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समाज

जुड़वां बच्चों को नहीं है यहां जीने का अधिकार

२८ मार्च २०१८

दुनिया के अधिकतर इलाकों में बच्चों को पैदा होना शुभ माना जाता है. लेकिन इसी दुनिया में एक इलाका ऐसा भी है जहां जुड़वां बच्चों को होना इतना अशुभ माना जाता है कि नवजात बच्चों को तुरंत मार दिया जाता है.

Vor rituellem Mord gerettete Zwillinge in Nigeria
तस्वीर: Thomson Reuters Foundation/K. Idhebor

नाइजीरिया की राजधानी अबुजा से 50 किमी की दूरी पर स्थित है एक गांव कैदा. इस गांव में गर्भवती महिलाओं को हर वक्त यही चिंता सताती रहती है कि कही वह जुड़वां बच्चों को न जन्म दे दें. आज से आठ साल पहले इसी गांव की आयशा अयूब ने दो जुड़वां बच्चियों को जन्म दिया था. उनकी जिंदगी सही सलामत रहे इसलिए उन बच्चियों को उसने एक मिशिनरी जोड़े को दे दिया. क्योंकि उसे डर था कि अगर वह अपनी बच्चियों को अपने पास रखेगी तो उन्हें मार दिया जाएगा. क्योंकि इस गांव में जुड़वा बच्चों को जन्म से ही बुरा और अशुभ माना जाता है.

आयशा अयूबतस्वीर: Thomson Reuters Foundation/K. Idhebor

यहां की बेसो कोमो जातीय समुदाय जुड़वां बच्चों को मार देता है. अगर कोई बच्चा जन्म से ही किसी शारीरिक या मानसिक विकलांगता के साथ पैदा होता है तब भी उसे समुदाय में जिंदा रहने का अधिकार नहीं होता. इसके अलावा अगर बच्चे के जन्म के दौरान उसे पैदा करने वाली मां की मौत हो जाती है तो वह बच्चा भी इनके लिए बुरा है. इतना ही नहीं अगर किसी बच्चे का ऊपर के दांत, नीचे के दांत से पहले आते हैं तो उन्हें भी इतना ही बुरा माना जाता है और उन्हें जान से मार दिया जाता है.

इस गांव की प्रमुख मूसा लकाई बताती हैं, "लोगों को डर है कि अगर वे इन्हें नहीं मारेंगे तो वे बच्चे अपने ही माता-पिता को मार डालेंगे." उन्होंने कहा हर किसी समुदाय कि तरह, हमारी भी अपनी संस्कृति और मान्यताएं हैं."

ओल्युसोला स्टीवेंस अजाई और उनकी पत्नी चिनवे तस्वीर: Thomson Reuters Foundation/K. Idhebor

नवजात बच्चों की इस तरह से हत्या करना पहले नाइजीरिया के कई समुदायों में प्रचलित था. लेकिन मिशनरी समूहों ने इस ओर काफी काम किया और इस तरह की हत्याओं में कमी आई है. लेकिन यह चलन अब भी बरकरार है. सरकार और सामाजिक कार्यकर्ता, लोगों के इस अंधविश्वास को कम करने के लिए तमाम कोशिशें कर रहे हैं. साथ ही जोखिम भरे इलाकों से बच्चों को बचाने की कोशिश में पिछले कई सालों से लगे हैं. इस इलाके में काम करने वाला एक मिशनरी जोड़ा, ओल्युसोला स्टीवेंस अजाई और उनकी पत्नी चिनवे ने ऐसे बच्चों को बचाने के लिए साल 2004 से यहां एक वाइन हेरिटेज होम फाउंडेशन शुरू किया. और, एक साल के भीतर ही उनके पास ऐसे 20 बच्चे आ गए जिनकी जिंदगी को खतरा था. हालात यह है कि आज यह कपल 112 बच्चों के साथ रहता है.

ऐसे मरते नवजात

हालांकि नाइजीरिया में कितने नवजात बच्चे इस अंधविश्वास का शिकार होकर अपनी जान गवां देते हैं उसका ठीक-ठाक आंकड़ा तो फिलहाल किसी के पास नहीं है. लेकिन बच्चों को मारने के इनके तरीके हर मामले में अलग हैं. आमतौर पर इन बच्चों को जहरीला पौधा देकर मार दिया जाता है. लेकिन जिन मामलों में जन्म के दौरान मां की मौत हो जाती है उनमें बच्चों को दफन कर दिया जाता है या किसी कमरे में तब तक के लिए छोड़ दिया जाता है जब तक वह मर न जाएं.

अजाई ने बताया, "इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं और मेडिकल स्टाफ की कमी है जिससे अधिकतर मामलों में जन्म के दौरान मां की मौत हो जाती है." मातृ मृत्यु दर के मामले में नाइजीरिया दुनिया का सबसे खराब देश है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों मुताबिक साल 2015 के दौरान यहां एक लाख मामलों में 814 मौतों के मामले सामने आए थे. एक सरकारी विभाग नेशनल ऑरियेनटेंशन एजेंसी (एनओए) ने कहा, "पांच साल हमने इस कार्यक्रम को लॉन्च किया था. पहले हम गांवों में जाकर लोगों से बच्चों को मांगते थे लेकिन अब वे हमें खुद अपने बच्चे देने आ जाते हैं." एनओए के निदेशक बताते हैं गरबा अबारी ने बताया है कि सरकार ने इस मिशनरी जोड़े के कामों के बाद एक सरकारी कार्यक्रम लॉन्च किया लेकिन यह काम राजधानी अबुजा के आसपास ही हो रहा है. लेकिन नाइजीरिया के कई इलाकों में बच्चों को मारा जा रहा है. अबारी बताते हैं, "प्रशासन के लिए गैर सरकारी संस्थाओं को इस पहल में जोड़ना मुश्किल हो रहा है क्योंकि कई समुदाय बाहरी लोगों पर संदेह जताते हैं और उनके साथ काम करने से कतराते हैं."

तस्वीर: Thomson Reuters Foundation/K. Idhebor

चुनौती अब भी बरकरार

अबारी कहते हैं, "आज कई समुदाय ऐसी किसी रिवाज या चलन से इनकार करते हैं लेकिन सच तो यह है कि यह अब भी चला आ रहा है."  चिनवे बताती हैं कि कई महीने पास कोई बच्चा नहीं आया लेकिन कभी किसी महीने में उनके पास सात बच्चे आए. मदद के लिए मिले दान से यह फिलहाल ये बच्चों को बचाने की कोशिश करते हैं. चिनवे कहती हैं, "उनके पास जगह हो या न हो लेकिन हम कभी किसी बच्चे को लेने से इनकार नहीं करते. साल 2005 में कम सुविधाओं के चलते हम दो जुड़वां नवजात बच्चों को नहीं ले सके थे लेकिन दो हफ्ते बाद चला कि उन्हें मार दिया गया है. उस वक्त के बाद से हमने तय कर लिया कि कभी किसी बच्चे को अपने दरवाजे से नहीं वापस नहीं करेंगे." 

अपने बच्चों को आठ साल पहले इस वाइन हेरीटेज में भेजने वाली अयूबा कहती हैं कि उन्हें अपने जुड़वां बच्चों को बड़ा होते देखकर बेहद खुशी हुई थी. अयूबा कहती हैं, "मैं अपने बच्चों को अपने पास, अपने साथ रखना चाहती थी लेकिन हमारे समुदाय में लोग इसे पसंद नहीं करते."

एए/ओएसजे (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)

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