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जारी है पकिस्तान और अमेरिका के बीच तनाव

३१ दिसम्बर २०११

साल 2011 पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ. ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद से दोनों देशों के बीच लगातार खटास बढ़ती ही गई. 2012 में भी इसके सुधरने की उम्मीद फिलहाल तो नजर नहीं आ रही.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मई में अमेरिकी फौजियों ने दुनिया के सबसे बदनाम आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया. बिन लादेन छह साल से इस्लामाबाद के पास एबटाबाद के एक घर में रह रहा था. पाक सरकार ने अमेरिका की इस कार्रवाई को अपनी संप्रभुता पर हमला बताया. ऐसे भी आरोप लगे कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना ने ही बिन लादेन को वहां छिपाया हुआ था. इसी कारण अमेरिका में पाकिस्तान के खिलाफ कई आवाजें उठी. लेकिन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद में किसी तरह की कटौती नहीं की.

तस्वीर: AP

सीआईए और आईएसआई में दरार

वैसे बिन लादेन की मौत से पहले ही दोनों देशों के बीच दरारें आनी शुरू हो गई थीं. फरवरी में सीआईए के एजेंट रेमंड डेविस ने लाहौर में दो पाकिस्तानी नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी. इसके बाद रेमंड डेविस को गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान ने ब्लड मनी समझौते के तहत डेविस को रिहा कर दिया. लेकिन पाक सरकार ने सीआईए से अपने जासूसों की संख्या घटाने और ऑपरेशनों में कमी करने को कहा. यह सीआईए और आईएसआई के बीच खराब संबंधों की पहली सार्वजनिक झलक थी.

तस्वीर: AP

शम्सी एयरबेस पर तनाव

अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने हाल ही में एक खबर में कहा है कि अमेरिकी सरकार ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को सीमित करने का मन बना लिया है. पाकिस्तान को मिलने वाली वार्षिक मदद कम की जाएगी और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के साथ सहयोग की नीति को खारिज कर दिया जाएगा.

ऐसे ही कुछ तेवर पाकिस्तान के भी हैं. उसने पिछले महीने नाटो के हमले में मारे गए 24 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत के मामले में अमेरिकी सेना की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. पाकिस्तान ने इसे आक्रामक कार्रवाई बताया और अमेरिका से माफी मांगने को कहा. अमेरिका और नाटो ने इस घटना पर खेद तो जाहिर किया लेकिन आधिकारिक तौर पर कोई माफी नहीं मांगी.

नाटो के हमलों के जवाब में पाकिस्तान ने उसकी सप्लाई को अफगानिस्तान जाने से रोक दिया और अमेरिका से भी कह दिया कि शम्सी एयरबेस को खाली कर दे. कहा जाता है कि पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी इलाकों में आतंकवादियों पर हमला करने के लिए इसी बेस का इस्तेमाल किया जाता था.

तस्वीर: AP

"पाकिस्तान अमेरिका की कठपुतली"

पाकिस्तानी विशेषज्ञ मानते हैं कि 2012 में दोनों देशों के संबंधों में सुधार की गुंजाइश कम ही है. कराची विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने वाले डॉ. नईम अहमद मानते हैं कि संबंधों और खराब भी हो सकते हैं, "दोनों देशों ने नुकसान की भरपाई करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं." हालांकि नईम अहमद मानते हैं कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ खराब संबंध बनाए रखने का जोखिम नहीं उठा सकता.

कुछ लोगों का यह भी मानना है की दोनों देश संबंधों के खराब होने का बहाना कर रहे हैं. बलूचिस्तान के एक रिसर्चर ने नाम जाहिर न की शर्त पर डॉयचेवेले से कहा, "पाकिस्तान अमेरिका की कठपुतली है और संबंधों में दरार एक नाटक है. पाकिस्तान वही करता है जो अमेरिका उससे कहता है. उसके बदले पाकिस्तान को पैसा मिलता है."

तस्वीर: DW

अफगानिस्तान को लेकर तकरार

अमेरिका अफगानिस्तान में अपना तामझाम समेट रहा है. एक दशक तक वहां रहने के बाद अब नाटो सेनाएं वापसी की तैयारी में हैं. 2014 में वे वापस चली जाएंगी. अमेरिकी अधिकारी कहते रहे हैं कि पाकिस्तान को हक्कानी नेटवर्क पर कार्रवाई करनी चाहिए. यही हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में नाटो सेनाओं की दुश्मन है. लेकिन पाकिस्तान ऐसा करने का जोखिम नहीं उठाना चाहता. वह चाहता है कि पश्चिमी सेनाओं के जाने के बाद अफगानिस्तान पर उसका प्रभाव कायम रहे. पश्चिमी देश कहते हैं कि ऐसा करने के लिए पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क और दूसरे आतंकी संगठनों की मदद कर रहा है.

नईम कहते हैं, “पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान की ज्यादा अहम भूमिका चाहता है. वॉशिंगटन और काबुल भी तालिबान का सहयोग चाहते हैं और इसके लिए बातचीत शुरू हो जाने की खबरें भी हैं. लेकिन वे दोनों पाकिस्तान को इस बातचीत से बाहर रखना चाहते हैं. पाकिस्तान इस बात को पचा नहीं पा रहा.”

रिपोर्टः शामिल शम्स / ईशा भाटिया

संपादनः एन रंजन

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