उगते सूरज की धरती के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जहां बीजेपी विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किए बिना दलबदल के सहारे ही दो-दो बार सत्ता का स्वाद चख चुकी है.
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अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ही सत्ता में है. अब 11 अप्रैल को राज्य की दो लोकसभा सीटों के अलावा विधानसभा की 60 सीटों के लिए मतदान होना है. इन चुनावों में पार्टी पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में वापसी के लिए मैदान में है. यानी उसके सामने पहली बार अपने बूते बहुमत हासिल करने की कड़ी चुनौती है.
राजनीतिक अस्थिरता
बीजेपी पहली बार बिना बहुमत के ही वर्ष 2003 में यहां सत्ता में आई थी. उसके बाद वर्ष 2016 से भी वह बिना बहुमत के सरकार में है. वर्ष 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग, जो तब एक क्षेत्रीय पार्टी के इकलौते विधायक थे, उन्होंने सत्तारुढ़ कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों को दलबदल के लिए तैयार कर लिया. अपांग बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन बीजेपी की यह सरकार महज आठ महीने ही चल सकी. उसके बाद अपांग समेत ज्यादातर विधायक कांग्रेस में लौट आए थे. वर्ष 2004 के विधानसभा में अपांग की अगुवाई में कांग्रेस को बहुमत मिला था. उस साल कांग्रेस को 34 सीटें मिली थीं और बीजेपी को नौ.
राज्य विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल तो बेहद उलटफेर वाला रहा है. पिछली बार कांग्रेस ने भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. लेकिन पार्टी के 43 विधायकों ने रातोंरात पाला बदल कर पीपीए का दामन थाम लिया था जिसका कुछ दिनों बाद ही बीजेपी में विलय हो गया था. नबाम टुकी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में जीत कर सरकार बनाने वाली कांग्रेस सरकार को नेतृत्व के मुद्दे पर उभरे विवाद के बाद जनवरी 2016 में बर्खास्त कर दिया गया था. एक महीने के राष्ट्रपति शासन के बाद कालिखो पुल को बागी कांग्रेस सरकार का मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की वजह से राज्य में कांग्रेस की सरकार बहाल हो गई. उसी दौरान पुल की रहस्यमयी हालात में मौत हो गई. उसके बाद नबाम टुकी ने पेमा खांडू के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी. कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बनने के बाद खांडू पहले पीपुल्स पार्टी आफ अरुणाचल नामक एक क्षेत्रीय पार्टी में शामिल हुए और दिसंबर, 2016 में बीजेपी में. अब यहां बीजेपी के 48 विधायक हैं और विपक्षी कांग्रेस व नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के पांच-पांच.
टिकटों के बंटवारे के मुद्दे पर पार्टी को अबकी यहां बगावत से भी जूझना पड़ रहा है. हाल में पार्टी के दो मंत्रियों समेत 18 नेता कांग्रेस और एनपीपी में शामिल हो गए हैं. बीजेपी नेतृत्व ने कई मंत्रियों के टिकट काट दिए हैं. इस विवाद से ठीक से नहीं निपटने की वजह से ही गृह मंत्री कुमार वाई को अबकी टिकट नहीं दिया गया है. हालांकि वाई का दावा है कि मुख्यमंत्री खांडू को डर था कि कहीं चुनावों के बाद उनकी कुर्सी हाथ से नहीं निकल जाए.
2019 के चुनावों में ये सब पहली बार हो रहा है
2019 के चुनावों में ये सब पहली बार हो रहा है
भारतीय चुनाव आयोग अब तक 16 आम चुनाव करवा चुका है. लेकिन आयोग चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष रखने के लिए समय-समय पर कई चीजें आजमाता रहा है. लोकसभा चुनाव 2019 में आयोग ये नए कदम उठाने जा रहा है.
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उम्मीदवारों की तस्वीरें
देश के कुल वोटरों में से 30 करोड़ निरक्षर हैं. आयोग ने इनका ध्यान रखते हुए अब राजनीतिक दल के चिन्हों के साथ वोटिंग मशीन में उम्मीदवारों की तस्वीर लगाने का फीचर भी जोड़ा है. साथ ही धांधली और वोटिंग मशीन में किसी भी गड़बड़ी से बचने के लिए मतदाता को वोट डालने के बाद एक चिट दी जाएगी. इसके अलावा वोटिंग मशीन ले जाने वाले वाहनों की निगरानी के लिए उन्हें जीपीएस से जोड़ा गया है.
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आरोपों की स्वघोषणा
मौजूदा संसद के करीब 186 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इसमें से 112 ऐसे हैं जिन पर हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोप लगे हैं. इस बार कानूनी मामलों में फंसे उम्मीदवार को कम से कम तीन अखबार या टीवी विज्ञापनों के जरिए अपने ऊपर चल रहे मामलों के बारे में आम लोगों को बताना होगा. ये विवरण उस इलाके के लोगों को देना होगा, जहां से उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
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दागी नेताओं के रिकॉर्ड
भारतीय थिंक टैंक 'द एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' (एडीआर) ने 2014 की एक रिपोर्ट में कहा था कि ऐसे उम्मीदवार जिन पर संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं उनकी जीतने की संभावनाएं काफी प्रबल होती हैं. इस साल सभी उम्मीदवारों को अपने पिछले पांच साल के इनकम टैक्स रिटर्न का ब्यौरा भी सार्वजनिक करना होगा. साथ ही विदेश में अपनी संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा देना भी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य किया गया है.
