं जा सकता.