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जिद्दी कोहली के कोहराम से श्रीलंका पस्त

२८ फ़रवरी २०१२

कभी दर्शकों पर बरसने वाले विराट कोहली ने इस बार सारा गुस्सा होबार्ट के ग्राउंड पर निकाला और टूटी फूटी भारतीय टीम में संजीवनी भर दी. अपने करियर की सबसे बड़ी पारी खेलते हुए उन्होंने बोनस अंक के साथ टीम इंडिया को जीत दिलाई.

तस्वीर: AP

पूरे टूर्नामेंट में 200 रन के आस पास ही दम तोड़ देने वाली भारतीय टीम के पास इस असंभव मैच में जीत के लिए 321 रन का लक्ष्य था और बोनस प्वाइंट के लिए यह निशाना 40 ओवर के अंदर भेदना था. मौजूदा भारतीय टीम से इस बात की उम्मीद करना बेमानी था लेकिन यह टीम ऐसी जालिम है कि वही करती है, जिसका अंदाज कोई नहीं लगाता. विराट कोहली ने अपने बल्ले से श्रीलंका की बैंड बजा दी और सिर्फ 86 गेंद में 133 रन की अविश्वसनीय पारी खेल डाली.

कमेंटेटर से लेकर ड्रेसिंग रूम में बैठे वरिष्ठ खिलाड़ी हैरान होकर 22 साल के इस होनहार का चमत्कार देख रहे थे. देख रहे थे कि क्या यह वही है, जिसने ऑस्ट्रेलिया के दर्शकों के सामने बीच वाली अंगुली उठा दी थी या वही है, जो कुछ दिनों पहले दर्शकों को चिढ़ा रहा था. कोहली की इस पारी ने अगर टीम में उनकी जगह पक्की कर दी तो बुजुर्ग हो चले किसी खिलाड़ी को बोरिया बिस्तर बांधने का इशारा भी दे दिया.

तस्वीर: Reuters

कहां से कहां तक

भले ही दो तीन महीने लग गए लेकिन भारत ने होबार्ट में सबको बता दिया कि वर्ल्ड चैंपियन तो वही है. सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग ने पारी की विस्फोटक शुरुआत तो की लेकिन उनके आउट होने के बाद युवा बल्लेबाजों से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं थी. गॉटी का रन आउट होना वापसी का टिकट लग रहा था लेकिन शायद कोहली के दिमाग में कुछ और चल रहा था. उन्होंने सुरेश रैना के साथ मिल कर आखिरी के 120 रन सिर्फ 55 गेंद में बनाए.

श्रीलंका ने शायद आधी दूरी तक इस तरह का बुरा सपना नहीं देखा था. लेकिन अचानक जब भारतीय झंझावात उन्हें बहा ले जाने लगा, तो कप्तान महेला जयवर्धने ने अपना ब्रह्मास्त्र निकाला. 35वां ओवर टीम के सबसे धाकड़ गेंदबाज लसिथ मलिंगा को दिया गया. लेकिन यह ब्रह्मास्त्र श्रीलंका के लिए आत्मघाती साबित हुआ और कोहली ने इस ओवर में 24 रन ठोक कर मलिंगा और लंका की मिट्टी पलीद कर दी. इसी दौरान उन्होंने अपना नौवां शतक भी जड़ा लेकिन इसके बाद की खुशी विनिंग शॉट के लिए बचा कर रख ली.

तस्वीर: AP

एक लुहार की..

श्रीलंका की तरफ से भले दो शतक बने हों, जिसमें तिलकरत्ने दिलशान के 160 रन भी शामिल हैं. लेकिन भारतीय खेमे से सिर्फ नॉट आउट कोहली ही सब पर भारी पड़े. 86 गेंदें, 16 चौके, दो छक्के. मैन ऑफ द मैच के लिए इतना काफी था. मैच के बाद कोहली का कहना था, "40 ओवर में 320 रन बनाने का लक्ष्य आसान नहीं होता और आपको पूरी टीम के साथ मेहनत करनी होती है. हमने ऐसा ही किया. पिछले मैचों की गलतियों से सबक सीखा और यह शायद मेरा सबसे अच्छा मैच रहा. अब हम शुक्रवार को ऑस्ट्रेलिया के लिए दुआ करेंगे."

इस जीत का मतलब यह नहीं कि भारत फाइनल में पहुंच गया है. ड्रामा अभी बाकी है. अगर शुक्रवार के मैच में श्रीलंका ऑस्ट्रेलिया को हरा देता है, या मैच टाई हो जाता है या बारिश हो जाती है, तो आज की सारी मेहनत भी उसी बारिश में धुल जाएगी. हालांकि कप्तान धोनी फिलहाल शॉपिंग की सोच रहे हैं, "एक बार जब हमने ऐसी शुरुआत की तो लगने लगा कि हम इसे पा सकते हैं. आगे हमारे हाथ में कुछ नहीं है. हम एक दो दिन शॉपिंग करेंगे और उसी दौरान ट्रेनिंग भी करेंगे."

मैच ने दो दिन के अंदर दो मिथक तोड़ दिए. एक तो यह कि ओलंपिक में शामिल होने के बाद भारत में हॉकी इस खेल यानी क्रिकेट को पछाड़ सकता है. दूसरा कि क्रिकेट को कभी कभी गेंदबाजों का खेल बताना कितना खतरनाक होता है.  यह बल्लेबाजों का खेल है. और दबी आवाज में यह बात भी उठने लगी है कि होबार्ट में एक खिलाड़ी ने अपने वनडे करियर का आखिरी मैच खेल लिया है. क्रिकेट प्रेमी उन्हें भगवान मानते हैं, लिहाजा नाम लेना ईशनिंदा हो सकती है.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः एन रंजन

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