हल्के रंग की ड्रेस पहने हुए 17 साल की चांसेले को देखकर लगता है कि वह स्कूल जा रही है. लेकिन वह स्कूल नहीं, बल्कि कहीं और जाती है.
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चांसेले फिलहाल अफ्रीकी देश चाड में रहती है. वह 15 साल की थी, जब से उसने एक सुनसान झोपड़ी में जाना शुरू किया. यहां वह पैसों के लिए अपने शरीर को बेचती है. वह बताती है, "हर हफ्ते तीन से चार लोग मेरे पास आते हैं."
चांसेले 2014 में सेंट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक (सीएआर) से भागकर उत्तर की तरफ चाड में चली आयी. सीएआर में चांसेले के पिता चरमपंथियों के हाथों मारे गये. वहां 2013 से मुस्लिम सेलेका विद्रोही और ईसाई लड़ाके आपस में लड़ रहे हैं.
पिछले साल सीएआर में हिंसा काफी बढ़ गयी है जिसकी वजह से चाड में बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंचे. चाड दुनिया में तीसरा सबसे कम विकसित देश है, जो सूखा और बोको हराम के चरमपंथियों के साथ संघर्ष के चलते कई मुश्किलों में घिरा है.
यह जेनिफर केंपटन हैं. कई साल सेक्स स्लेव रहने के बाद एक रोज वह भाग निकलीं. लेकिन अतीत ने पीछा नहीं छोड़ा. उनकी गर्दन पर एक टैटू उन्हें उस दर्दनाक अतीत की याद दिलाता रहा. और फिर उन्होंने उसी टैटू को अपना हथियार बना लिया.
तस्वीर: Survivor's Ink
6 साल गुलामी के
केंपटन की गर्दन पर उन्हें खरीदने-बेचने वालों के नाम और उस गैंग का निशान गोद दिया गया था. उनकी नाभि के नीचे भी गैंग के निशान का टैटू था. लिखा था, प्रॉपर्टी ऑफ सालेम. सालेम केंपटन का बॉयफ्रेंड था जिसने उन्हें इस गुलामी में धकेला था. ओहायो में केंपटन ने छह साल तक काम किया. वह अपने टैटू के बारे में बताती हैं, "सदियों से गुलामों पर इस तरह के निशान गोदे जाते रहे हैं. ऐसा पूरी दुनिया में हो रहा है."
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मुक्ति का रास्ता
आजाद होने के बाद केंपटन ने एक अभियान छेड़ा. अपनी जैसी और लड़कियों को आजाद कराने का अभियान. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने अपने टैटू से छुटकारा पाया. उसे मिटाया नहीं बल्कि उसे एक बहुत बड़े फूल में तब्दील कर दिया.
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औरों का साथ
ऐसे ही तीन टैटू उन्होंने अलग अलग खूबसूरत प्रतीकों में तब्दील करवा लिए. दो साल पहले केंपटन ने 'सर्वाइवर्स इंक' नाम की संस्था शुरू की. यह संस्था प्रॉस्टिट्यूशन से भागी लड़कियों के टैटू मिटवाने में उनकी मदद करती है.
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आजादी का अहसास
केंपटन बताती हैं कि उन निशानों से छुटकारा पाकर उन्हें एक मजबूती का अहसास हुआ जिसे वह औरों तक भी पहुंचाना चाहती थीं. वह कहती हैं, "मेरे आस पास जिन लड़कियों को जानवरों की तरह गोद दिया गया था, मैं उन्हें भी आजादी का अहसास देना चाहती थी."
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दुनियाभर का दर्द
अब पूरी दुनिया से केंपटन को चिट्ठियां आती हैं. अमेरिका के अलावा कनाडा, ब्रिटन, ऑस्ट्रेलिया और क्रोएशिया की सेक्स वर्कर्स भी उनसे मदद ले चुकी हैं. कुछ कहानियां तो बेहद दर्दनाक होती हैं. केंपटन कहती हैं कि हाल ही में उन्होंने एक ब्रिटिश महिला की मदद की. इस महिला की जांघों पर उसकी मां ने ही लिखवा दिया था, WHORE. बाद में मां ने उसे बेच दिया. और वह जब जब यह टैटू धुंधला पड़ा, उसे दोबारा गुदवाया गया.
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अमेरिका में भी
केंपटन कहती हैं कि यह एक गलतफहमी है कि सिर्फ गरीब देशों की लड़कियों को देह व्यापार में धकेला जाता है. वह दावा करती हैं कि अमेरिका में मौजूद सेक्स वर्कर्स में से 80 फीसदी वहीं जन्मीं हैं.
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कैसे लड़ें
केंपटन कहती हैं कि सख्त कानूनों की जरूरत है. साथ ही वह चाहती हैं कि अपराधी सेक्स खरीदने वाले पुरूषों को बनाया जाए, बेचने वाली औरतों को नहीं.
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चांसेले ने सोचा था कि चाड में उसकी जिंदगी कुछ आसान होगी लेकिन जहां वह सीएआर में बाजार में सामान बेचती थी, वहीं चाड में आकर उसे अपना जिस्म बेचना पड़ रहा है. एसके लिए उसे 250 सीएफए फ्रांक (लगभग 30 रुपये) जैसी छोटी सी रकम मिलती है और इतना ही नहीं, उसके ग्राहक बनने वाली पुरुष कभी कभी उसे पीटते भी हैं.
