टोक्यो की बिल्डर कंपनियां मंदिर को आर्थिक मुनाफे में मददगार बनाने के लिए इलाकों में ऐसी सुविधाएं देना चाहते हैं जिनसे पर्यटकों को लुभाया जा सके. ईहीजी मंदिर की देखरेख के लिए जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन और मोरी बिल्डिंग कंपनी मंदिर के आसपास कुछ शानदार होटलों का निर्माण करके इलाके में बदलाव करना चाहते हैं. वहां से एक पक्का रास्ता श्रद्धालुओं को मंदिर तक ले जाने के लिए बनाया जा जाएगा. जंगल में बने इस मंदिर के आसपास अच्छे होटलों और अन्य सुविधाओं से यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आसानी होगी जिससे प्रबंधकों को आर्थिक मुनाफा होगा.
जापान में मंदिरों का तकनीक से जुड़ा होना कोई नई बात नहीं. इनसे बढ़िया मुनाफा भी होता है. हाल में लगी प्रदर्शनी में ईहीजी का ड्रोन से लिया गया वीडियो शामिल था जिसे एक संत ने बनाया था. लेकिन दुनिया के दूसरे हिस्सों के मुकाबले क्योटो के बाहरी इलाकों में स्थित धार्मिक स्थल विदेशी पर्यटकों को लुभाने में खास कामयाब नहीं रहे हैं. जहां पहुंचना मुश्किल होता है उन इलाकों के मठ और मंदिर पर्यटन से होने वाले मुनाफों से वंचित रह जाते हैं.
भारत में हर दिन मंदिरों में कई टन फूल चढ़ाए जाते हैं और बाद में इन्हें नदियों में बहा दिया जाता है जिससे नदियों को बहुत नुकसान होता है. इसे बदलने के लिए एक गैर सरकारी संगठन ने नया रास्ता निकाला गया है.
तस्वीर: DWअकेले राजधानी नई दिल्ली में ही छोटे बड़े 23,000 मंदिर हैं. इन मंदिरों के बाहर फूल वालों की दुकान एक आम दृश्य है.
तस्वीर: picture alliance/DINODIAदिल्ली के मंदिरों से हर दिन 20,000 किलोग्राम फूल कचरे बन जाता है. यह शहर के जैविक कचरे का पचास फीसदी है.
तस्वीर: DW/A. Ashrafइनमें से 80 प्रतिशत फूल यमुना नदी में बहा दिए जाते हैं. यमुना की सफाई पर सरकार 27 अरब डॉलर खर्च चुकी है.
तस्वीर: DW/A. Ashrafओआरएम ग्रीन नाम के एनजीओ ने नदियों को गंदगी और प्रदूषण से बचाने का एक अच्छा विकल्प निकाला है.
तस्वीर: DW/A. Ashrafएनजीओ ने फूल पत्तियों को प्रोसेस करने की मशीन तैयार की है. उससे जैविक ईंधन बनाया जा सकता है.
तस्वीर: DW/A. Ashrafभारत में लोग नदी को पवित्र मानते हैं, लेकिन फिर भी वे गंदी हैं. तवी नदी से कूड़ा छांटता हुआ एक बच्चा.
तस्वीर: picture alliance / dpaइसे दिल्ली के साईं बाबा मंदिर में लगाया गया है. ऐसी और तीन मशीनें दिल्ली के दूसरे मंदिरों में लगेंगी.
तस्वीर: DW/A. Ashrafभविष्य में इन मशीनों के जरिए केवल फूल ही नहीं, बल्कि पौधों के तनों को भी प्रोसेस किया जा सकेगा.
तस्वीर: DW/A. Ashrafसारे देश में ऐसी मशीनें लग जाएं तो मंदिरों में सच्ची पूजा हो सकेगी जो पर्यावरण के हित में भी होगी.
