नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यूरोप ने अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम गैलीलियो बनाया है जो अमेरिका के जीपीएस से कहीं ज्यादा तेज और सटीक है.
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समंदर में तैरते विशाल जहाजों की हो या आकाश में उड़ते विमान, नेविगेशन के बिना उन्हें चलाना मुमकिन नहीं. आजकल तो सड़कों पर चलती बहुत सी गाड़ियों का काम भी नेविगेशन के बिना नहीं चलता.
अमेरिकी सैटेलाइटों के मिलकर काम करने से एक सिस्टम बना है, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानि जीपीएस. यूरोप अपने नेविगेशन सिस्टम गैलीलियो को अमेरिका के सिस्टम से भी बेहतर बनाना चाहता है. गैलीलियो की सैटेलाइट्स जीपीएस के मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर सिग्नल और फ्रिक्वेंसीज भेजती हैं. इसकी वजह से दुनिया भर में कहीं भी लोकेशन की जानकारी और भी ज्यादा सटीक ढंग से मिल रही है.
मिशन की निगरानी जर्मनी में गैलीलियो कंट्रोल सेंटर से होती है. काम को अनुभवी तकनीशियनों की एक टीम अंजाम देती है. एयर एंड स्पेस ट्रिप टेक्नीशियन क्रिस्टियान आरबिंगर कहते हैं, "अक्टूबर 2011 से दो सैटेलाइट्स उड़ान भर रही हैं और यहां हमारी टीम सफलता से उन्हें नियंत्रित कर रही है."
कैसे होगी अंतरिक्ष की सफाई
1957 से अब तक इंसान पृथ्वी की कक्षा में करीब 7,000 उपग्रह भेज चुका है. इनमें से दो तिहाई बेकार हो चुकी हैं. उनके छोटे छोटे टुकड़े अंतरिक्ष में आफत फैला रहे हैं.
तस्वीर: ESA–David Ducros, 2016
टक्कर का खतरा
सैटेलाइटों के टकराने से बना मलबा 40,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चक्कर काटता है. इतनी रफ्तार से चक्कर काटता एक मूंगफली का दाना भी टकराने पर ग्रेनेड जैसा असर करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मंडराता संकट
अंतरिक्ष का कचरा पृथ्वी में पलने वाले जीवन के लिए भी खतरा है. अगर कोई बड़ा टुकड़ा वायुमंडल में दाखिल होते समय पूरी तरह नहीं जला तो काफी तबाही मचा सकता है.
धरती पर धड़ाम
इस तस्वीर में भी कुछ ऐसा ही नजारा दिखता है. गनीमत रही कि मलबा बेहद कम आबादी वाले रेगिस्तानी इलाके में गिरा.
तस्वीर: NASA
सफाई कैसे
अंतरिक्ष में मौजूद कूड़े को साफ करने के लिए कई आइडिया पर काम हो रहा है. इन्हीं में से एक है गारबेज रोबोट. इस स्पेस रोबोट में एक हाथ होगा जो सैटेलाइट को पकड़ कर वापस धरती पर लेकर आएगा. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए 2023 में इस रोबोट को लॉन्च करने की तैयारी कर रही है.
तस्वीर: ESA–David Ducros, 2016
अंतरिक्ष में ही स्वाहा
एक दूसरा विचार है कि कचरे को वहीं जला दिया जाए. जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर इसके लिये एक लेजर तकनीक विकसित कर रही है. लेजर शॉट से मलबे को वहीं भस्म कर दिया जाएगा.
तस्वीर: DLR
जाल और लैसो इलेक्ट्रिक
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक इलेक्ट्रो नेट पर काम कर रही है. यह जाल एक बड़े इलाके में मौजूद कचरे को बांधेगा और फिर से धरती के वायुमंडल में लाएगा. पृथ्वी के वायुमंडल से दाखिल होते समय ज्यादातर कचरा खुद जल जाएगा. लेकिन इस विचार पर अभी ठोस काम होना बाकी है.
तस्वीर: ESA–David Ducros, 2016
इलेक्ट्रोडायनैमिक सुरंग
इलेक्ट्रोडायनैमिक सुरंग
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के पास इलेक्ट्रोडायनैमिक माइन का प्रपोजल है. 700 मीटर लंबी इलेक्ट्रोडायनैमिक सुरंग स्टेनलैस स्टील और एल्युमीनियम की बनी होगी. यह सुरंग कचरे की तेज रफ्तार परिक्रमा को धीमा करेगी और उसे धीरे धीरे वायुमंडल की तरफ धकेलेगी. रिपोर्ट: जुल्फिकार अबानी/ओएसजे
तस्वीर: JAXA
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भविष्य में इस सेंटर से 18 और गैलीलियो सैटेलाइट्स कंट्रोल की जाएंगी. यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है, इसे पूरा करने के लिए दुनिया भर के 100 वैज्ञानिक और तकनीशियन मिलकर काम कर रहे हैं. आरबिंगर कहते हैं, "हमारा काम सैटेलाइट्स को सुरक्षित ढंग से उड़ाना है. सफल शुरूआत के बाद हम रुटीन वाला काम करते हैं और जरूरी नेविगेशन डाटा को इंपोर्ट करने लगते हैं."