वह उन्हें कंडोम इस्तेमाल करने के लिए भी नहीं कह सकती है. वह बताती है, "मैं जोखिम नहीं उठा सकती क्योंकि मैंने ऐसा किया तो वह किसी और लड़की के पास चला जायेगा." चांसेले की आर्थिक स्थिति कितनी खराब है, इसका अंदाजा उसकी इन बातों से लगता है, "किसी दिन तो खाने के भी लाले पड़ जाते हैं. किसी दिन मुझे सिर्फ 50 या 100 फ्रैंक मिलते हैं जिससे मैं अपने पेट में कुछ डाल सकूं."
चांसेले के माता पिता चाड में ही पैदा हुए थे. वह उन हजारों लोगों में शामिल हैं जो वापस अपने पूर्वजों की जमीन पर लौटे हैं, लेकिन उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं जिनसे उनकी राष्ट्रीयता साबित हो सके. सदियों तक इस इलाके के व्यापारी और चरवाहे परिवार यूरोपीय औपनिवेशिक ताकतों द्वारा खींची गयी सीमा रेखाओं के आरपार मुक्त रूप से आते जाते रहे हैं.
बच्चों को यौन दुर्व्यवहार से बचाएं
बाल दिवस यानि 14 नवंबर 2012 को भारत में लागू हुए पॉक्सो (POCSO) कानून में बच्चों से यौन अपराधों के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान है. बच्चों को पहले से सिखाएं कुछ ऐसी बातें जिनसे वे खुद समझ पाएं कि उनके साथ कुछ गलत हुआ.
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सबसे ज्यादा शिकार बच्चे
भारत में हुए कई सर्वे में पाया गया कि देश के आधे से भी अधिक बच्चे कभी ना कभी यौन दुर्व्यवहार का शिकार हुए हैं. इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इनमें से केवल 3 फीसदी मामलों में ही शिकायत दर्ज की जाती है.
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बच्चों को समझाएं
बच्चों को समझाना चाहिए कि उनका शरीर केवल उनका है. कोई भी उन्हें या उनके किसी प्राइवेट हिस्से को बिना उनकी मर्जी के नहीं छू सकता. उन्हें बताएं कि अगर किसी पारिवारिक दोस्त या रिश्तेदार का चूमना या छूना उन्हें अजीब लगे तो वे फौरन ना बोलें.
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बच्चों से बात करें
बच्चों को नहलाते समय या कपड़े पहनाते समय अगर वे उत्सुकतावश बड़ों से शरीर के अंगों और जननांगों के बारे में सवाल करें तो उन्हें सीधे सीधे बताएं. अंगों के सही नाम बताएं और ये भी कि वे उनके प्राइवेट पार्ट हैं.
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क्या सही, क्या गलत
ना तो बच्चों को और लोगों के सामने नंगा करें और ना ही खुद उनके सामने निर्वस्त्र हों. बच्चों को नहलाते या शौच करवाते समय हल्की फुल्की बातचीत के दौरान ही ऐसी कई बातें सिखाई जा सकती हैं जो उन्हें जानना जरूरी है.
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बात करें
बच्चों के साथ बातचीत के रास्ते हमेशा खुले रखें. उन्हें भरोसा दिलाएं कि वे आपसे कुछ भी कह सकते हैं और उनकी कही बातों को आप गंभीरता से ही लेंगे. मां बाप से संकोच हो तो बच्चे अपनी उलझन किसी से नहीं कह पाएंगे.
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चुप्पी में छिपा है राज
बच्चों का काफी समय परिवार से दूर स्कूलों में बीतता है. बच्चों से स्कूल की सारी बातें सुनें. अगर बच्चा बेवजह गुमसुम रहने लगा हो, या पढ़ाई से अचानक मन उचट गया हो, तो एक बार इस संभावना की ओर भी ध्यान दें कि कहीं उसे ऐसी कोई बात अंदर ही अंदर सता तो नहीं रही है.
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सही गलत की सीख दें
बच्चों को बताएं कि ना तो उन्हें अपने प्राइवेट पार्ट्स किसी को दिखाने चाहिए और ना ही किसी और को उनके साथ ऐसा करने का हक है. अगर कोई बड़ा उनके सामने नग्नता या किसी और तरह की अश्लीलता करता है तो बच्चे माता पिता को बताएं.
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जब सीएआर में युद्ध शुरू हुआ और बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा और हत्याएं होने लगी तो वहां रहने वाले बहुत से लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गयी. चाड ने विमान भेज कर सीएआर से भाग रहे मुसलमानों को अपने यहां बुलाया. आधिकारिक रूप से सीएआर से आये 70 हजार शरणार्थी दक्षिणी चाड में बनाए गये 20 गांवों में रहते हैं. लेकिन इन गावों से अकसर खाने और दवाओं की किल्लत की खबरें मिलती हैं.
इन्हीं शरणार्थियों में चांसेले भी शामिल है जो कभी स्कूल नहीं गयी. वह बताती है कि कुछ महीने पहले बारिश में उसका राशन कार्ड भी बह गया और दूसरा कार्ड बनवाना लगभग नामुमकिन है. चांसेले का दो साल का एक बच्चा भी है जिसकी देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. इस बच्चे का पिता इलाके को छोड़ कर चला गया है. वह बताती है, "मैं यही रह गयी क्योंकि मेरे पास कोई विकल्प नहीं था."