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जापान में परमाणु विकिरण का स्तर पांच

१८ मार्च २०११

जापान की परमाणु सुरक्षा एजेंसी ने फुकुशिमा रिएक्टर से विकिरण के खतरे का स्तर और बढ़ा दिया है. खतरे का स्तर पांच कर दिया गया है. यह 1979 में पेनसिलवेनिया में हुई दुर्घटना के बराबर है.

तस्वीर: AP

फ्रांस की परमाणु सुरक्षा एजेंसी ने जापान के विकिरण को छठे स्तर पर रखा है. फ्रांसीसी एजेंसी ने विकिरण को जापानी आकलन से भी ज्यादा खतरनाक बताया है. परमाणु विकिरण के खतरे को एक से सात तक के स्तर पर रखा जाता है. सात सबसे ज्यादा खराब स्थिति होती है.

हालांकि जापानी एजेंसी ने फुकुशिमा हादसे को पांच के स्तर पर रखा है. इंटरनेशनल न्यूक्लियर इवेंट स्केल के मुताबिक स्तर पांच का मतलब है कि ''एक ऐसा हादसा जिसके व्यापक परिणाम होंगे.'' यह परिणाम स्थानीय इलाके तक ही सीमित नहीं रहेंगे.

लेकिन विशेषज्ञ समझ नहीं पा रहे हैं कि स्थिति को कैसे नियंत्रित किया जाए. जापान के व्यापार मंत्री काइएडा ने कहा, ''हमने रिएक्टर के कंटनेर को पानी से भरने का फैसला किया. पानी में बोरिक अम्ल भी डाला जा रहा है ताकि एक अन्य तरह की दुर्घटना न हो.'' अधिकारियों के मुताबिक रिएक्टर के गर्म कंटेनरों में पानी डालने से हाइड्रोजन बनेगी. अगर हाइड्रोजन गैस बाहर नहीं निकलेगी तो एक बड़ा धमाका हो सकता है, जिससे हालत और बुरे हो जाएंगे.

परमाणु रिएक्टरों के इतिहास में अब तक सबसे बुरा हादसा 1986 में चेर्नोबिल में हुआ. उसका स्तर सात था. 26 अप्रैल 1986 को सोवियत रूस के चेर्नोबिल परमाणु रिएक्टर में धमाका हुआ. इस हादसे के बाद निकले रेडियोएक्टिव कण यूक्रेन, बेलारूस, रूस और पश्चिमी यूरोप तक पहुंची. संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक चेर्नोबिल हादसे की वजह से 2005 तक कम से कम 4,000 लोगों की मौत हुई. गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक मौत का यह आंकड़ा सही नहीं हैं. चेर्नोबिल हादसे ने कम से कम 10 हजार जानें लीं.

चेर्नोबिल दुर्घटना से निकले रेडियोएक्टिव कण आज भी साइबेरिया के जंगलों में हैं. अभी भी आशंका जताई जाती है कि अगर साइबेरिया का तापमान बढ़ा तो ये कण फिर दूसरे देशों की तरफ बहने लगेंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: एन रंजन

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