जीत में संगीत की भूमिका अहम: बाबुल
२५ मई २०१४पश्चिम बंगाल के आसनसोल संसदीय सीट पर जीवन का पहला चुनाव लड़ने उतरे बाबुल ने अपने गीतों और लोकप्रियता के बूते न सिर्फ सीपीएम से यह सीट छीन ली, बल्कि अपने नजदीकी उम्मीदवार तृणमूल कांग्रेस की ट्रेड यूनियन नेता डोला सेन को भी पटखनी दे दी. वह भाजपा के टिकट पर अपने बूते चुनाव जीतने वाले राज्य के अकेले सांसद हैं. गायन के बाद अब राजनीति में अपनी पारी की शुरूआत पर आखिर वह कैसा महसूस कर रहे हैं और आगे उनकी क्या योजनाएं हैं? चुनावी जीत के बाद बाबुल ने डॉयचे वेले के कुछ सवालों के जवाब दिए. यहां पेश है उसके मुख्य अंश:
जीवन में पहले चुनाव में ही जीत कर कैसा लग रहा है?
मुझे अब तक इसका भरोसा नहीं हो रहा है. शुरूआती दौर में तो काफी नर्वस था. विपक्ष ने तरह-तरह से मुझे फंसाने का प्रयास किया और मेरे खिलाफ सुनियोजित कुप्रचार अभियान चलाया गया. लेकिन चुनाव अभियान तेज होने के साथ मुझमें जीत की उम्मीद पैदा हो गई थी. यह और बात है कि नतीजे सामने नहीं आने तक जीत का पक्का भरोसा नहीं था. एलान के बाद भी जीत का अहसास दिल में बसने में कुछ समय लगा.
राजनीतिक करियर का आगाज कैसा रहा?
यह बहुत अच्छा रहा है. इससे बढ़िया शुरूआत और क्या हो सकती है? मैं इस करियर के लिए खुद को लंबे अरसे से मानसिक तौर पर तैयार कर रहा था. वैसे, मुझे पेशा बदलने में महारत हासिल है. मैं बैंक की नौकरी छोड़ कर गायन के क्षेत्र में आया था. अब वहां से राजनीति के क्षेत्र में कूदा हूं. लेकिन यह मेरे करियर की सबसे ऊंची छलांग है.
राजनीति में छलांग लगाने का फैसला कैसे किया?
वैसे तो मैं समय-समय पर भाजपा के कई दिग्गज नेताओं से मिल चुका था. लेकिन मुझे बाबा रामदेव ने राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया. मेरे करियर में आए इस बदलाव में उनकी अहम भूमिका रही है.
गायन और राजनीति में क्या अंतर है?
एक गायक के तौर पर भी मुझे लोगों के अनुरोध पर गीत सुनाना पड़ता था. अब भी मुझे लोगों का अनुरोध सुनना और मानना होगा. सिर्फ अनुरोध का स्वरूप बदल गया है. पहले लोग गीतों के बारे में अनुरोध करते थे. अब स्कूलों, सड़कों और पीने के पानी के बारे में अनुरोध मिल रहे हैं.
संगीत ने आपकी जीत में कितनी अहम भूमिका निभाई?
मेरी जीत में संगीत की भूमिका काफी अहम रही. लोग मुझे सुनने इसलिए घरों से निकले कि वह एक गायक के तौर पर मुझे पहचानते थे. अपनी इस पहचान के बिना मैं लोगों तक नहीं पहुंच सकता था.
अब गायन और राजनीति में संतुलन कैसे बनाएंगे?
मुझे एक साथ कई मोर्चों पर काम करने में महारत हासिल है. मैं खुद को एक कुशल गृहिणी मानता हूं जो खाना पकाने के साथ ही घर और बच्चों की भी अच्छी तरह देखभाल कर सकती है. राह कठिन होने पर संगीत मुझे सुकून दे सकता है. अब मेरा जीवन कोलकाता, मुंबई और दिल्ली के बीच भागदौड़ में बीतेगा. गायन तो मेरा पहला प्यार है. उस पर भी उतना ही ध्यान दूंगा जितना राजनीति पर.
आगे की क्या योजना है?
महीनों लंबे चुनाव अभियान के दौरान मुझे आसनसोल इलाके के लोगों और उनकी समस्याओं को नजदीक से देखने-समझने का मौका मिला है. प्राथमिकता के आधार पर धीरे-धीरे उनको हल करने का प्रयास करूंगा.
इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा