जान जोखिम में डाल कर क्यों विदेश जा रहे हैं भारतीय?
मानसी गोपालकृष्णन
३१ अक्टूबर २०१९
अमेरिका के सबसे बड़े आप्रवासी समुदायों में भारतीय भी एक हैं. बावजूद इसके भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में अपनी जान जोखिम में डाल कर लैटिन अमेरिका के रास्ते अमेरिका पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
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मेक्सिको ने हाल ही में 311 भारतीय लोगों को वापस भेज दिया. ये लोग गैरकानूनी तरीके से सीमा पार कर अमेरिका जाने की फिराक में थे. भारत आने के बाद इन लोगों ने बताया कि अमेरिका में घुसने के लिए इन लोगों ने मानव तस्करों को 20 से 50 लाख रुपये दिए थे. इनमें से ज्यादातर भारत से पहले इक्वाडोर पहुंचे और उसके बाद कोलंबिया, पनामा और होंडुरास होते हुए आखिरकार मेक्सिको पहुंचे.
अमेरिकी कस्टम एंड बॉर्डर पेट्रोल के मुताबिक 2018 में मेक्सिको के रास्ते अवैध तरीके से अमेरिका घुसने की कोशिश में करीब 9000 भारतीय लोगों को पकड़ा गया. 2017 के मुकाबले यह संख्या करीब तीन गुनी ज्यादा है. इसी साल अमेरिका की दक्षिण पश्चिमी सीमा के रास्ते अवैध तरीके से देश में घुसते पकड़े जाने वालों में सबसे बड़ा समुदाय भारतीयों का था.
अमेरिका की आईबीआई कंसल्टेंट्स फर्म में आप्रवासन विशेषज्ञ और रिसर्च कॉर्डिनेटर कायेतलिन येत्स का कहना है, "ज्यादातर भारतीय जो लातिन अमेरिका जाते हैं वो इक्वाडोर या ब्राजील के रास्ते मेक्सिको पहुंचते हैं क्योंकि इन दो देशों में वीजा के कानून कमजोर हैं. यहां से ये लोग उत्तर की तरफ हाईवे के रास्ते से बढ़ना शुरू करते हैं और कोलंबिया और मध्य अमेरिका से होते हुए अमेरिकी सीमा पर पहुंचते हैं."
येत्स का कहना है कि इनमें से ज्यादातर आप्रवासी आमतौर पर आर्थिक मौके की तलाश में या फिर अपने परिवार के सदस्यों के साथ रहने के लिए यहां आते हैं. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से आने वाले कई आप्रवासियों ने कहा कि वो धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए आए हैं जबकि कुछेक लोग राजनीतिक दमन की भी बात कहते हैं.
कैलिफोर्निया के फ्रेंसो में आप्रवासन मामलों के वकील दीपक आहलूवालिया ने मीडिया को बताया कि भारत के राजनीतिक असंतुष्ट, अल्पसंख्यक और समलैंगिक समुदाय के लोग दूसरे देशों में शरण पाने की सबसे ज्यादा कोशिश करते हैं.
खतरनाक सफर
विश्लेषक येत्स का कहना है कि लातिन अमेरिका में भारतीय आप्रवासियों की तादाद पिछले पांच सालों में कई गुना बढ़ गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जब से अवैध आप्रवासियों को नहीं रोक पाने के लिए मेक्सिको पर आयात शुल्क लगाने की धमकी दी है तब मेक्सिको के अधिकारी इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुए हैं.
जानकार कहते हैं कि इस वजह से भारतीय आप्रवासी असुरक्षित हो गए हैं. येत्स ने बताया कि ज्यादातर भारतीय अब अमेरिका की सीमा में "आधिकारिक बंदरगाहों के बाहर" से प्रवेश कर रहे हैं.
अमेरिकी हिरासत केंद्र से छूटने के बाद आप्रवासी कहां जाते हैं?
अमेरिका में प्रतिदिन हजारों की संख्या में आप्रवासियों को हिरासत केंद्रो से छोड़ा जा रहा है. यहां से निकलने के बाद इन आप्रवासियों की जिंदगी कैसी होती है? वे क्या करते हैं? एक नजर उनकी जिंदगी पर.
तस्वीर: DW/J. Jeffrey
सुनवाई पूरी होने तक रहने की इजाजत
टेक्सास के मैक ऐलन में दिन भर बसें आती रहती है. इनमें इमिग्रेशन और कस्टम इनफोर्समेंट (आईसीई) डिटेंशन सेंटर से रिहा किए गए आप्रवासी होते हैं. जब तक इनके मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक इन्हें अमेरिका में रहने की इजाजत रहती है. अमेरिकी सीमा अधिकारियों के अनुसार अक्टूबर 2018 से मार्च 2019 तक सीमा पर 2,68,044 आप्रवासी हिरासत में लिए गए थे.
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वॉलंटियर के हवाले
होमलैंड सिक्युरिटी बस से उतरने के बाद, आप्रवासी बॉर्डर पेट्रोलिंग एजेंट का इंतजार करते हैं, जो उन्हें कैथोलिक चैरिटीज ऑफ द रियो ग्रैंड वैली (सीसीआरजीवी) के वॉलंटियर को सौंप देते हैं. सीमा पार करने वाले परिवारों की भारी संख्या को देखते हुए टेक्सास-मैक्सिको बॉर्डर पर आप्रवासियों की मदद के लिए नागरिक संगठनों को लगाया गया है.
