भारत में बलात्कार से जुड़े मामले सुर्खियों में बने हुए हैं. देश भर में इन मामलों का जोरदार विरोध भी हो रहा है. लेकिन विशेषज्ञ यौन अपराधों के लिए जाति व्यवस्था को भी बहुत हद तक जिम्मेदार मानते हैं.
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आधुनिकता के बावजूद आज भी भारत के गांव, देहात और शहरों में जाति व्यवस्था की झलक साफ नजर आती है. आम आदमी की जिंदगी भी कहीं न कहीं इससे प्रभावित है. और, कई बार तो महिलाओं के इसके सबसे भयावह रूप का सामना करना पड़ता है. पिछले कई मामलों में देखा गया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में जातिगत दुश्मनी की अहम भूमिका रही है.
हालांकि कई मामलों में अंतर धार्मिक कारण भी सामने आए हैं. देश को हिला कर रख देने वाली जम्मू कश्मीर में 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के पीछे भी जातिगत कारण माने जा रहे हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि समाज में हाशिए पर रहने वाले दलित और आदिवासी समुदायों की महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. विश्लेषक कहते हैं कि आज उच्च जाति के पुरुष, पिछड़ी जाति कि महिलाओं को लगातार अपना निशाना बना रहे हैं. नतीजतन, महिलाएं बलात्कार, यौन हिंसा जैसे मामलों की शिकार बनती हैं.
जघन्य अपराध
मध्य प्रदेश के सतना जिले में एक दलित लड़की ने पुलिस को बताया कि उसका कई महीनों तक उच्च जाति के तीन लड़कों ने रेप किया. छत्तीसगढ़ में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया. जहां 22 साल की एक महिला ने एक पंडित पर कथित रूप से बहला-फुसला कर रेप का आरोप लगाया. ऐसे मामलों की एक लंबी सूची है. विश्लेषकों के मुताबिक देश में यौन हिंसा को अब उच्च वर्ग के लोग निचली जाति के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं. जिसका मकसद है वर्चस्व स्थापित करना. सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी कहती हैं, "हम यह रोजाना देखते हैं. हालांकि यौन अपराधों को लेकर कोई जातिगत आंकड़ें नहीं हैं. लेकिन यह अब नजर आता है. यहां तक कि उन महिलाओं को भी ज्यादा निशाना बनाया जाता है जिनके परिवार वाले काम की तलाश में बाहर आ गए हैं."
जब दलितों ने जताया जमकर विरोध
लंबे समय तक हाशिए पर रहा दलित समाज अब राजनीतिक रूप से जागरुक नजर आने लगा है. पिछले कुछ समय में ऐसे कई मौके आए जब दलितों ने अपनी आवाज बुलंद की और विरोध प्रदर्शन भी किए. एक नजर दलित आंदोलनों पर
तस्वीर: AP
दलित-मराठा टकराव (जनवरी 2018)
महाराष्ट्र में साल 2018 की शुरुआत दलित-मराठा टकराव के साथ हुई. भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं सालगिरह के मौके पर पुणे के कोरेगांव में दलित और मराठा समुदायों के बीच टकराव हुआ जिसमें एक युवक की मौत हो गई. मामले ने तूल पकड़ा और पूरे महाराष्ट्र में इसकी लपटें नजर आने लगीं. दलितों संगठनों ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया. इस बीच प्रदेश के अधिकतर इलाकों से हिंसा, आगजनी की खबरें आती रहीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool
सहारनपुर में ठाकुर-दलित हिंसा (मई 2017)
साल 2017 में उत्तर प्रदेश का सहारनपुर दलित विरोध का केंद्र बना रहा. क्षेत्र में दलित-ठाकुरों के बीच महाराणा प्रताप जयंती कार्यक्रम के बीच टकराव हुआ. इसके चलते दोनों पक्षों के बीच पथराव, गोलीबारी और आगजनी भी हुई. विरोध इतना बढ़ा कि मामला दिल्ली पहुंच गया. जातीय हिंसा के विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर दलितों की भीम आर्मी ने बड़ा प्रदर्शन किया.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
गौ रक्षकों के खिलाफ गुस्सा (जुलाई 2016)
जुलाई 2016 में गुजरात के वेरावल जिले के ऊना में कथित गौ रक्षकों ने गाय की खाल उतार रहे चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की थी. इनमें से एक युवक की मौत हो गई थी. घटना का वीडियो वायरल हुआ. गुजरात में दलित समुदायों ने इसका जमकर विरोध किया. विरोध प्रदर्शन के दौरान करीब 16 दलितों ने आत्महत्या की कोशिश भी की. इस मामले की गूंज संसद तक पहुंची.
