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जी20 बैठक: जलवायु परिवर्तन से आर्थिक हितों तक

७ नवम्बर २००९

दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के वित्त मंत्रियों की स्कॉटलैंड में जलवायु परिवर्तन और आर्थिक मंदी से निपटने के उपायों पर बैठक चल रही है. बैठक की मेज़बानी कर रहे ब्रिटेन ने क्लाईमेट फंडिंग पर ज़ोर दिया.

सहमति होतस्वीर: AP

दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के वित्त मंत्रियों की स्कॉटलैंड बैठक में जलवायु परिवर्तन और आर्थिक मंदी से निपटने के उपायों पर बैठक चल रही है. बैठक की मेज़बानी कर रहे ब्रिटेन ने क्लाईमेट फंडिंग पर किसी समझौते पर पहुंचने का अनुरोध किया. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने भूमंडलीय वित्तीय कारोबार में टैक्स की व्यवस्था लागू करने का सुझाव भी रखा है.

ब्रिटेन के वित्त मंत्री अलीस्टर डार्लिंग ने माना कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फंडिंग का मामला जटिल है और इसमें सभी देशों के आपस में कुछ न कुछ मतभेद बने हुए हैं. लेकिन ये ज़रूरी है कि इस बैठक से ऐसा कोई ठोस नतीजा निकलना ही चाहिए जो समस्या के हल की दिशा में बढ़ता हुआ नज़र आए. उनका कहना था कि अगर वित्तीय मसलों पर कोई समझौता नहीं हो पाता, कौन देश क्या योगदान करेगा, अगर इस पर पर कोई समझौता नहीं हो पाता तो अगले महीने कोपेनहेगन में होने वाली बैठक में भी

कोई सर्वमान्य समझौता होने का रास्ता बहुत मुश्किल हो जाएगा.

डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में सात दिसंबर से 18 दिसंबर तक संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई मे जलवायु परिवर्तन पर नई संधि पर सहमति तैयार की जानी है. जो क्योटो प्रोटोकोल की जगह लेगी जिसकी मियाद 2012 में ख़त्म हो रही है. लेकिन जानकारों का कहना है कि इस मुद्दे पर इतनी तैयारी बैठकों के बाद भी बुनियादी मसलों पर गतिरोध दूर नहीं हुए हैं लिहाज़ा कोपेनहेगन में इस बात की संभावना कम ही है कि कोई संधि अमल में आ जाए. ज़्यादा से ज़्यादा एक राजनैतिक समझौते जैसा कोई दस्तावेज़ तैयार किया जा सकता है.

ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों को लेकर गतिरोध तो बना ही है इससे भी ज़्यादा अटका हुआ मामला हो गया है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आर्थिक मदद का. यूरोपीय संघ भले ही कटौती के लक्ष्यों को लेकर एक सीधी राय रखता हो लेकिन मदद को लेकर उसके भी अपने पसोपेश हैं. वो ये तो स्वीकार कर चुकाहै कि गरीब देशों को 2020 तक 15 अरब डॉलर सालाना की मदद देनी होगी लेकिन कौन सा देश कितना पैसा डालेगा इस पर सहमति नहीं बनी है.

इसी बीच ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ब्राउन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन पर टैक्स लगाने का सुझाव पेश कर चुके हैं. उनका कहना है कि इससे दोहरा फ़ायदा होगा. सुरक्षित आर्थिक भविष्य बनाने का मौक़ा होगा और वित्तीय संस्थानों को ज़िम्मेदारी का भी अहसास होगा. लेकिन उनके इस सुझाव पर फ़िलहाल जी 20 देशों के कई प्रतिनिधि ख़ामोश ही हैं.

भारत की ओर से वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी हिस्सा ले रहे हैं. वह कल यानी रविवार को मीडिया के सामने भारत का पक्ष रखेंगे.

जलवायु परिवर्तन की बहस में भारत विकासशील देशों की ओर से अगुआ देश की भूमिका में है और उसका कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य निर्धारित करने से पहले अमीर देशों को अपना लक्ष्य घोषित करना होगा. जलवायु परिवर्तन पर गरीब देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद के मसौदे पर जो चर्चा जारी है उसमें भी भारत की अहम भूमिका है.

स्कॉटलैंड बैठक में आर्थिक मंदी से निपटने के उपायों पर भी चर्चा होगी. भारत का इस बारे में ये मानना रहा है कि हर देश को अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था के आधार पर नीति बनाने और तैयारी करने की छूट मिलनी चाहिए.

बहरहाल जी 20 देशों की बैठक के समांतर इसका पुरज़ोर विरोध भी जारी है. प्रदर्शनकारी स्कॉटलैंड में जमा हैं और नेताओं से जलवायु परिवर्तन और बेरोज़गारी से निपटने की मांग कर रहे हैं. विरोध करने वालों में ट्रेड यूनियनें, धार्मिक और पर्यावरण संगठन शामिल हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस जोशी

संपादन: आभा मोंढे

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