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समाज

जापानी पत्रिका ने 'सेक्स लिस्टिंग' के लिए मांगी माफी

८ जनवरी २०१९

जापानी टेब्लॉयड "स्पा!" में छपी एक सूची की वजह से हंगामा खड़ा हो गया है. साप्ताहिक पत्रिका में छपी सूची में विश्वविद्यालयों की रैंकिग की गई है और बताया गया है कि कहां महिला छात्रों को शराब पिलाके बहकाना आसान है.

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तस्वीर: Reuters/K. Kyung-Hoon

जापानी टेब्लॉयड ने महिला विश्वविद्यालयों की रैंकिंग करने वाले एक लेख के लिए माफी मांगी है. इस लेख में बताया गया था कि कौन से कॉलेज के महिला छात्रों को पार्टियों में यौन संबंध बनाने के लिए समझाना कितना आसान है.

"स्पा!" के 25 दिसंबर के अंक में यह सूची छपी थी जिसकी वजह से इस लेख की काफी आलोचना हुई और ऑनलाइन पर एक महिला ने माफी मांगने और अपमानजनक लेख वाली पत्रिका की बिक्री रोकने के लिए एक अभियान भी शुरु कर दिया. चेंज.ओआरजी प्लेटफॉर्म पर इस याचिका में लेख को महिलाओं के लिए आपत्तिजनक और अपमानजनक बताया गया है. इस याचिका को 28000 लोगों का समर्थन भी मिला है.

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एएफपी को मिले पत्रिका के संपादकीय विभाग के एक बयान में ये कहा गया है कि "हम पाठकों से सनसनीखेज भाषा का उपयोग करने के लिए क्षमा चाहते हैं जिसमें हमने ये बताया था कि कैसे वे कुछ विश्वविद्यालयों की महिला छात्रों के साथ अंतरंग हो सकते हैं. हमने इसके लिए असली विश्वविद्यालय के नामों की एक सूची भी बनाई थी जिसकी वजह से हमारे कुछ पाठक नाराज हो गए हैं."

लेख में एक ऐसी पार्टी की बात हो रही थी जिसको "ग्यारानोमी" या ड्रिंगकिंग पार्टी के नाम से जाना जाता है. इस पार्टी का हिस्सा बनने के लिए मर्द औरतों को पैसे देते हैं. लेख में ये भी कहा गया था कि इस तरह की पार्टियां कॉलेज की महिला छात्रों में लोकप्रिय हैं. लेख में एक ऐसे सॉफ्टवेयर डेवलपर का इंटरव्यू भी हैं जिसने ऐसा ऐप बनाया है जिसकी मदद से मर्दों और औरतों को पार्टी में बुलाने के लिए सही लोग मिलेगे.

तस्वीर: Reuters/K. Kyung-Hoon

मैगजीन ने कहा कि सूची में जो जानकारी दी गई है वह सॉफ्टवेयर डेवलपर के इंटरव्यू पर ही आधारित थी. मैगजीन के बयान में ये भी कहा गया कि "एक मैगजीन होने के नाते सेक्स से जुड़े मुद्दों पर हम विभिन्न विचारों को सुनेंगे." मगर इस बात के कोई संकेत नहीं थे कि आपत्तिजनक अंक की बिक्री को रोका जाऐगा.

जी-7 देशों की उस सूची में, जिसमें राजनीति और व्यापार में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात की गई है, जापान सबसे नीचे है. वहां #MeToo आंदोलन ने भी कभी जोर नहीं पकड़ा. पिछले साल एक प्रमुख चिकित्सा विश्वविद्यालय ने स्वीकार किया था कि वहां कई बार महिला आवेदकों के स्कोर को कम कर दिया जाता है ताकि छात्र संगठन में महिलाओं की संख्या 30 प्रतिशत के आस पास रहे. फिर एक जांच में पता चला कि कई और संस्थानों में भी ऐसा होता था.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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