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कोपर्डी गैंगरेप केस (जुलाई 2016)
यह एक ऐसा मामला था जिसमें मराठा समुदाय की ओर से एससी/एसटी कानून को खत्म किए जाने की मांग की गई. 13 जुलाई 2016 को मराठा समुदाय की एक 15 साल वर्षीय लड़की को अगवा कर उसका गैंगरेप किया गया. जिसके बाद उसकी हत्या कर दी गई. महाराष्ट्र में इस घटना के खिलाफ काफी प्रदर्शन हुआ था जिसने बाद में मराठा आंदोलन का रूप अख्तियार कर लिया. मामले में तीन दलितों को दोषी करार दिया गया जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई.
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
रोहित वेमुला की आत्महत्या (जनवरी 2016)
हैदराबाद यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने देश में दलितों और छात्रों के बीच एक नया आंदोलन छेड़ दिया. यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने प्रशासन पर भेदभाव का आरोप लगाया. रोहित ने अपने सुसाइड नोट में विश्वविद्यालय को जातिवाद, चरमपंथ और राष्ट्रविरोधी तत्वों का गढ़ बताया था. इसके बाद देश भर में दलित आंदोलन हुए और मामला देश की संसद तक पहुंचा.
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खैरलांजी हत्याकांड (सितंबर 2006)
जमीनी विवाद के चलते महाराष्ट्र के भंडारा जिले के खैरलांजी गांव में 29 सितंबर को एक दलित परिवार के 4 लोगों की हत्या कर दी गई थी. परिवार की दो महिला सदस्यों को हत्या के पहले नंगा कर शहर भर में घुमाया गया था. इस घटना के विरोध में पूरे महाराष्ट्र में दलित प्रदर्शन हुए थे. सीबीआई ने अपनी जांच में गैंगरेप की बात को नकार दिया था. दोषियों को मौत की सजा मिली थी, जिसे बंबई हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया.
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विश्लेषकों की राय में जहां जातिगत टकराव की स्थिति बनती है, वहां बलात्कार या यौन हिंसा को लड़ाई का हथियार बना लिया जाता है. इसका एक उदाहरण साल 2016 में हुए जाट आंदोलन के दौरान भी नजर आता है. फरवरी 2016 में जाट समुदाय सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा था. इस आंदोलन की वजह से दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा में आम जीवन काफी प्रभावित हुआ था. इस दौरान हुई हिंसा में नौ महिलाओं के साथ गैंग रेप किया गया. कुछ ऐसे ही मामले तमिलनाडु में भी सामने आए थे.
शहर भी प्रभावित
ऐसा भी नहीं है कि यौन अपराध और बलात्कार से जुड़े मामले सिर्फ ग्रामीण इलाके में ही सामने आ रहे हैं. साइबर सिटी कहे जाने वाले हैदाराबाद के आपराधिक आंकड़ें बताते हैं कि पिछले तीन साल में शहर की करीब 37 दलित और आदिवासी महिलाओं के साथ रेप किया गया. इन सारे मामलों में आरोप उच्च जाति के पुरुषों पर ही लगाए गए हैं.
समाजशास्त्री संजय श्रीवास्तव ने डीडब्ल्यू से बातचीत ने कहा, "बलात्कार ताकत से जुड़ा मसला है. जब उच्च जाति का कोई व्यक्ति किसी दलित महिला से बलात्कार करता है तो उसे शक्ति प्रदर्शन भी कहा जाता है. क्योंकि वह ये बताना चाहते हैं कि दलित जाति के पुरूष महिलाओं की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए रेप, पुरुषों के बीच एक प्रतिस्पर्धा भी है."
डर का माहौल
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारत में दलित महिलाओं की संख्या 10 करोड़ से भी अधिक है. साथ ही रोजाना करीब चार दलित महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं. सेक्स एक्सपर्ट्स कानूनी सुरक्षा पर रोशनी डालते हुए कहते हैं कि कुछ अपराधी यौन अपराध पीड़ितों को डराने के लिए भी करते हैं. कई मामलों में उन्हें लगता है कि वो सजा से बच सकते हैं.
