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जल्दी नहीं पिघलेंगें हिमालय के ग्लेशियर

१८ जनवरी २०१०

विश्व के लिए अच्छी ख़बर लेकिन आईपीसीसी के लिए बुरी. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईपीसीसी के कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर पिघल जाएंगे. यह दावा ग़लत निकला.

तस्वीर: picture-alliance / dpa

भारत के डॉ राजेंद्र पचौरी की अगुवाई में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित आईपीसीसी को अब अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. आईपीसीसी की चेतावनी न्यू सांइंटिस्ट नाम की पत्रिका के एक लेख पर आधारित थी जो 1999 में प्रकाशित की गई थी. 2007 में जारी की गई उस रिपोर्ट में आईपीसीसी ने कहा था कि हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक पूरी तरह पिघल जाएंगे.

इस भविष्यवाणी के बाद पानी के अभाव और जलवायु में भारी बदलाव की अटकलों ने एक नया पैमाना ले लिया और अंतरराष्ट्रीय बैठकों का केंद्रीय मुद्दा बन गई.

ग़लत निकला दावातस्वीर: picture-alliance / OKAPIA KG

लापरवाही इस हद की थी कि न्यू साइंटिस्ट की रिपोर्ट दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ सैयद हस्नैन से टेलीफ़ोन पर बातचीत पर आधारित थी. डॉ हस्नैन ने अब भी इस बात को मानते हैं कि यह महज़ एक विचार था और इस पर किसी भी तरह का संशोधन नहीं हुआ था.

सच्चाई सामने आने के बाद ग्लेशियर वैज्ञानिकों ने आईपीपीसी और उसके दावे की निंदा की है और कहा है कि हिमालय के कई ग्लेशियर औसतन 300 मीटर मोटे हैं और कई किलोमीटर लंबे हैं. इन्हें पूरी तरह पिघलने में 60 साल तक लग सकते हैं. डॉ पचौरी ने पहले दूसरे धड़े के वैज्ञानिकों के दावों को 'जादू-टोना विज्ञान' कहते हुए खारिज किया था. फ़िलहाल आईपीसीसी ने इस मामले पर अब तक कोई बयान नहीं दिया है. सोचने वाली बात यह है कि आईपीसीसी का गठन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूनेप के तहत जलवायु परिवर्तन संशोधन में सबसे उम्दा सलाह हासिल करने के लिए किया गया था.

रिपोर्टः एजेंसियां/ एम गोपालकृष्णन

संपादनः ओ सिंह

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