जिन्हें पृथ्वी जैसे ग्रह समझा...
४ जुलाई २०१४अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जिन्हें खगोलविद पृथ्वी जैसे ग्रह समझ रहे थे वे असल में एक सितारे के गहरे धब्बे थे जिन्हें सनस्पॉट भी कहते हैं. इन्हें पृथ्वी से करीब 22 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित माना जा रहा था. खगोलविद मान रहे थे कि ये ग्रह गोल्डीलॉक्स जोन में स्थित हैं जो कि सितारे से न ज्यादा दूर न ज्यादा पास है. यहां पानी और शायद जीवन की संभावना की भी कल्पना की जा सकती है.
वैज्ञानिक अब तक पृथ्वी जैसे हजारों ग्रहों को ढूंढ चुके हैं. अमेरिकी रिसर्च एजेंसी नासा का कहना है कि अंतरिक्ष में ऐसे अरबों ग्रह हो सकते हैं. इन ग्रहों को सामान्य आंखों या टेलिस्कोप से देखना संभव नहीं है. रिसर्चरों ने उन्हें डॉपलर रेडियल वेलॉसिटी तकनीक की मदद से देखा था. ये दो ग्रह जैसी आकृतियां ग्लीस 581 सितारे की कक्षा में देखी गई थीं. इसीलिए इन्हें ग्लीस डी और ग्लीस जी नाम दिए गए थे.
साइंस पत्रिका में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि सितारे पर होने वाले सनस्पॉट की वजह से डी और जी ग्रहों के होने का गलत अभास था. इनके साथ एक तीसरे ग्रह एफ के होने की भी संभावना जताई जा रही थी. माना जा रहा था कि ये तीनों ग्रह, हो सकता है इस सितारे की परिक्रमा करते हों. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने उस कल्पना को भी खारिज कर दिया है.
कैसे होती है खोज
खगोलशास्त्रियों के पास दूर स्थित ग्रहों को ढूंढने के दो तरीके हैं. नासा केपलर मिशन की मदद से किसी ग्रह को तब देखा जाता है जब वह किसी सितारे के सामने से गुजरता है. उस समय सितारे की उस जगह पर रोशनी कम हो जाती है. इससे ग्रह के साइज का अंदाजा तो लगाया जा सकता है, लेकिन द्रव्यमान का नहीं.
दूसरा तरीका है डॉपलर रेडियल वेलॉसिटी. यह ज्यादा संवेदनशील तरीका है और इससे ग्रह का द्व्यमान भी पता किया जा सकता है. इस अध्ययन में शामिल पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में खगोलशास्त्र के प्रोफेसर एरिक फोर्ड ने बताया, "पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज करने में खगोलशास्त्रियों ने काफी कामयाबी हासिल की है. ये साइज में छोटे, द्रव्यमान में कम और अपने सितारे से समान दूरी पर होते हैं. हम इस दिशा में और आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं."
वह मानते हैं कि यह एक सबक है कि अगर आप तकनीक की सीमा को पार करते हैं तो जो चीजें पहले निरर्थक लगती थीं वहीं अहम हो जाती हैं.
एसएफ/एएम (एएफपी)