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जाने कहां गए वो दिन

१३ अगस्त २०१३

1963 में अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्रदर्शनी में पहली बार पेश किए जाने के साथ म्यूजिक कैसेट का विजय अभियान शुरू हुआ. कॉम्पैक्ट डिस्क और कंप्यूटर के बाजार में आने तक उसका दबदबा बना रहा है. पर अब ये कैसेट कहां गए.

तस्वीर: picture alliance / Maximilian Schönherr

याद करें, छोटा म्यूजिक कैसेट 60, 90 और 120 मिनटों के साइज में मिलता था. रिकॉर्डिंग में शोर सुनाई देता था, मशीन में उसे दबाने के लिए लगे विशेष सिस्टम के बावजूद. इसके अलावा कभी कभी आगे और पीछे ले जाने के चक्कर में टेप बाहर निकल जाता और फिर से संभालना मुश्किल हो जाता. अगर उलझे हुए टेप को नुकसान पहुंचाए बिना ठीक करने में कामयाबी मिल जाती फिर पेंसिल की मदद से उसे लपेटा जाता. आज एमपी 3 की क्वालिटी और आराम को देखते हुए समझना मुश्किल होता है कि म्यूजिक कैसेट इतने लोकप्रिय कैसे हुए. आज भी कैसेट प्रेमी मिक्स्ड टेप पार्टी करते हैं, लेकिन नए कैसेट अब मिलते नहीं.

उलझे बिखरे टेपतस्वीर: Fotolia/bramgino

असीमित संभावना

क्या दिन हुआ करते थे. पापा और उनकी ग्रुंडिष टेप रिकॉर्डर के बिना रेडियो से कुछ रिकॉर्ड ही नहीं किया जा सकता था. फिर वे दिन आए कि किशोर उम्र के लोग पापा के बिना भी अपनी पसंद के गीत रिकॉर्ड कर सकते थे, टेलीविजन प्रोग्रामों के ऑडियो रिकॉर्ड संभव हो गए. या फिर आप खुद अपना नाटक रिकॉर्ड कर सकते थे, जैसा कि जर्मन पत्रकार यान ड्रीस ने डॉयचे वेले को बताया. अपना पहला सी90 कैसेट उन्होंने खुद नहीं खरीदा, बल्कि पापा के कलेक्शन से उड़ा लिया था. मिक्स्ड टेप बनाना भी उन्होंने पापा से ही सीखा था, जो रेडियो से पुराने गाने रिकॉर्ड करते थे.

लेकिन अब कानूनी हालात भी बदल गए हैं. संगीत अधिकारों पर नजर रखने वाली जर्मन संस्था गेमा म्यूजिक कॉपी करने की आसान तरकीबों को पाइरेटिंग की संज्ञा देती है, क्योंकि उसके लिए कोई फीस नहीं दी जाती. यान ड्रीस बताते हैं, "गेमा को 1985 में कामयाबी मिली कि 60 मिनट का खाली कैसेट खरीदने पर 19 फेनिष (पुरानी जर्मन मुद्रा, करीब 10 सेंट) उन्हें देना पड़ता था, जिसे कॉपीराइट धारकों में बांटा जाता था." उनका कहना है कि यह बात सच नहीं है कि निजी इस्तेमाल के लिए म्यूजिक की कॉपी करने की वजह से म्यूजिक कैसेटों की बिक्री कम होती है. लेकिन कई बैंड इस बीच अलावा गूगल और माईस्पेस जैसे इंटरनेट प्लेटफॉर्मों से भी फीस मांग रहे हैं.

लेखक यान ड्रीसतस्वीर: Oliver Weckbrodt

यान ड्रीस ने अपनी किताब के लिए रिसर्च के दौरान पाया कि म्यूजिक कैसेटों का तकनीकी स्तर जर्मनी के दोनों हिस्सों में भी अलग अलग था. पश्चिम जर्मनी में मिलने वाले कैसेट जीडीआर के मुकाबले बेहतर थे, "जीडीआर में अच्छे कैसेट पाना मुश्किल था. उनका वहां अलग महत्व था. सरकार ने उसे सीमित रखा था, उन्हें उसकी ताकत से डर था. बैंड्स के लिए अपना अल्बम बनाना और उनकी कॉपी करना संभव हो गया था." 1980 के दशक में जीडीआर में सिर्फ दो कंपनियां होती थीं और संस्कृति अधिकारी तय करते थे कि किसका रिकॉर्ड रिलीज होगा." अब फैंस भी पश्चिमी संगीतकारों के म्यूजिक कॉपी कर सकते थे.

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सनक और कला

इस बीच ज्यादातर कैसेट प्लेयर या रिकॉर्डर घरों में किसी कोने में पड़े हैं. कैसेटों पर धूल जम रही है. फिर भी 50 साल पुराने कॉम्पैक्ट कैसेट के प्रेमियों की कमी नहीं. कैसेट प्रेमियों का एक तरह का सबकल्चर विकसित हो गया है. यान ड्रीस बताते हैं कि खासकर इंडी-म्यूजिक के क्षेत्र में बहुत सी पार्टियां होती हैं, "इंडी पार्टी का नाम भी कैसेट से जुड़ा हुआ है. देसाऊ के निकट मेल्ट फेस्टिवल के लिए मिक्स्ड टेप तैयार किए जाते हैं." इतना ही नहीं कैसेट से दिखने वाले शो केस भी तैयार किए जा रहे हैं. मसलन कैसेट सा दिखने वाला स्मार्टफोन का कवर या टीशर्ट पर कैसेट की तस्वीर.

लेखक यान ड्रीस कहते हैं, "कैसेट कलाकृति के रूप में भी जीवित है." वे बताते हैं कि बर्लिन के कलाकार ग्रेगोर हिल्डेब्रांट ने पुराने कैसेटों की मदद से बड़ी कलाकृतियां बनाई हैं. उन्हें दुनिया भर में दिखाया जाता है और खरीदा भी जाता है. कुछ समय पहले तक कैसेट पर रिकॉर्डेड किताबें बेची जाती थीं. बच्चों के लिए अच्छी कहानियां. लेकिन अब उन्हें बेच कर पैसा बनाना मुश्किल हो गया है. कैसेटों का स्वर्णकाल समाप्त हो गया है. अब वह सिर्फ अपने फैंस की यादों और उनकी पार्टियों में रह गया है.

रिपोर्ट: कॉनी पाउल/एमजे

संपादन: ए जमाल

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