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ऑनलाइन निगरानी
वेब कैमरों के जरिए इंटरनेट पर पांच हजार से अधिक मतदान और गिनती केंद्रों की लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी. इसके अलावा एक स्मार्टफोन ऐप के जरिए नागरिक मतदान केंद्र पर हुए किसी भी प्रकार के अभद्र व्यवहार, चुनावी गड़बड़ी, शराब या ड्रग्स जैसी बातों की शिकायत कर सकेंगे. गुमनाम शिकायतकर्ता किसी भी फोटो और वीडियो को इस ऐप कर अपलोड कर सकेंगे जिस पर अधिकारियों को 100 मिनट के भीतर कार्रवाई करनी होगी.
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फीडबैक और सोशल मीडिया
आयोग ने इस बार एक टोल-फ्री हेल्पलाइन भी शुरू की है. इस हेल्पलाइन के जरिए मतदाता कोई जानकारी और शिकायत दर्ज कराने के अलावा वोटिंग से जुड़ा अपना फीडबैक भी दे सकेंगे. इस बार उम्मीदवारों को अपने चुनावी दस्तावेज में सोशल मीडिया खातों की भी जानकारी देनी होगी. इस नए कदम का मकसद चुनावों में सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाना है.
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ऑनलाइन विज्ञापन
अब चुनाव आयोग सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी नजर रखेगा. साथ ही राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के चुनावी विज्ञापन को उनके चुनावी खर्च के साथ जोड़ा जाएगा. फेसबुक ने साफ किया है कि पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से वह राजनीतिक विज्ञापनों में उसे छपवाने वाले की जानकारी देगा. यह नई नीति फोटो शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम पर भी लागू होगी.
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थर्ड जेंडर
यह पहला मौका है जब भारत के तकरीबन 39,000 नागरिकों ने स्वयं को बतौर "थर्ड जेंडर" रजिस्टर किया है. देश में ट्रांसजेंडर्स लोगों की आबादी करीब 50 हजार है, लेकिन अब से पहले उन्हें पुरुष या महिला के रूप में स्वयं को रजिस्टर करना होता था.
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महिलाओं का बूथ
इन चुनावों में पहली बार हर निर्वाचन क्षेत्र को एक मतदान केंद्र सिर्फ महिलाओं के लिए तैयार करना होगा. हालांकि कर्नाटक में यह संख्या कहीं ज्यादा है. राज्य में ऐसे तकरीबन 600 मतदान केंद्र होंगे, जहां स्टाफ से लेकर सुरक्षा तक की सारी जिम्मेदारी महिलाएं संभालेंगी. (एएफपी/एए)
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लोकसभा की दो सीटें
अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों के लिए 12 उम्मीदवारों के मैदान में होने की वजह से उन पर बहुकोणीय मुकाबले के आसार हैं. इन सीटों के लिए 11 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होगा. अरुणाचल पूर्व सीट पर पांच उम्मीदवार हैं और अरुणाचल पश्चिम पर सात. राज्य की 27 विधानसभा सीटों को लेकर गठित अरुणाचल पूर्व सीट पर बीजेपी के तापीर गाओ और कांग्रेस के जेम्स लोवांग्चा वांगलाट के बीच कड़े मुकाबले की संभावना है. यहां जनता दल (एस) के बांदे मिली और पीपुल्स पार्टी आफ अरुणाचल (पीपीए) के मंगोल योमसो के अलावा एक निर्दलीय उम्मीदवार सीसी सिंग्फो भी मैदान में है.
राज्य की दोनों लोकसभा सीटों को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. वह सात-सात बार यहां जीत चुकी हैं. बीजेपी ने वर्ष 2004 में अरुणाचल पूर्व सीट पर जीत दर्ज की थी. बीते लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार निनोंग ईरिंग ने तापीर गाओ को 12 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया था. गाओ वर्ष 2004 में यहां जीते थे.
अरुणाचल पश्चिम संसदीय सीट पर वैसे तो सात उम्मीदवार हैं. लेकिन यहां मुख्य मुकाबला केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और बीजेपी उम्मीदवार किरेन रिजिजू व पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस उम्मीदवार नबाम टुकी के बीच होने की संभावना है. रिजिजू ने बीते चुनाव में कांग्रेस के टकाम संजय को 41 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से पराजित किया था.
बीजेपी जहां विकास के मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतरी है वहीं विपक्ष स्थायी निवास प्रमाणपत्र (पीआरसी) को अपने तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. राज्य में फिलहाल दो ही अहम मुद्दे हैं. नागरिकता (संशोधन) विधेयक और स्थानीय निवासी प्रमाणपत्र (पीआरसी). पीआरसी के मुद्दे पर बीते महीने हुई हिंसा में तीन लोग मारे गए थे और लाखों की सरकारी संपत्ति जला दी गई थी.
