सकल घरेलु उत्पाद का 24 प्रतिशत गिरना सिर्फ इसी बात का प्रमाण नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वक्त एक बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है बल्कि इस बात का भी स्पष्ट संकेत है कि आने वाला समय भी बहुत ही कठिन होने वाला है.
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अप्रैल से जून तक की इस अवधि में उत्पादन क्षेत्र में 39.3 फीसदी और निर्माण क्षेत्र में 50.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. सेवा क्षेत्र 5.3 फीसदी गिरा है. केवल कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी वृद्धि हुई है. कोविड-19 का असर दुनिया में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा है, लेकिन भारत की स्थिति बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे खराब नजर आ रही है.
आर्गेनाईजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के सिर्फ अनुसार सिर्फ इंग्लैंड की जीडीपी में इस अवधि में भारत जैसी गिरावट देखने को मिली (लगभग 21 प्रतिशत). इसके अलावा फ्रांस में लगभग 14 प्रतिशत, इटली में 13, यूरोपीय संघ में 12, कनाडा में 11, जर्मनी में 10, अमेरिका में लगभग नौ और जापान में लगभग आठ प्रतिशत की गिरावट देखी गई.
अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि पूरे वित्त-वर्ष के दौरान जीडीपी में 37.5 गिरावट होने की संभावना है. इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से जुड़े प्रोफेसर अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया था कि इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में 70 लाख करोड़ रुपए की कटौती होगी और कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर लगभग सभी में निवेश गिरेगा, खपत गिरेगी और सरकार के राजस्व में भी भारी गिरावट आएगी. आरबीआई भी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसी तरह की स्थिति की चेतावनी दे चुका है.
खपत का गिरना सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. भारत में खपत महामारी के पहले से गिर रही थी और महामारी की रोकथाम के लिए लगाई गई तालाबंदी ने इसे पूरी तरह से बैठा ही दिया. हर आय वर्ग में सिर्फ जरूरत की चीजों पर ही खर्च के प्रमाण नजर आ रहे हैं. ना गांवों में मोटरसाइकिलें बिक रही हैं ना शहरों में गाड़ियां. आरबीआई के अनुसार जुलाई में उपभोक्ता विश्वास (कंज्यूमर कॉन्फिडेंस) अपनी इतिहास में सबसे नीचे के स्तर पर पहुंच गया था.
कैसे होगा सुधार
अब सवाल यह है कि सुधार का नुस्खा क्या है? आरबीआई का कहना है कि खपत को प्रोत्साहन देने के लिए निवेश बढ़ना जरूरी है. निजी क्षेत्र को इसी उद्देश्य से कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी गई थी, लेकिन कंपनियों ने उस छूट का उपयोग अपनी उधारी कम करने में और अपने नकदी भंडार को बढ़ाने के लिए किया. सरकारी खर्च से भी खपत को प्रोत्साहन दिया जा सकता है, लेकिन आरबीआई का कहना है कि कोविड-19 के असर को कम करने में सरकारी खर्च बहुत बढ़ गया है और अब और खर्च करने की सरकार के पास गुंजाइश नहीं बची है.
केंद्रीय बैंक ने और कर्ज लेने से भी मना किया है क्योंकि उसके अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों पर पहले से कर्ज का भार काफी बढ़ा हुआ है. ऐसे में समय घाटे और कर्ज को कम करने का है. आरबीआई ने सरकार की कमाई बढ़ने के लिए टैक्स डिफॉल्टरों की पहचान कर उनसे टैक्स वसूलने, लोगों की आय और संपत्ति को ट्रैक कर करदाताओं की संख्या बढ़ाने और जीएसटी तंत्र में आवश्यक सुधार करने का प्रस्ताव दिया है.
इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने स्टील, कोयला, बिजली, जमीन, रेलवे और बंदरगाह जैसे क्षेत्रों में सरकारी संपत्ति को बेचने की भी सलाह दी है. बैंक का कहना है कि इससे सरकार के पास पैसे आएंगे और निजी क्षेत्र को भी निवेश करने का प्रोत्साहन मिलेगा.
जीएसटी के ढांचे की वजह से सरकारी खजाने पर तालाबंदी की मार
तालाबंदी लागू होने के बाद से जीएसटी के तहत होने वाली सरकार की कमाई में गिरावट आई है. जानिए काम-धंधे शुरू हो जाने के बाद भी क्यों गिर रही है जीएसटी वसूली से होनी वाली सरकारी आय.
तस्वीर: DW/S. Bandyopadhyay
वसूली में कमी
जीएसटी वसूली से होने वाली सरकारी कमाई में पिछले साल के मुताबिक लगातार गिरावट आ रही है. जहां पिछले साल अप्रैल के महीने में 1,13,865 करोड़ रुपयों की वसूली हुई थी, इस साल अप्रैल में सिर्फ 32,172 करोड़ रुपए आए.
