दैनिक भास्कर समूह और टीवी चैनल भारत समाचार के दफ्तरों पर आयकर विभाग ने छापे मारे हैं. दोनों संस्थानों को केंद्र और राज्य सरकारों के मुखर आलोचकों के रूप में देखा जाता है. छापों को उनकी पत्रकारिता से जोड़ कर देखा जा रहा है.
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मीडिया में आई खबरों में दावा किया जा रहा है कि कई राज्यों में दैनिक भास्कर से जुड़े कई ठिकानों पर एक साथ छापे मारे गए हैं. इनमें दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में 35 ठिकाने शामिल हैं. सरकार ने इन छापों पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है लेकिन सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि छापे टैक्स चोरी के आरोपों की जांच के उद्देश्य से मारे गए. हालांकि कई पत्रकारों, एक्टिविस्टों और विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार इनकम टैक्स छापों के जरिए दैनिक भास्कर को सरकार की आलोचना वाली खबरें छापने की सजा दे रही है.
अखबार का कहना है कि यह "गंगा में लाशों से लेकर कोरोना से मौतों के सही आंकड़े देश के सामने रखने" के लिए समूह पर "सरकार की दबिश" का सबूत है. अखबार के कुछ वरिष्ठ संपादकों ने इस बारे में ट्वीट भी किया. दैनिक भास्कर डीबी कॉर्प समूह का हिस्सा है जिसे भारत के सबसे बड़े अखबार समूह के रूप में जाना जाता है. इसके चार भाषाओं में 66 संस्करण निकलते हैं. अखबार 12 राज्यों में चार करोड़ पाठकों तक पहुंचता है. समूह मुंबई शेयर बाजार में लिस्टेड है और अधिकांश शेयरों पर भोपाल के अग्रवाल परिवार का स्वामित्व है.
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निर्भीक पत्रकारिता
बीते कुछ महीनों में समूह ने देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के असर की काफी निर्भीक कवरेज की थी. विशेष रूप से अखबार ने उत्तर प्रदेश के हर जिले में रिपोर्टर भेज कर गंगा नदी में तैर रही और गंगा के किनारे दफनाई गई लाशों का सच निकालने की कोशिश की थी. इन्हीं रिपोर्टों में पहले सामने आया था कि दूसरी लहर के बीच गंगा के किनारे पूरे उत्तर प्रदेश में हजारों शव दफनाए गए हैं, लेकिन यह सब कोरोना पीड़ित थे या नहीं ये कोई नहीं जानता.
बाद में अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स ने दैनिक भास्कर के मुख्य संपादक ओम गौड़ का लिखा सम्पादकीय छापा. संपादकीय का शीर्षक था, "मृतकों को लौटा रही है गंगा. वो झूठ नहीं बोलती."
इसके बाद दूसरी लहर के दौरान महामारी के प्रबंधन में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से हुई चूकों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई. इसके अलावा अखबार ने मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भी सरकारी दावों की पोल खोली और हकीकत सामने लाने का काम किया. गुजरात में जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ने रेमडेसिवीर दवा की भारी कमी के बीच उसकी 5,000 खुराक मुफ्त बांटने का वादा किया तो इसी समूह के गुजराती अखबार दिव्य भास्कर ने अखबार के पहले पन्ने पर उनका मोबाइल नंबर छाप दिया.
पहला शिकार नहीं
दैनिक भास्कर के अलावा उत्तर प्रदेश में प्रसारित किए जाने वाले समाचार टीवी चैनल भारत समाचार के दफ्तर और उसके संपादक बृजेश मिश्र के घर पर भी आयकर विभाग ने छापे मारे. इन सभी छापों पर जब संसद में हंगामा हुआ तो केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, "एजेंसियां अपना काम करती हैं, हम उसमें हस्तक्षेप नहीं करते हैं." इससे पहले भी कई ऐसे मीडिया संस्थानों पर केंद्रीय एजेंसियां छापे मार चुकी हैं जो गाहे बगाहे केंद्र सरकार से सवाल पूछते रहते हैं.
एनडीटीवी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग 2014 से जांच कर रहा है. 2017 में सीबीआई ने चैनल के मालिकों राधिका रॉय और प्रणय रॉय के निवास पर छापे मारे थे. 2018 में द क्विंट वेबसाइट और उसके मालिक राघव बहल से जुड़े ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापे मारे थे. फरवरी 2021 में ईडी ने न्यूजक्लिक वेबसाइट के दफ्तर पर भी छापा मारा.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
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पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.