कार्यकर्ता मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में अगर कोई दलित या आदिवासी परिवार किसी जाति संबंधी परंपरा को तोड़ता है या बदलाव करता है तो सजा देने के लिए उस परिवार की महिलाओं को चुना जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाश्मी कहती हैं, "सजा देने के एक तरीका प्रॉपर्टी जला देना, लूटपाट करना है. तो दूसरा तरीका महिलाओं का रेप करना, उन्हें नंगा कर सड़कों पर घुमाना माना जाता है."
शहरों में दलितों पर ज्यादा अत्याचार
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटा मुताबिक साल 2016 में दर्ज आपराधिक मामले बताते हैं कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे असुरक्षित राज्य है. साथ ही शहरी क्षेत्रों में दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार बढ़ रहे हैं
तस्वीर: Reuters
सबसे अधिक गंभीर अपराध
रिपोर्ट मुताबिक, देश में सबसे अधिक गंभीर अपराध उत्तर प्रदेश में होते हैं. यहां महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या भी सबसे अधिक है. कुल अपराधों में उत्तर प्रदेश के बाद बिहार का नंबर आता है. लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध उत्तरप्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक होते हैं.
तस्वीर: Reuters/P. Kumar
दलितों पर अत्याचार
रिपोर्ट मुताबिक शहरी क्षेत्रों में दलितों पर होने वाले अत्याचार अब भी बना हुआ है. लखनऊ और पटना देश के दो ऐसे बड़े शहर हैं जहां ये अपराध सबसे अधिक है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य हैं जहां दलितों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध दर्ज किये गये हैं. तीसरे स्थान पर राजस्थान का नंबर आता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
शहरों में स्थिति
शहरों की बात करें तो दलितों के खिलाफ अपराध में लखनऊ के बाद पटना और जयपुर का नंबर आता है. इसके बाद आईटी हब माने जाने वाले बेंगलुरू और हैदराबाद का स्थान आता है. बेंगलुरू को छोड़कर कर्नाटक में ये अत्याचार अन्य राज्यों के मुकाबले कम है.
तस्वीर: Imago/Indiapicture
स्थिति अब भी साफ नहीं
जाति आधारित अपराधों और अत्याचारों से जुड़े मामलों पर एनसीआरबी साल 2014 से डाटा जुटा रहा है लेकिन यह पहला मौका है जब ये आंकड़ें जारी किये गये हैं. ये रिकॉर्ड पुलिस द्वारा दर्ज किये गये मामलों पर आधारित है इसलिए संभव है कि जमीन पर हालात और भी खराब हो सकते हैं.
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अपने हक से वाकिफ
शहरों में दलितों से जुड़ी आबादी के कोई आंकड़ें नहीं है इसलिए ये बता पाना कि शहरों में इन अपराधों का औसत क्या है, मुश्किल माना जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक शहरों में दलित अत्याचार के अधिक मामले सामने का कारण है कि शहरों में रहने दलित अपने अधिकारों के प्रति अधिक वाकिफ हैं. वे अपराधों को दर्ज कराते हैं.
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बलात्कार के मामले
एनसीआरबी का डाटा देश में बलात्कार जैसे अपराध की बेहद ही गंभीर तस्वीर पेश करता है. साल 2016 में मध्यप्रदेश में बलात्कार के सबसे अधिक मामले दर्ज किये गये. इसके बाद उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का नंबर आता है.
तस्वीर: Reuters
राजधानी असुरक्षित
दिल्ली में हर घंटे 23 आपराधिक मामले दर्ज होते हैं. साल 2015 के मुकाबले इन मामलों में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. आंकड़े मुताबिक देश में कुल दर्ज आपराधिक मामले में से 39 फीसदी मामले दिल्ली में दर्ज किेय गये.
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अनेकों कारण
हालांकि हाशिए पर रहने वाले इन समुदायों की महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के लिए कई कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. मसलन ग्रामीण इलाकों से पुरुष काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर चले जाते हैं. ऐसे में गांवों रहने वाली महिलाएं घरों में अकेली रह जाती हैं. महिलाओं को कमजोर और अकेला समझ कर भी उन्हें निशाना बनाया जाता है. इसके अतिरिक्त आज दलित वर्ग में भी राजनीतिक जागरुकता आ रही है. जो इन पर बढ़ते हमलों का एक कारण भी है. सामाजिक कार्यकर्ता पॉल दिवाकर कहते हैं, "दलितों के अधिकारों की रक्षा से जुड़ा सरकार का दावा खोखला है. जातीय समीकरणों को चुनौती दी जानी चाहिए. साथ ही नीतियां और फैसले तय करते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम एक ऐतिहासिक समस्या से टकरा रहे हैं."