'जुनून हो तो कुछ भी मुमकिन'
२४ मई २०१३गौरव मानते हैं कि न्यूरोसाइंस की पढ़ाई के लिए दक्षिण भारत की यूनीवर्सिटियां काफी प्रसिद्ध हैं और इसीलिए उन्होंने मास्टर्स की पढ़ाई के लिए वहां की मदुरई कामराज यूनिवर्सिटी को चुना. इसी दौरान उन्हें उनके प्रोफेसरों ने नॉर्थराइन स्कॉलरशिप के बारे में बताया और उन्होंने इसके लिए आवेदन डाल दिया. तीन साल पहले उनका चयन हुआ और वह अपनी रिसर्च के लिए कोलोन आए. वैसे तो घर से दूर रहने पर सभी को घर की याद आती है, लेकिन गौरव कहते हैं कि वह खुश्किस्मत हैं कि यहां बहुत जल्द ही उनके कई दोस्त बन गए, इसलिए उन्हें घर की याद उतना नहीं सताती.
जर्मनी में रिसर्च करने के दौरान गौरव ने महसूस किया कि यहां न सिर्फ तकनीक और उपकरणों जैसी सहूलियत मौजूद है, बल्कि छात्रों को भारत के मुकाबले ज्यादा आसानी से काम करने का अवसर भी मिलता है. उन्होंने बताया वे अपने सुझाव या किसी और विश्लेषण के बारे में बेझिझक हो कर अपने प्रोफेसरों से बात कर सकते हैं, "यहां लोग बिना आपका अनुभव देखे भी आपको ध्यान से सुनते हैं."
भारत बढ़ाए अवसर
गौरव की रिसर्च विभिन्न रासायनिक तत्वों की मस्तिष्क पर प्रतिक्रिया पर आधारित है. उनकी रिसर्च पूरी होने वाली है, लेकिन इसके बाद वह पोस्टडॉक्ट्रेट की पढ़ाई भी जर्मनी से ही करना चाहते हैं. गौरव हमेशा से रिसर्च जर्मनी में ही करना चाहते थे. वह मानते हैं कि अगर मन में जुनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं हैं. इस क्षेत्र में करीब दस साल बिता लेने के बाद अब वह रिसर्च के क्षेत्र में और आगे जाना चाहते हैं.
गौरव का भारत लौटने का सपना तो है, लेकिन वह मानते हैं कि भारत में अभी भी जर्मनी और दूसरे कई पश्चिमी देशों जैसे अवसर उप्लब्ध नहीं हैं. उनके कई साथियों को विदेश में तो नौकरी के प्रस्ताव मिल रहे हैं, लेकिन भारत में उनकी योग्यता के अनुसार अवसर अभी भी बहुत कम हैं. ऐसे में वह भारत तभी लौटना चाहेंगे जब उनके पास कोई बहुत बढ़िया प्रस्ताव हो.
यहां के काम करने के तरीके के साथ ही लोगों में अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा से वह बहुत प्रभावित हैं. उन्हें लगता है भारत को अपने होनहार छात्रों को सही अवसर देने के लिए रिसर्च की दिशा में और निवेष करने की जरूरत है, "यही देश के असली संसाधन हैं उन्हें संजोना देश के लिए बहुत जरूरी है".
रिपोर्ट: समरा फातिमा
संपादन: ईशा भाटिया