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ईहीजी के उपनिरीक्षक रेव शोडो कोबायाशी के मुताबिक, "ईहीजी ऐसा मंदिर है जो बाकी दुनिया से अलग थलग है. लेकिन हम अपने समुदाय से कट कर नहीं रह सकते. हमें पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय सरकार की जरूरतों में मदद करनी है." ईहीजी में रहने वाले संतों और यहां के प्रशिक्षण केंद्रों के लिए भी आर्थिक मदद की जरूरत है. लेकिन यहां आने वालों की संख्या साल भर में मात्र पांच लाख ही रह गई है. यह संख्या 1980 के दशक के मुकाबले दो तिहाई है, जब जापानी कंपनियां यहां के टुअर कराया करती थीं.
मंदिर के पास ही 1.3 अरब येन की लागत वाला दो मंजिला होटल बनाया जाएगा जो आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा. 2020 तक पूरे किए जाने की योजना वाले इस प्रोजेक्ट में होटलों को मंदिर से जोड़ने वाले रास्ते भी शामिल हैं जिन पर स्थानीय प्रशासन काम करेगा. ईहीजी गांव के एक अधिकारी शाउजी कावाकामी कहते हैं, "रहने की जगह होगी तो सैलानी यहां ज्यादा समय और धन खर्चेंगे." स्थानीय अधिकारियों को उम्मीद है कि 2025 तक वे सैलानियों की संख्या दोगुनी करने में कामयाब हो सकेंगे.
एसएफ/आरआर (रॉयटर्स)
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक प्रोजेक्ट के जरिए तीन धर्मों को एक छत के नीचे एक किया जा रहा है. यहां मुसलमान, कैथोलिक और यहूदी धर्मावलम्बी एक ही जगह प्रार्थना कर सकेंगे. यह प्रार्थनागृह आम लोगों के चंदे से बनेगा.
तस्वीर: Lia Darjesबर्लिन में जल्द ही एक ऐसी जगह होगी जहां तीन धर्मों के लोग एक ही छत के नीचे प्रार्थना और ईश वंदना कर सकेंगे. यह प्रार्थना भवन तीन अब्राहमी धर्मों इस्लाम, ईसाइयत और यहूदियों को एक साथ लाएगा.
तस्वीर: KuehnMalvezziहाउस ऑफ वन के विचार को पास्टर ग्रेगोर होबैर्ग, रब्बी तोविया बेन-चोरिन और इमाम कादिर सांची अमली जामा पहना रहे हैं. कादिर सांची का कहना है कि तीनों धर्म अलग अलग रास्ता लेते हैं लेकिन लक्ष्य एक ही है.
तस्वीर: Lia Darjesजहां इस समय साझा प्रार्थना भवन बन रहा है वहां पहले सेंट पेट्री चर्च था जिसे शीतयुद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया. आर्किटेक्ट ब्यूरो कुइन मालवेजी ने हाउस ऑफ वन बनाने के लिए चर्च के फाउंडेशन का इस्तेमाल किया है.
तस्वीर: Michel Koczyशुरू में कोई मुस्लिम संगठन इस प्रोजेक्ट में शामिल नहीं होना चाहता था. बाद में तुर्की के मॉडरेट मुसलमानों का संगठन एफआईडी राजी हो गया. उन्हें दूसरे इस्लामी संगठनों के उपहास का निशाना बनना पड़ा.
तस्वीर: KuehnMalvezziइस प्रोजेक्ट को नियमित रूप से आलोचना का निशाना बनाया गया है. कैथोलिक गिरजे के प्रमुख प्रतिनिधि मार्टिन मोजेबाख को शिकायत है कि इमारत की वास्तुकला इसकी धार्मिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करती.
तस्वीर: Lia Darjesहाउस ऑफ वन प्रोजेक्ट के संचालक इसके विकास में आम लोगों की भूमिका के महत्व से वाकिफ हैं. इसलिए वे चंदे पर भरोसा कर रहे हैं. इमारत बनाने में 43.5 लाख ईंटें लगेंगी. हर कोई इन्हें खरीद सकता है.
तस्वीर: KuehnMalvezziइस प्रोजेक्ट के कर्णधारों की उम्मीद है कि नई इमारत तीनों धर्मों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान का केंद्र बनेगी और इसकी वजह से पारस्परिक आदर पैदा होगा. पड़ोसी के बारे में जानना उन्हें करीब लाता है.
तस्वीर: Lia Darjes