जीव को चाहिए एक मौका
१८ मार्च २०१३दो बार एशियाई टूर और चार यूरोपियन टूर जीतने वाले जीव मिल्खा सिंह दुनिया के शीर्ष 50 खिलाडियों में जगह बनाने वाले पहले भारतीय गोल्फर हैं. इस कामयाबी के बाद भी जीव को लगता है कि उनके पिता की उप्लब्धियां इतनी बड़ी हैं कि अपनी अलग पहचान बनाने के लिए उन्हें कोई बड़ा मुकाबला जीतना होगा.
जीव के पिता और पूर्व एथलीट मिल्खा सिंह को 1960 में हुए रोम ओलंपिक के लिए याद किया जाता है. 400 मीटर की दौड़ में वह दूसरे स्थान पर थे. दौड़ जीतने से वह बस थोड़ा ही चूक गए. इस बात को पचास साल बीत चुके हैं लेकिन उनकी लोकप्रियता में जरा भी कमी नहीं आई है. यहां तक कि उनके जीवन पर एक फिल्म भी बन रही है.
पहचान की कमी खलती है
जीव ने बताया, "मेरे पिता कभी भी मुझे यह बताने से नहीं चूकते कि जब कभी भी हम साथ कहीं जाते हैं तो 100 लोग उनका ऑटोग्राफ लेने आते हैं जबकि मेरा ऑटोग्राफ मांगने वाले उनमें से पांच ही होते हैं." वह लोगों से मेरा परिचय यह कह कर कराते हैं, "यह मेरा बेटा जीव है. यह गोल्फ खेलता है." जीव मानते हैं कि उस स्तर की लोकप्रियता के लिए उन्हें कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय खिताब जीतने की जरूरत है.
जीव कहते हैं, "मेरे पिताजी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं लेकिन उनको आज भी मैं बच्चा ही लगता हूं. वह हर रोज मुझे बताते हैं कि अगर हर दिन अभ्यास नहीं किया तो अच्छा खेलना मुमकिन नहीं है. और मैं उनसे कहता हूं कि मैं बच्चा नहीं हूं, 42 साल का हो गया हूं. आप पुराने रिकॉर्ड की तरह हर रोज मुझे एक ही बात बताते हैं."
पिता से आगे निकलने का मौका
2016 के रियो ओलंपिक में गोल्फ को भी शामिल किया गया है. यह जीव के लिए अच्छा मौका होगा जहां वे अपनी पहचान बना सकते हैं. जीव ने कहा, "मेरे पिता ने यह काम पचास साल पहले किया था. अब अगर मैं भी यह कर पाता हूं तो यह बहुत ही बढ़िया बात होगी." जीव ने कहा कि गोल्फ का ओलंपिक में शामिल हो जाना बहुत बड़ी उपलब्धि है. इससे खिलाड़ियों को बहुत फायदा मिलेगा, खासकर भारतीय खिलाड़ियों को.
जीव ने बताया कि ओलंपिक में जगह बनाने के लिए खिलाड़ी की रैंक उस साल 100 के अंदर होनी चाहिए. जीव इस समय अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में 99वें स्थान पर हैं. जीव कहते हैं, "मैं अभी 42 साल का हूं. उस साल मैं 45 का हो जाऊंगा जब ओलंपिक होगा. वह बिलकुल सही समय होगा." जीव के अनुसार अगर उन्हें ओलम्पिक में मेडल मिल गया तो उनके पिता के भी पुराने जख्म भर जाएंगे जो दौड़ न जीत पाने के कारण उन्हें आज तक दुखी करते हैं. उन्होंने कहा, "मेरे पिता को आज तक इस बात का मलाल है कि वे सबसे आगे थे लेकिन बाद में वह रुक कर अपने आपको चेक करने लगे और जीतने से चूक गए."
मिल्खा सिंह के माता पिता 1947 में भारत पाक बंटवारे के समय मारे गए थे. उन पर बन रही बॉलीवुड फिल्म में मिल्खा सिंह के संघर्ष की कहानी दिखाई गई है. फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया है. जीव कहते हैं कि यह बेहद भावुक कर देने वाली फिल्म है और वह चाहेंगे कि इसे ऑस्कर में नामांकन मिले.
एसएफ/ओएसजे (रॉयटर्स)