अफ्रीका के साहेल प्रांत में फ्रांस की पहल पर विशिष्ट यूरोपीय सिपाहियों का एक नया जिहादी विरोधी दस्ता आकार ले रहा है. इसका नाम है टास्क फोर्स ताकूबा और फिलहाल यह दस्ता माली के विशिष्ट फौजी दस्तों की मदद कर रहा है.
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अफ्रीका में उत्तरी माली के एक सैन्य अड्डे के अंदर कॉन्क्रीट का एक खूंटा विशिष्ट यूरोपीय सिपाहियों के एक नए जिहादी विरोधी दस्ते के लिए बनाए गए क्षेत्र को चिन्हित कर रहा है. खूंटे पर फ्रांसीसी, एस्टोनियाई और स्वीडन के झंडे लगे हैं. इस दस्ते का नाम है टास्क फोर्स ताकूबा और यह साझा तैनाती फ्रांस के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.
फ्रांस कई दिनों से अफ्रीका के साहेल प्रांत में इस्लामी आतंकियों के खिलाफ लंबे समय से चल रही अपनी लड़ाई में साझेदारों की तलाश में था. 2012 में माली में जिहादी चरमपंथ की शुरुआत हुई थी और अगले साल फ्रांस ने देश में अपने सिपाही तैनात कर दिए थे. लेकिन वहां उनकी उपस्थिति के बावजूद जिहादी हिंसा पड़ोसी देशों बुर्किना फासो और नाइजर में फैल गई है.
अभी तक हजारों सैनिक और नागरिक हिंसा में मारे जा चुके हैं और लाखों लोगों को अपना घर छोड़ कर जाना पड़ा है. माली की इंसर्जेन्सी का अंत नजर ही नहीं आ रहा है और जनता में इसे लेकर एक समय में इतना आक्रोश था कि पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम बुबाकर कीटा के खिलाफ भारी प्रदर्शन हुए. अगस्त 2018 में एक सैन्य तख्ता पलट के बाद उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा.
नए फौजी दस्ते के लिए जिस अड्डे में जगह बनाई गई है वो गाओ शहर में है. अड्डे में लगभग एक दर्जन फ्रांसीसी और एस्टोनियाई सैनिक एक शामियाने के नीचे बैठे हैं और उनके इर्द-गिर्द भंडारण के लिए कई डब्बे रखे हैं और हल्के सैन्य वाहन खड़े हैं. सैनिक अपने पहले मिशन पर चर्चा कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने पिछले महीने माली और बुर्किना फासो की सीमा पर एक अशांत इलाके में एक स्वीप ऑपरेशन किया था.
इसमें स्थानीय सैनिक और साधारण फ्रांसीसी सैनिक भी शामिल हुए थे. ताकूबा सैनिकों का काम है माली के विशिष्ट फौजी दस्तों की मदद करना, जो मोटरसाइकिलों और पिक-अप ट्रकों में तेज गति से उन इलाकों में घुस जाते हैं जिन पर जिहादी कब्जा कर चुके हैं. फ्रांसीसी-एस्टोनियाई दस्ते के कमांडर औरेलिएन ने बताया, "माली की सेना गांवों में अकेले आई ताकि लोग उन्हें देख सकें" जबकि यूरोपीय सैनिक बिना किसी हलचल के काम करते हैं.
लेकिन ताकूबा अभी शुरूआती चरण में ही है और अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इसमें योगदान करने का वादा करने वाले दूसरे देश अपना वादा कब पूरा करेंगे. इनमें बेल्जियम, चेक गणराज्य, डेनमार्क, जर्मनी, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल और यूके शामिल हैं. इस समय साहेल प्रांत में ऑपरेशन बरखाने के तहत फ्रांस ने 5100 सैनिक तैनात किए हुए हैं.
2013 में माली में पहली बार हस्तक्षेप करने के बाद 45 सिपाही मारे भी गए हैं. ताकूबा के लिए एक सफल शुरुआत लंबी अवधि में उसकी सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और फ्रांस के लिए दावे पर बहुत कुछ लगा हुआ है, क्योंकि वो धीरे धीरे इलाके में अपनी सैन्य तैनाती को कम करना चाहता है.
पैगंबर के कार्टून पर इस्लामी देश और फ्रांस आमने-सामने
फ्रांस के राष्ट्रपति के इस्लाम पर दिए बयान की अरब देशों के साथ कई एशियाई देशों में कड़ी आलोचना की जा रही है. बड़ी संख्या में मुस्लाम उनके बयान की निंदा कर रहे हैं. अब फ्रांस के उत्पादों का बहिष्कार भी शुरू हो गया है.