जहां तक आंकड़ों का सवाल है पिछले विधानसभा चुनावों में यहां कांग्रेस को 49.59 फीसदी वोट और 43 सीटें मिली थीं जबकि बीजेपी को 31.24 फीसदी वोटों के साथ 11 सीटें. क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों को छह सीटें मिली थीं. उसी साल हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी को एक-एक सीट मिली थी. तब बीजेपी को 46.12 फीसदी वोट मिले थे और कांग्रेस को 41.22 फीसदी.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बचाने की लड़ाई में उतरी बीजेपी नेतृत्व के सामने मुश्किलें कम नहीं हैं. सरकार की तमाम सफाई के बावजूद पीआरसी का मुद्दा उसके गले की फांस बना हुआ है. राजनीतिक विश्लेषक देवेश्वर बोरा कहते हैं, "अरुणाचल प्रदेश हाल के वर्षो में राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है. इस स्थिति को दूर करने के लिए अबकी राज्य के लोग स्थायी सरकार का गठन चाहते हैं. लेकिन नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) जैसे कई क्षेत्रीय दलों ने फिलहाल सत्ता के दोनों दावेदारों, बीजेपी और कांग्रेस के समीकरणों को गड़बड़ा दिया है. ऐसे में अबकी चुनावी नतीजों के दिलचस्प होने की उम्मीद है.”
भारतीय चुनाव: आखिर खर्चा कितना होता है?
भारतीय चुनाव: आखिर खर्चा कितना होता है?
भारत का जनमानस तय करेगा कि वह फिर पीएम नरेंद्र मोदी को बागडोर सौंपेगा या उसके मन में कुछ और है. जो भी हो, यहां पेश हैं भारतीय आम चुनाव के कुछ दिलचस्प आंकड़े.
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कितनी सीटें
आम चुनाव में लोकसभा की कुल 545 सीटों में से 543 पर चुनाव होता है. दो सीटों पर राष्ट्रपति एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों को नामांकित करते हैं. ये ऐसे यूरोपीय लोगों का समुदाय है जिन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय लोगों से शादी की और यहीं रह गए.
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कितने वोटर
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भारत में 83 करोड़ से ज्यादा वोटर थे, जो अमेरिका की आबादी का तीन गुना हैं. लेकिन इनमें से 66 प्रतिशत यानी 55.3 करोड़ लोगों ने ही अपना वोट डाला था.
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कितनी पार्टियां
पिछले आम चुनाव में कुल 8,251 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे और कुल पार्टियों की संख्या थी 460. भारत में चुनाव का सारा काम केंद्रीय चुनाव आयोग देखता है. दिल्ली में उसके मुख्यालय में तीन सौ से ज्यादा अधिकारी काम करते हैं.
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कितने उम्मीदवार
पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के आधार पर देखें तो हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 15 उम्मीदवार थे. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं एक सीट पर सबसे ज्यादा 42 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे.
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कितने बूथ
चुनाव आयोग ने 2014 के चुनाव में कुल 9,27,553 मतदान केंद्र बनाए थे और हर केंद्र पर वोट डालने वालों की औसतन संख्या 900 थी. चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार किसी भी वोटर के लिए मतदान केंद्र दो किलोमीटर से दूर नहीं होना चाहिए.
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कितने कर्मचारी
पिछले आम चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 50 लाख सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था जो पैदल, सड़क मार्ग, ट्रेन, हेलीकॉप्टर, नौका या फिर कभी कभी हाथी पर चढ़ कर भी निर्वाचन क्षेत्रों तक पहुंचे थे.
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एक वोटर के लिए मतदान केंद्र
2009 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने गुजरात में गीर के जंगलों में सिर्फ एक वोटर के लिए मतदान केंद्र बनाया था. यह जंगल एशियाई शेरों का अहम ठिकाना है और इसके लिए यह दुनिया भर में मशहूर है. (फोटो सांकेतिक है)
तस्वीर: Reuters/Danish Siddiqui
मतदान और मतगणना
भारत के आम चुनाव कई चरणों में होता है और आम तौर पर इसमें एक महीने से ज्यादा का समय लगता है. लेकिन सभी सीटों पर वोटों की गिनती एक ही दिन होती है. पहले मतपत्रों की वजह से नतीजा आने में कई दिन लगते थे, लेकिन ईवीएम आने के बाद एक दिन में ही परिणाम आ जाते हैं.
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चुनाव का खर्च
भारत जैसे विशाल देश में चुनाव पर खर्चा भी बहुत आता है. केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के आम चुनावों पर कुल 38.7 अरब रुपये यानी साढ़े पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च हुए थे.
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ईवीएम
2014 के आम चुनाव में कुल 18 लाख ईवीएम मशीनें इस्तेमाल की गई थीं. ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया आसान तो हुई है लेकिन कई विपक्षी पार्टियां यह कह कर इनकी आलोचना करती हैं कि ईवीएम से गड़बड़ी होती है. कई पार्टियां बैलेट के जरिए चुनाव की मांग करती हैं. लेकिन फिलहाल ऐसी संभावना नहीं दिखती है.