चार बच्चों वाली महिलाओं से हंगरी आयकर नहीं लेगा. ज्यादा बच्चों के लिए हंगरी ने और कई कदमों की घोषणा की. यूरोप में आबादी और आप्रवासन के संकट से निबटने के लिए ये हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का नुस्खा है.
तस्वीर: drubig-photo - Fotolia
विज्ञापन
आबादी का संकट हो या विदेशियों का संकट. यूरोप दोनों संकटों से जूझ रहा है. एक तो यहां की आबादी लगातार घट रही है, दूसरी ओर बहुत से विदेशी यहां आकर रहना भी चाहते हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने यूरोप आने वाले शरणार्थियों को समाज में घुला मिला कर कामगारों की कमी का संकट पूरा करने की कोशिश की थी लेकिन लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया.
पार्टी के अंदर बढ़ते असंतोष और चुनावों में लगातार घटते समर्थन ने मैर्केल को पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अब उनकी पार्टी की नई प्रमुख आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर वर्कशॉप वार्ताओं के जरिए पार्टी के भटके सदस्यों और आम समर्थकों को फिर से पार्टी के करीब लाने की कोशिश कर रही हैं.
यूरोपीय स्तर पर अंगेला मैर्केल की शरणार्थी नीति ने बहुत से दक्षिणपंथी नेताओं को भी नाराज किया, खासकर पूर्वी यूरोप में. वे शरणार्थी विरोधी रवैया अपनाकर अपने यहां पॉपुलिस्टों को मजबूत होने से रोक पाए, लेकिन यूरोप में महत्वपूर्ण नीतियों पर बंटवारे का कारण बने. उन्हीं में से एक हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान हैं जो यूरोप आए शरणार्थियों के एक हिस्से को लेने से दृढ़ता से मनाकर और मुस्लिम शरणार्थियों के खिलाफ झंडा उठाकर और मजबूत होते गए.
लेकिन यूरोप में आबादी का संकट बना हुआ है और खाली पड़ी नौकरियों में विदेशियों की भर्ती अर्थव्यवस्था चलाते रहने और आर्थिक विकास का एकमात्र विकल्प दिखता है. ऐसे में ओरबान ने एक नया विकल्प दिया है. महिलाओं की प्रजनन क्षमता बढ़ाने का विकल्प. वे सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर इस नुस्खे को अपनाना चाहते हैं ताकि हंगरी की महिलाएं ज्यादा बच्चे पैदा करें. इसके लिए उन्होंने महिलाओं को आर्थिक प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव दिया है. अपने को अनुदारवादी लोकतंत्र का समर्थक कहने वाले ओरबान ने राष्ट्र की स्थिति पर अपने भाषण में जन्मदर में कमी का जिक्र करते हुए कहा, "ये है हंगरी का जवाब, आप्रवासन नहीं."
हंगरी के प्रधानमंत्री ने महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए जिन कदमों की घोषणा की है, उनमें एक है पहली बार शादी करने वाली 40 साल तक की उम्र की महिलाओं को 1 करोड़ फोरिंट (25 लाख रुपये) का कर्ज देना. पहले बच्चे के पैदा होने के बाद कर्ज वापसी को तीन साल के लिए रोक दिया जाएगा. दूसरा बच्चे पैदा होने के बाद कर्ज का एक तिहाई और तीसरे बच्चे के पैदा होने के बाद पूरा कर्ज माफ कर दिया जाएगा.
युवा लोगों को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मकान खरीदने के लिए कर्ज की सुविधा में भी सुधार किया जा रहा है. भविष्य में कर्ज के लिए सरकारी गारंटी भी बच्चों के हिसाब से दी जाएगी. तीन बच्चों वाले परिवार को सात सीटों वाली कार खरीदने के लिए सरकार 25 लाख फोरिंट की सबसिडी देगी. चार या चार से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली और उनकी परवरिश करने वाली महिलाओं को जिंदगी भर आयकर नहीं देना होगा.
साइप्रस में सबसे कम बच्चे पैदा होते हैं
साइप्रस में सबसे कम बच्चे पैदा होते हैं
दुनिया के कई देशों में बच्चा न चाहने के चलते जनसंख्या स्तर गड़बड़ाने लगा है. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) की रिपोर्ट में कुछ ऐसे ही आंकड़े पेश किए गए हैं.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
असामान्य बढ़ोतरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में जनसंख्या का स्तर असमान रूप से बढ़ा है. 1950 में दुनिया में कुल आबादी जहां 2.6 अरब थी वहीं 2017 तक यह बढ़कर 7.6 अरब हो गई. जनसंख्या वृद्धि के असमान स्तर में आय और इलाके के हालात की भी बड़ी भूमिका होती है.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
यूरोप और अमेरिकी देश
यूरोप समेत उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के तकरीबन 91 देशों में लोग बच्चा पैदा करने को तरजीह नहीं दे रहे हैं. जन्मदर इतनी भी नहीं है कि देश की जनसंख्या के मौजूदा स्तर को बनाए रखा जा सके. वहीं एशिया और अफ्रीका में जन्मदर लगातार बढ़ रही है.