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तालाबंदी का असर
मई में जीएसटी वसूली लगभग दोगुनी हो कर 62,151 करोड़ तक जरूर पहुंची, लेकिन यह संख्या भी मई 2019 के 1,00,289 करोड़ रुपयों के मुकाबले काफी कम रही. सरकार ने कहा है कि महामारी की वजह से 2020-21 वित्त वर्ष में जीएसटी वसूली से कमाई में 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी आई है.
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करदाताओं की मेहरबानी
जून में इसमें और वृद्धि हुई और वसूली की राशि 90,917 करोड़ रुपयों पर पहुंच गई. लेकिन फिर भी यह एक साल पहले के 99,939 करोड़ रुपयों से कम ही रही. सरकार का कहना है कि जून में बड़ी संख्या में करदाताओं ने फरवरी, मार्च और अप्रैल का टैक्स भी जमा किया क्योंकि उन्हें जून तक कॉविड-19 की वजह से छूट मिली हुई थी.
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असलियत
जुलाई में इसी वजह से जीएसटी वसूली की रकम में संशोधन हुआ और वो गिर कर 87,422 करोड़ पर आ गई. यह जुलाई 2019 की वसूली (10,2082 करोड़ रुपए) के मुकाबले 14 प्रतिशत कम है.
तस्वीर: DW/A. Ansari
स्वाभाविक कमी
जानकारों का कहना है कि जीएसटी की वसूली में कटौती होना स्वाभाविक है, क्योंकि एक तो कई काम-धंधे और खरीद-बिक्री अभी भी बंद हैं, दूसरे तालाबंदी में ढील के बाद से जो आर्थिक गतिविधि शुरू हुई है वो उन्हीं उत्पादों और सेवाओं में हो रही है जिन पर कम दर से जीएसटी लगता है.
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जीएसटी का ढांचा
जीएसटी का ढांचा ही ऐसा है कि जरूरी सेवाएं और खाने-पीने की चीजों को निचली कर श्रेणी में रखा गया है, विलास यानी लक्जरी सेवाओं और वस्तुओं को ऊंची कर श्रेणी में रखा गया है. तालाबंदी में ढील भी सिर्फ जरूरी सेवाओं और उत्पादों की बिक्री में दी गई है. लक्जरी श्रेणी की सेवाएं तो अब तक बंद हैं.
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जीएसटी से छूट
रोज की खपत के सामान जैसे फल, सब्जियां, दूध, आटा, नमक, किताबें, अखबार और 1,000 रुपए से कम किराए वाले होटलों पर जीएसटी लगता ही नहीं. तालाबंदी में भी इनमें से अधिकतर चीजें बिक ही रही थीं.
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आवश्यक वस्तुएं
दवा, चाय, कॉफी, मसाले, पैकेज्ड खाने-पीने की चीजों, खाद, रेल टिकटों, इकोनॉमी श्रेणी की हवाई टिकटों और छोटे रेस्तरां इत्यादि पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगता है. यह भी लगभग आवश्यक वस्तुएं ही हैं और इनकी भी खपत हो रही है.
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12 प्रतिशत जीएसटी
मक्खन, चीज, घी, ड्राई फ्रूट, मोबाइल फोन, ताश, शतरंज और कैरम जैसे खेल, 1,000 रुपये से ज्यादा महंगे कपड़े, बिना एसी वाले रेस्त्रां, बिजनेस श्रेणी के हवाई टिकट, काम के अनुबंधों जैसी चीजों पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगता है. ये चीजें थोड़ी महंगी हैं और जिनके बजट सीमित हैं वो इन पर खर्च नहीं कर रहे हैं.
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लक्जरी की ओर
बिस्किट, कॉर्नफ्लेक्स, केक, पेस्ट्री, जैम, सूप, आइसक्रीम, कैमरा, स्पीकर, प्रिंटर, नोटबुक, स्टील का सामान, शराब परोसने वाले एसी रेस्त्रां, पांच-सितारा और लक्जरी होटलों के अंदर स्थित रेस्त्रां, टेलीकॉम सेवाएं, आईटी सेवाएं, ब्रांडेड कपड़े इत्यादि पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है. होटल, रेस्त्रां हाल तक बंद थे.
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शुद्ध लक्जरी श्रेणी
बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, डिओडरंट, शेविंग क्रीम, शैम्पू, वाटर हीटर, वॉशिंग मशीन, गाड़ियां, मोटरसाइकिलें, पांच-सितारा होटलों के किराए और 100 रुपए से महंगे सिनेमा-घर के टिकट इत्यादि पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है. सिनेमाघर अभी भी बंद हैं और गाड़ियों की बिक्री पहले से काफी कम हो रही है.