बम फेंकने वाले ड्रोन इंसान की जान भी बचा सकते हैं. वो भी ऐसे हालात में जब मौत बहुत ही करीब हो. ऑस्ट्रेलिया में पहली बार ऐसा किया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/US Air Force/Lt. Col. Leslie Pratt
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न्यू साउथ वेल्स प्रांत के लेनॉक्स हेड तट पर दो युवक समुद्र में तैर रहे थे. तभी 10 फुट ऊंची लहर आई. दोनों लहर में फंस गए. दोनों के नाक और मुंह में पानी भर गया. लहर ने उनके शरीर को इधर उधर पटक दिया. तैराक जान बचाने के लिए छटपटाने लगे. तभी तट पर मौजूद बाकी लोगों की नजर डूबते युवकों पर पड़ी, उन्होंने इमरजेंसी अलार्म बजा दिया. और फिर आकाश में उड़ता एक ड्रोन डूबते युवकों के पास पहुंचा. सही जगह पहुंचते ही ड्रोन ने लाइफ जैकेट फेंकी और जान बच गई.
तट पर मौजूद लाइफगार्ड सुपरवाइजर जय शेरीडैन के पास ड्रोन का रिमोट था. शैरीडैन के मुताबिक, "मैं ड्रोन को उड़ाकर लोकेशन तक पहुंचाने में कामयाब रहा. एक या दो मिनट के भीतर ही मैंने पॉड गिरा दिया. आम तौर पर ऐसी परिस्थितियों में चार लाइफगार्ड तैरते हुए वहां तक जाते और सही जगह तक पहुंचने में उन्हें कुछ मिनट ज्यादा लगते."
ड्रोन से समुद्री तट का नजारातस्वीर: Getty Images/AFP/C. Mahyuddin
ऑस्ट्रेलिया में जान बचाने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल का यह पहला मामला है. चारों तरफ से महासागर से घिरे देश में ड्रोन तटों पर राहत और बचाव का काम बखूबी कर सकते हैं. ड्रोन के जरिए डूबते लोगों तक तेजी से पहुंचा जा सकता है. उन तक लाइफ जैकेट, रबर का छल्ला या सर्फ बोर्ड पहुंचाया जा सकता है. पानी में शार्क जैसी जानलेवा मछलियों का पता भी ड्रोन काफी बेहतर तरीके से लगा सकते हैं.
ऑस्ट्रेलिया में ड्रोन के कैमरों के लिए खास प्रोग्रामिंग की गई है. प्रोग्रामिंग की मदद से ड्रोन 90 फीसदी सटीकता के साथ शार्क जैसे जीवों को पहचान लेता है. पानी में शार्क का पता लगाने के मामले में इंसानी आंख की सफलता 16 फीसदी है.
ड्रोन में उड़ेगा इंसान
इंसान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले यातायात साधनों की दुनिया में एक नई खोज क्रांति ला सकती है. जानिए ड्रोन जैसे दिखने वाले वोलोकॉप्टर की खूबियां.
तस्वीर: e-volo GmbH
एक जर्मन कंपनी शहरी यातायात के नए युग में प्रवेश की तैयारी कर रही है. इसके आविष्कार दुनिया के पहले सर्टीफाइड मल्टीकॉप्टर में इंसान को उड़ाना चाहती है.
तस्वीर: e-volo GmbH
मल्टीकॉप्टर को केवल एक हाथ या यूं कहें कि केवल एक जॉयस्टिक से उड़ाया जा सकता है. निर्माता मानते हैं कि इस सरल कंट्रोल सिस्टम के कारण उड़ान में मानव त्रुटियों की संभावना कम होगी.
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इसमें ऑटोमेटिक आल्टीट्यूड कंट्रोल है जिससे वोलोकॉप्टर एक खास ऊंचाई पर बिना ड्राइवर के हाथ लगाए उड़ता रह सकता है. यह भविष्य में एयर टैक्सी के रूप में भी काम आ सकता है.
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दूसरे हेलिकॉप्टरों की ही तरह इसमें सीधी टेकऑफ और लैंडिंग होती है. मगर पायलटों के लिए वोलोकॉप्टर VC200 को उड़ाना सीखना बेहद आसान होगा.
तस्वीर: e-volo GmbH
इसमें रीचार्जेबल बैटरियां लगाई गई हैं जो पर्यावरण के लिहाज से एक अच्छी तकनीक है. बैटरी से चलने वाले टू-सीटर वोलोकॉप्टर में 20 से 30 मिनट लंबी उड़ान भरी जा सकती है.
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इसे ई-वोलो कंपनी ने डिजायन किया है. फरवरी 2016 में जर्मन प्रशासन ने इसे एक बेहद हल्के एयरक्राफ्ट के तौर पर 'परमिट टु फ्लाई' भी दे दिया. टीम ने इसे बनाने की शुरुआत तीन साल पहले की थी.
तस्वीर: e-volo GmbH
इसे स्पोर्ट्स फ्लाइंग के लिए पहले ही सर्टिफिकेट मिल चुका है. हेलिकॉप्टर के ऊपर 18 रोटर लगे हैं जो बैटरी से चलते हैं. निर्माता इसे आज तक का सबसे इको-फ्रेंडली हेलिकॉप्टर बता रहे हैं.