शुरुआती तकनीकी समस्याओं के बाद 2011 में एक रूसी रॉकेट के जरिये गैलीलियो के फर्स्ट फेज के उपग्रह भेजे गए. पृथ्वी से 20 हजार किलोमीटर ऊपर पहुंचने के बाद उपग्रह निर्धारित कक्षा में स्थापित हुए. उपग्रह इस तरह स्थापित किये गए हैं कि वे धरती के एक एक सेंटीमीटर को कवर कर सकें. 2020 तक कुल 30 गैलीलियो सैटेलाइट्स भेजी जाएंगी. इनकी मदद से पृथ्वी पर कहीं भी मुफ्त नेविगेशन संभव होगा.
इस पूरे अभियान पर खर्च करीब पांच अरब यूरो आएगा. अंतरिक्ष में लगी गैलीलियो आंखें भविष्य में इंसान को बेहतरीन नेविगेशन मुहैया करायेंगी.
ब्रह्मांड में अजूबों की भरमार
जितनी विविध पृथ्वी है, उतना ही विविध ब्रह्मांड भी है. वहां कई खूबियों वाले ग्रह हैं. कोई हीरों से भरा है तो कोई धधकता गोला सा है. एक नजर ऐसे ग्रहों पर.
तस्वीर: Reuters/Caltech/MIT/LIGO
विशाल छल्ला
पृथ्वी से 434 प्रकाश वर्ष दूर एक बड़ा ग्रह है. वैज्ञानिक इसे J1407B कहते है. यह बृहस्पति और शनि से भी 40 गुना बड़ा है. इस ग्रह के बाहर बना छल्ला 12 करोड़ किलोमीटर तक फैला है. वैज्ञानिकों को लगता है कि J1407B में चंद्रमा बनने जा रहा है.
तस्वीर: NASA/Ron Miller
पानी नहीं, सिर्फ बर्फ या गैस
सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन ग्लिश 436बी ग्रह अपने तारे के बेहत करीब घूमता है. इस वजह से इसकी सतह का तापमान 439 डिग्री तक पहुंच जाता है. अथाह गर्मी से बर्फ सीधे गैसों में टूट जाती है और ग्रह के आस पास हाइड्रोजन के बादल बनने लगते हैं.
तस्वीर: NASA/public domain
तारकोल से लबालब
बाहरी ब्रह्मांड में ट्रेस-2b नाम का ग्रह भी मिला. यह अपने तारे से मिलने वाली सिर्फ एक फीसदी रोशनी को परावर्तित करता है. इसे ब्रह्मांड का अब तक खोजा गया सबसे काला ग्रह माना जाता है. ग्रह की सतह में विषैला तारकोल और उससे निकलने वाली गैसें हैं.
तस्वीर: NASA/Kepler/TrES/David A. Aguilar (CfA)
तीन सूरज वाला ग्रह
HD 188 753 Ab पहला ऐसा ग्रह है जिसके पास तीन सूर्य हैं. इस ग्रह की खोज 2005 में पोलैंड के वैज्ञानिक ने की थी. वैज्ञानिकों ने ऐसे और ग्रह खोजने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
हीरों की खान
55 कैंक्री में अथाह मात्रा में कार्बन है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 55 कैंक्री की सतह हीरों से भरी है. लेकिन वहां तक पहुंचने के मतलब है 1,700 डिग्री का तापमान झेलना.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
सुंदर, लेकिन घातक
धरती की तरह नीले इस ग्रह का नाम है HD189733. लेकिन वहां जीवन के लिए कोई जगह नहीं. HD189733 का तापमान 1,000 डिग्री से ज्यादा है. वहां 7,000 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से खगोलीय बारिश भी होती है.
तस्वीर: NASA/ESA/M. Kornmesser
एक और धरती
ग्लिश 581 C की खोज ने विज्ञान जगत को कौतूहल से भर दिया था. इसे धरती का जोड़ीदार मानते हुए जीवन के लिए मुफीद करार दिया गया. लेकिन जैसे जैसे ज्यादा जानकारी मिली वैसे वैसे कौतूहल खत्म होता गया. यह ग्रह गुरुत्व बल के संघर्ष में फंसा हुआ है. इसकी वजह से ग्रह का एक ही हिस्सा हमेशा प्रकाश की तरफ रहता है.
तस्वीर: ESO
हॉट टब
GJ1214b गर्म पानी के टब की तरह है. 230 डिग्री सेल्सियस की गर्मी के चलते यह ग्रह ब्रह्मांड में लगातार भाप और बादल छोड़ता रहता है.