तस्वीर: Colourbox
एक महिला, सात बच्चे
अफ्रीकी देश नाइजर में एक महिला औसतन सात बच्चों को जन्म देती है. आईएचएमई के प्रोफेसर अली मोकदाद कहते हैं कि जनसंख्या बढ़ोतरी में एक अहम कारण है साक्षरता. अगर महिला पढ़ाई-लिखाई में अधिक समय बिताती है, तो देर से गर्भधारण करती है.
तस्वीर: DW/F. Muvunyi
सबसे कम बच्चे
स्टडी के नतीजे कहते हैं कि यूरोपीय देश साइप्रस में दुनिया के सबसे कम बच्चे पैदा होते हैं. यहां एक महिला औसतन एक बच्चे को ही जन्म देती है. वहीं माली, अफगानिस्तान, चाड जैसे देशों में एक महिला औसतन छह बच्चे पैदा करती है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/McPHOTO
धरती पर बोझ
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 21वीं शताब्दी के मध्य तक दुनिया की आबादी बढ़कर 10 अरब हो जाएगी. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि धरती कितने लोगों का बोझ उठा सकेगी. विशेषज्ञ मानते हैं विकासशील देशों में आबादी बढ़ती जा रही है, वहीं उनकी अर्थव्यवस्थाएं भी बढ़ रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Röth
बढ़ती जीवन प्रत्याशा
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जैसे-जैसे देशों की आर्थिक स्थिति अच्छी होगी, जन्मदर में गिरावट आएगी. साइंस पत्रिका लैसेंट में छपी एक स्टडी के मुताबिक साल 1948 में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा दर 48 तो महिलाओं में 53 थी, जो अब बढ़कर पुरुषों में 71 और महिलाओं में 76 हो गई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/blickwinkel/K. Wothe
मौत का कारण
आईएचएमई की स्टडी के मुताबिक दुनिया में दिल की बीमारियों के चलते सबसे अधिक मौतें होती हैं. उज्बेकिस्तान, यूक्रेन और अजरबाइजान जैसे देशों में दिल की बीमारियों के चलते सबसे अधिक मौतें होती हैं, वहीं दक्षिण कोरिया, जापान और फ्रांस में यह आंकड़ा सबसे कम है. रिपोर्ट: अपूर्वा अग्रवाल (एएफपी)
विक्टर ओरबान की ये घोषणाएं अगले साल होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों से भी जुड़ी हैं. यूरोप में वे आप्रवासन विरोधी कंजरवेटिव पार्टियों को इकट्ठा करने की कोशिश करते रहे हैं. अपने भाषण में उन्होंने कहा कि वे आप्रवासन को बढ़ावा देने वाले बहुमत को रोकना चाहते हैं. उन्होंने मध्यमार्गी पार्टियों पर, जिनमें यूरोपीय पीपुल्स पार्टी भी है और ओरबान की फिदेश पार्टी उसकी सदस्य है, आप्रवासन को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. उन्होंने यूरोपीय संघ पर अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा निर्देशित होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी योजना मुस्लिम आप्रवासन के जरिए यूरोपीय लोगों की पहचान मिटाने की है.
अलग अलग देशों में अनुदारवादी नेता महिलाओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की मांग करते रहे हैं. इस बार ये मांग लोकतांत्रिक देश के एक नेता ने की है और वह भी आप्रवासन विरोधी कदम के रूप में. हंगरी में प्रति महिला प्रजनन दर 1.45 है जोकि यूरोप का औसत 1.58 है. यूरोप में सबसे ज्यादा प्रजनन दर फ्रांस में है जहां प्रति महिला 1.92 बच्चे पैदा होते हैं. सबसे कम प्रजनन दर 1.33 स्पेन में है. प्रजनन दर के मामले में पहले नंबर पर नाइजर है जहां प्रति महिला 7.24 बच्चे पैदा होते हैं. विज्ञान पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 1950 के दशक में हर महिला अपने जीवनकाल में 4.7 बच्चे पैदा करती थी लेकिन अब ये औसत गिरकर 2.4 रह गया है. भारत में ये दर 2.33 है.
