जिज्ञासा शांत करता है मंथन
२८ नवम्बर २०१३मंथन में दी गई जानकारियां सबसे रोचक और नई होती हैं. खासतौर से आपका प्रस्तुत करने का तरीका बहुत ही आकर्षक है. मानसीजी की मुस्कराहट तो बहुत ही सुंदर होती है. मंथन की पूरी टीम ही बहुत अच्छी है. मेरे ख्याल से भारत में अब तक का यह सबसे नया और बेस्ट प्रेजेंटेशन है. ऐसी ज्ञानवर्धक जानकारियां देने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद. क्या आप मंथन में वैज्ञानिकों की जीवनी के बारे में कुछ रोचक जानकारियां बता सकते हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिल सके.
दीपक वैष्णव, अजमेर, राजस्थान
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आप हर सप्ताह मंथन प्रोग्राम नयी जानकारियों के साथ लाते हैं. जब शनिवार नजदीक होता है तो मन में बडी खुशी रहती है कि फिर नई नई जानकारियां मिलेगी और वैसा ही होता है. आने वाले शनिवार से मंथन क्विज होने वाली है यह जानकारी फेसबुक पर पढ़ी, बहुत ही खुशी हो रही है कि आप यह मौका उन्हें भी दे रहे हैं जो पहली मंथन क्विज के विजेताओं की लिस्ट मे नहीं रहे.
आबिद अली मंसूरी, देशप्रेमी रेडियो लिस्नर्स क्लब, बरेली, उत्तर प्रदेश
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मुझे आपका मंथन प्रोग्राम बहुत पसंद है क्योंकि यहां जो विज्ञान सम्बंधित जानकारियां मिलती हैं वे हमें किसी भी अखबार या डिस्कवरी चैनल पर नहीं मिलती. मैं जानना चाहता हूं कि एंड्रॉयड ऐप, गेम्स या सॉफ्टवेयर कौन सी भाषा में बनते हैं .
विशाल सिंह, उत्तर प्रदेश
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सोशल मीडिया के माध्यम से DW से जुड़े हुए कई महीने गुजर गए, समय का कुछ पता ही नही चला. कारण हर प्रकार की खबरें चाहे वह राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, खेलकूद की हलचल, विज्ञान से जुड़ी जानकारियां, ऐतिहासिक परिदृश्य, मनोरंजन, पर्यटन, व्यापार जगत की उथल पुथल, स्वास्थ्य संबन्धी जानकारी, जलवायु परिवर्तन, कोई भी विषय अछूता नही रहता. एक मंच पर आप पाठकों के लिये सब कुछ परोस देते हैं. पर कहते हैं मनुष्य लालची एवं स्वार्थी होता है. आपसे एक फरमाइश है, आप किसी एक विषय पर आनलाइन लाइव चर्चा कराएं पाठकों के साथ और किसी गणमान्य व्यक्ति को आमंत्रित कर सवाल जवाब का दौर चलाएं ताकि पुराना एहसास जीवित रहे और ज्ञानवर्धन भी होता रहे.
मुहम्मद सादिक आजमी, ग्राम लोहिया,पोस्ट अमिलो, जिला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
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मेरा यह संदेश डीडब्ल्यू हिन्दी की मंथन टीम के लिए है. पिछले एपिसोड में आपने दांतों की सुरक्षा के बारे में अच्छी जानकारी दी. मेरी एक जिज्ञासा मैं मंथन के जरिए शांत करना चाहता हूं. कृपया आगामी दिनों में किसी नामी ENT (नाक-कान-गला) विशेषज्ञ को भी आमंत्रित कीजिए और आज की एक आम बीमारी एलर्जी-सायनस के बारे में बातचीत कीजिए. साथ ही मैं यह खास तौर से जानना चाहता हूं कि क्या 'हमारे कान में कीड़े भी पाए जाते हैं?' क्योंकि पिछले दिनों मैंने कहीं पर एक महिला को एक साधारण नली की सहायता से कानों में से कीड़े निकालते हुए देखा था. मैंने बहुत ध्यान से देखा इसमें कोई जालसाजी अथवा ठगी की बात नहीं थी. हालांकि वह इससे अपनी आजीविका कमा रही थी. फिर भी मैंने जब बहुत जोर देकर उससे पूछा कि इसका कारण क्या है. उसने बताया कि हमारे कान में जमा होती मैल की नमी के संपर्क में आने से ऐसा होता है, पर ये कीड़े कोई नुकसानदायक नहीं होते. कृपया मेरी यही जिज्ञासा मंथन के मंच से शांत करने की कृपा करें.
माधव शर्मा, राजकोट, गुजरात
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हिंदी और उर्दू के रिश्ते पर आपकी रिपोर्ट पढ़ी. सच कहूं तो इसकी तारीफ में इतना ही कह सकता हूं कि मजा आ गया. कुलदीपजी ने बहुत मेहनत की इस रिपोर्ट को तैयार करने में. अगर इन दोनों भाषाओं की लिपि एक होती तो गजल के शौकीनों के तो मजे हो जाते. वैसे आज ज्यादातर गजलें देवनागरी में आ गई हैं. कुलदीपजी ने सही कहा कि मीर, गालिब, इकबाल, फिराक, फैज, इंतजार हुसैन, अहमद फराज और फहमीदा रियाज को जितना हिन्दी के पाठक पढ़ रहे हैं, उतना शायद उन्हें उर्दू के पाठक भी न पढ़ रहे हों. एकदम सही मुद्दा रेखांकित किया उन्होंने. इस शानदार प्रस्तुति के लिए आपको तहेदिल से शुक्रिया.
उमेश कुमार यादव, लखनऊ
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संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः एन रंजन