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संगठित अस्तव्यस्तता
सीसीआरजीवी के राहत केंद्र में लोगों को खाना दिया जाता है, यहां वे नहा धो सकते हैं और सो भी सकते हैं. इसके बाद वे अमेरिका में रह रहे अपने परिवारजनों या मित्रों के पास जा कर रह सकते हैं. उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि वे अदालत में सुनवाई के लिए जरूर पहुंचें. इस केंद्र पर प्रत्येक दिन 800 आप्रवासी पहुंचते हैं.
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लंबी दूरी की यात्रा
एक बार जब अप्रवासी बस टिकट प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें ग्रेहाउंड स्टेशन पर वापस ले जाया जाता है. ये टिकट वे आमतौर पर अमेरिका में रहने वाले किसी परिचित के माध्यम से ही खरीदते हैं. यहां स्वयंसेवक मेलानी डोमिंगेज अप्रवासियों को अमेरिकी मानचित्र का उपयोग कर बताते हैं कि उन्हें कहां पर बस बदलने की जरूरत है.
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कम हुई संख्या
मैक ऐलन के पूर्व में सीमा के साथ मीलों तक फैला एक दीवार है जेसे साल 2000 में बनाया गया था. उस समय हर महीने औसतन 81,550 आप्रवासी गिरफ्तार होते थे. इसमें ज्यादातर अकेले पुरुष होते थे. अब यह औसत 32,012 प्रति महीने पर आ गया है. और अब आने वाले ज्यादातर आप्रवासी परिवार हैं. बच्चों समेत इन परिवारों को हिरासत में लेना और वापस भेजना कठिन होता है.
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बंटवारे की नदी
रियो ग्रैंड मेक्सिको के साथ अमेरिकी सीमा पर स्थित शहर टेक्सास को जोड़ती है. मध्य अमेरिका में हिंसा से भाग रहे लोगों के साथ काम करने वाली जेनिफर कहती हैं, "हर सप्ताह किसी के डूबने की खबर सुनती हूं. एक मां ने अपने तीन बच्चों के साथ नदी पार करने के लिए तस्कर को पैसे दिए. लेकिन हंगामे की वजह से उसका दो साल का बेटा नदी में गिर गया. नाविक ने कहा कि बीच नदी में नाव नहीं रोक सकते."
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अमेरिका के कदम
इंटरनेशनल गेटवे ब्रिज के मैक्सिकन छोर पर लगी सूचियों में आप्रवासी अपने नाम खोजते हैं ताकि पता कर सकें कि किसे अमेरिका जाने की अनुमति मिली है. यह तरीका प्रवासियों को अनुमति देने के लिए ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू की गई कई नई नीतियों में से एक है. जानकारों को कहना है यह अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय शरण कानूनों दोनों का उल्लंघन करती हैं.
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आर्थिक प्रवासी बनाम शरण चाहने वाले
एक अन्य पुल पर निकारागुआ से आईं मां और बेटी इंतजार कर रही हैं. उन्हें उम्मीद है कि वे शरण का दावा कर सकती हैं. अमेरिकी आप्रवासन को लेकर बहस में यह भी शामिल है कि क्या आर्थिक कठिनाई के बजाय उत्पीड़न से भागकर आने वालों को शरण मिलनी चाहिए. निकारागुआ के 27 वर्षीय एरविंग कहते हैं, "मेरे पास एक सिविल इंजीनियर की नौकरी थी, इसके बावजूद मैं यहां आया हूं. हम हिंसा की वजह से भागे हैं, नौकरी के लिए नहीं."
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डर के साथ उम्मीद
मैक ऐलन के ग्रेहाउंड बस स्टेशन के पीछे होंडुरास का 9 वर्षीय वलेरिया बस का इंतजार कर रहा है जो उसे और उसके परिवार को उत्तर में ले जाएगी. आराम करने और सीसीआरजीवी केंद्र में खाना खाने के बाद आप्रवासी अकसर बेहतर महसूस कर रहे होते हैं. होंडुरास की एक महिला कहती हैं, "लेकिन यहां भी डर है. मैं नहीं जानती कि कोर्ट में सुनवाई के बाद हमें यहां रहने की इजाजत मिलेगी या वापस भेज दिया जाएगा."(जेम्स जेफ्री/आरआर)
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अनाधिकृत रास्तों का इस्तेमाल करने वाले आप्रवासी ना सिर्फ अपनी बल्कि अपने परिवारवालों की जिंदगी भी खतरे में डाल देते हैं. ऐसा ही एक मामला छह साल की गुरुप्रीत कौर के साथ हुआ जो एरिजोना के मरुस्थल में अपनी मां के साथ सीमा पार करते हुए प्यास से मर गई.
हाल ही में भारत भेजे गए भारतीय लोगों ने इक्वाडोर से अमेरिकी सीमा तक की अपनी यात्रा को "भयानक" बताया. 9 मई को भारत से रवाना होने वाली मनदीप ने बताया कि उसने जंगल में पड़ी लाशें देखीं जो शायद उन लोगों की थी जो मानव तस्करों की मदद से अवैध रूप से सीमा पार करने की कोशिश में थे.
दूसरे लोगों ने बताया कि अमेरिका के डिटेंशन कैंपों में तो हालत उनकी यात्रा से भी बुरे थे. वहां पानी की सप्लाई बस एक घंटे के लिए आती थी और पर्याप्त मेडिकल केयर की व्यवस्था नहीं थी. मनदीप और वापस आने वाले दूसरे लोगों का कहना है कि अब वे कभी वहां नहीं जाएंगे.
भारत में सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि सरकार अवैध आप्रवासन के खतरों के बारे में लोगों को आगाह करने के लिए पूरे देश में कार्यक्रम चलाए.