विक्टर ओरबान भले ही ये रुख देश में लोकप्रियता बनाए रखने के लिए कर रहे हैं, यूरोप में बड़े पैमाने पर हो रहे आप्रवासन ने आम लोगों में आप्रवासन विरोधी भावना पैदा की है जिसका लाभ अति दक्षिणपंथी पार्टियों और गुटों को मिल रहा है. आम तौर पर आप्रवासन उन देशों से हो रहा है जहां या तो गृहयुद्ध चल रहा है या लोकतंत्र नहीं होने के कारण उदारवादी आर्थिक विकास नहीं हो रहा है. इन समस्याओं से अफ्रीका और एशिया के देशों को खुद निबटना होगा, लेकिन ओरबान की नई नीतियां इस पर बहस का नया आधार दे रही हैं.
आप्रवासन पर विक्टर ओरबान के विवादास्पद बयान
आप्रवासन पर विक्टर ओरबान के विवादास्पद बयान
हंगरी के दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान यूरोपीय संघ में शरणार्थियों के खिलाफ प्रमुख आवाजों में शामिल हैं. विवादों से डरे बिना उन्होंने आप्रवासन को हमला और आप्रवासियों को जहर बताया है.
तस्वीर: Reuters/B. Szabo
"मुस्लिम आक्रमणकारी"
"हम इन्हें मुस्लिम रिफ्यूजी के तौर पर नहीं देखते. हम उन्हें मुस्लिम आक्रमणकारी के तौर पर देखते हैं." ओरबान ने जर्मन दैनिक बिल्ड को एक इंटरव्यू में कहा था. हंगरी के 54 वर्षीय प्रधानमंत्री ने कहा, "हम समझते हैं कि मुसलमानों की बड़ी तादात से समांतर समाज बनेगा क्योंकि ईसाई और मुस्लिम समाज कभी एक नहीं हो सकते."
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
"आप आप्रवासी चाहते थे, हम नहीं"
पर कि क्या जर्मनी का लाखों शरणार्थियों को लेना और हंगरी का किसी को नहीं लेना उचित है, प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का जबाव था, "अंतर ये है कि आप आप्रवासी चाहते थे, हम नहीं." ओरबान ने कहा कि आप्रवासन हंगरी की "संप्रभुता और सांस्कृतिक पहचान" को खतरा पहुंचाता है.
तस्वीर: Reuters/L. Balogh
"आप्रवासन जहर है"
हंगरी के प्रधानमंत्री काफी समय से आप्रवासन के खिलाफ रहे हैं और उसे अपने देश के लिए समस्या बताते रहे हैं. 2016 में उन्होंने कहा था कि हंगरी को "अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए एक भी आप्रवासी की जरूरत नहीं है." उनका कहना है, "आप्रवासन समाधान नहीं बल्कि समस्या है, दवा नहीं जहर है, हमें इसकी जरूरत नहीं."
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP Photo/P. Gorondi
"होमोफोबिया का आयात"
विक्टर ओरबान ने 2015 में लाखों शरणार्थियों को जर्मनी में आने की अनुमति देने के लिए अंगेला मैर्केल की बार बार आलोचना की है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "अगर आप देश में भारी संख्या में मध्य पूर्व के गैर रजिस्टर्ड आप्रवासियों को लेते हैं तो आप आतंकवाद, अपराध, यहूदीविरोध और होमोफोबिया आयात कर रहे हैं."
तस्वीर: Reuters/L. Balogh
"सभी आतंकवादी मूलतः आप्रवासी हैं"
ओरबान ने राष्ट्रीय कोटा के आधार पर शरणार्थी लेने के सदस्य देशों पर यूरोपीय संघ के दबाव की भी आलोचना की है. 2015 में उन्होंने बाहरी सीमा को सुरक्षित बनाने पर जोर दिया था. उन्होंने कहा था, "हां ये स्वीकार्य नहीं है, लेकिन तथ्य ये है कि सभी आतंकवादी मूलतः आप्रवासी हैं."
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Bozon
"समांतर समाज"
ओरबान को पोलैंड जैसे पूर्वी यूरोप की दक्षिणपंथी सरकारों में साथी भी मिला है जो हंगरी की ही तरह ईयू की शरणार्थी नीति का विरोध कर रहे हैं. यूरोपीय संघ में मुस्लिम आप्रवासियों के समेकन पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था, "हम कैसा यूरोप चाहते हैं? समांतर समाज? ईसाई समुदायों के साथ रहता मुस्लिम समुदाय?"