तस्वीर: Teba Sadiq/Reuters
मुसलमानों में नाराजगी
मंगलवार, 27 अक्टूबर को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक बड़ी रैली का आयोजन हुआ. फ्रांस के खिलाफ हुई रैली में लाखों लोगों ने हिस्सा लिया और कहा जा रहा है कि यह फ्रांस विरोधी अब तक की सबसे बड़ी रैली है. पैगंबर मोहम्मद के कार्टून बनाने के बाद शिक्षक की हत्या और उसके बाद माक्रों के इस्लाम को लेकर बयान से मुसलमान नाराज हैं.
तस्वीर: Suvra Kanti Das/Zumapress/picture alliance
देशों में गुस्सा
सीरिया और लीबिया में लोगों ने सड़क पर उतर कर माक्रों की तस्वीर जलाई और फ्रांस के झंडे आगे के हवाले कर दिए. इराक, पाकिस्तान, कतर, कुवैत और अन्य खाड़ी देशों में फ्रांस में बने उत्पादों का बहिष्कार हो रहा है. अरब देशों में फ्रांस के उत्पाद खासकर मेकअप आइटम काफी लोकप्रिय हैं.
तस्वीर: Suvra Kanti Das/Zumapress/picture alliance
माक्रों ने क्या कहा था?
पेरिस के सोबोन यूनवर्सिटी में पिछले दिनों इतिहास और समाजशास्त्र के शिक्षक सैमुएल पैटी को श्रद्धांजलि देते हुए माक्रों ने कहा था फ्रांस कार्टून और तस्वीर बनाने से पीछे नहीं हटेगा. माक्रों ने अपने बयान में कट्टरपंथी इस्लाम की आलोचना की थी. माक्रों ने कहा था, "इस्लामवादी हमसे हमारा भविष्य छीनना चाहते हैं, हम कार्टून और चित्र बनाना नहीं छोड़ेंगे."
तस्वीर: Francois Mori/Pool/Reuters
अरब देशों की प्रतिक्रिया
माक्रों ने कहा था कि इस्लाम "संकट" में है और इसके बाद अरब देश ही नहीं बड़ी आबादी वाले मुस्लिम देश माक्रों से बेहद नाराज हो गए. सबसे पहले तुर्की ने माक्रों के बयान की निंदा की. तुर्क राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने तो यहां तक कह डाला था कि माक्रों को "मानसिक जांच" की जरूरत है. सऊदी अरब और ईरान के नेताओं ने भी माक्रों के बयान की निंदा की है.
तस्वीर: Adel Hana/AP Photo/picture-alliance
फ्रांस के उत्पादों का बहिष्कार
कतर में कुछ दुकानदारों ने कहा है कि वे फ्रांस के उत्पादों के बहिष्कार का समर्थन करते हैं. इसके साथ ही इस्लाम को मानने वाले ट्विटर पर पैगंबर मोहम्मद के समर्थन में ट्वीट कर रहे हैं और माक्रों के कार्टून छापने पर दिए गए बयान की निंदा कर रहे हैं.
तस्वीर: Hani Mohammed/AP Photo/picture-alliance
पाकिस्तान और तुर्की
माक्रों के खिलाफ सबसे पहले एर्दोवान ने तीखे बयान दिए और उसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्विटर के माध्यम से माक्रों की आलोचना की थी और कहा था कि माक्रों को संयम से काम लेते हुए कट्टरपंथियों को दरकिनार करने की रणनीति पर काम करना चाहिए.
कार्टून विवाद और उसके बाद बयानबाजी के बीच फ्रांस के समर्थन में यूरोपीय देश खड़े हैं. जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स, ग्रीस ने फ्रांस का समर्थन किया है. जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने एर्दोवान द्वारा माक्रों पर निजी टिप्पणी की आलोचना की है.
तस्वीर: Damien Meyer/AFP/Getty Images
शार्ली एब्दो पर एर्दोवान !
फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो ने एक ट्वीट में कहा है कि पत्रिका के अगले संस्करण में राष्ट्रपति एर्दोवान का कार्टून कवर पेज पर छपेगा. अब ऐसी आशंका जताई जा रही है कि पश्चिमी देशों और एर्दोवान के बीच अभिव्यक्ति की आजादी पर जुबानी जंग और तेज होगी.