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जेल नहीं यातना के शिविर

५ अक्टूबर २०१३

रूस के चर्चित पंक बैंड पुसी रॉयट्स की एक सदस्य नादेज्दा तोलोकोनिकोवा ने देश की जेलों की हालत को कुछ ऐसे बयां किया है कि पूरे देश में हंगामा हो गया है.

तस्वीर: DW/O.Kapustina

बैंड के सजा पाए दो सदस्यों में से एक तोलोकोनिकोवा ने बीते हफ्ते एक खुला खत लिखा जिसके छपते ही पूरे देश में हल्ला हो गया. उन्होंने लिखा, "कॉलोनी में रोजमर्रा का जीवन कुछ इस तरह तय किया गया है कि जेल के मैनेजरों से आदेश लेने वाले कुछ ऐसे कैदी जो किसी न किसी समूह के लीडर हैं बाकी कैदियों के साथ इस तरह का व्यवहार करते हैं कि उनकी हिम्मत टूट जाती है. वे उन्हें बहुत परेशान करते हैं और उन्हें अपना दास बनाकर रखते हैं."

रूस में पूर्व कैदी और मानवाधिकार कार्यकर्ता सालों से जेलों के अमानवीय हालात का विरोध करते रहे हैं, लेकिन रूसी बैंड पुसी रॉयट्स की तोलोकोनिकोवा के खत ने इस विरोध में जोश फूंक दिया है.

स्टालिन की याद दिलाती जेल

रूस की संघीय बंदीगृह सेवा के मुताबिक 2012 में देश की जेलों में पांच लाख 85 हजार कैदी थे. इसके अलावा दो लाख 60 हजार कैदियों को डिटेंशन सेंटर में रखा गया था. मोरदोविया गणराज्य में स्थित बहुत सी जेल स्टालिन के जमाने की हैं. स्टालिन के वक्त इन जेलों में "जनता के दुश्मनों" को रखा जाता था.

रूस में पूर्व कैदी और मानवाधिकार कार्यकर्ता सालों से जेलों के अमानवीय हालात का विरोध करते रहे हैं.तस्वीर: DW/O.Kapustina

मोरदोविया मॉस्को से लगभग पांच हजार किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में है. इस इलाके में जंगलों से घिरीं 18 जेल हैं जिन तक पहुंचने के लिए सड़क पोतमा ट्रेन स्टेशन से शुरू होती है. सड़क के दोनों तरफ कांटेदार तार लगी है जिसके दूसरी तरफ सुनहरी गुंबदों वाली चर्च दिखाई देती है. लेकिन चर्च से ज्यादा ध्यान उन अनगिनत बुर्जों की ओर जाता है जो पहरेदारी के लिए बनाए गए हैं और सड़क के दोनों तरफ खड़े दिखाई देते हैं. इन जेलों में उम्रकैद की सजा पाए विदेशियों, पुरुषों, महिलाओं, पूर्व पुलिस अफसरों और ऐसी महिलाओं को रखा जाता है, जिनके बच्चे छोटे हैं.

इन्सान का दर्जा दोयम

महिलाओं के लिए 13 और 14 नंबर की दो कॉलोनियां हैं. ये सड़क इधर-उधर, आमने-सामने ही हैं. तोलोकोनिकोवा नंबर 14 में अपनी सजा काट रही हैं. मॉस्को की रहने वालीं स्वेतलाना बाखमिना भी इसी जेल में ढाई साल की सजा काट चुकी हैं. वह रूस की तेल कंपनी यूकोस की वकील थीं. उन्हें और उनके बॉस अरबपति मिखाइल खोदोरकोवस्की को गबन और टैक्स फ्रॉड का दोषी पाया गया.

बाखमिना याद करती हैं कि जब वह कॉलोनी नंबर 14 में पहुंचीं तो उन्हें बड़ा झटका लगा था. एक बिल्डिंग में करीब 100 महिलाएं रह रही थीं. उन्हें हफ्ते में बस एक ही बार नहाने की इजाजत थी. बाखमिना बताती हैं, "धोने के लिए पानी रेडियेटर्स से निकालना पड़ता था. और आपको इस बात का भी ध्यान रखना होता था कि कहीं कोई गार्ड देख न ले." बैरक में एक टॉयलेट थी लेकिन वह बंद पड़ी थी. इसलिए महिलाओं को बाहर खुले में शौच जाना पड़ता था.

बाखमिना जब कॉलोनी नंबर 14 में पहुंचीं तो उन्हें बड़ा झटका लगा.तस्वीर: DW/O.Kapustina

गंदगी, दरिंदगी और दबाव

रोज का रुटीन बेहद कठोर था, लेकिन कैदियों का आपसी व्यवहार उससे भी ज्यादा निर्मम था. बाखमिना कहती हैं, "आपको दोयम दर्जे का इन्सान समझा जाता था." हालांकि रूस की जेलों में जबरन मजदूरी पर रोक है, लेकिन कॉलोनी में जो महिला काम से इनकार कर देती उसे सजा दी जाती. बाखमिना को समय से पहले ही अप्रैल 2009 में रिहा कर दिया गया था. वह बताती हैं, "हमसे काफी ओवरटाइम करवाया जाता था. एक प्रॉडक्शन प्लान होता था जिसे पूरा करना ही पड़ता था. जो अपना कोटा पूरा नहीं कर पातीं, उन्हें दूसरी कैदी पीटतीं."

कॉलोनी में बेहद सख्त रूटीन है. जेल नंबर 13 में रह चुकीं जारा मुर्तजालिएवा बताती हैं, "छह बजे उठो. बाहर जाकर एक्सरसाइज करो. चेकिंग के लिए अपनी निजी चीजें जमा कराओ. नाश्ता करो. 7 बजे काम शुरू." चेचन ऐक्टिविस्ट जारा को आतंकवादी हमले की योजना बनाने के लिए 2005 में साढ़े आठ साल की सजा सुनाई गई थी. मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था मेमोरियल के मुताबिक जारा एक राजनीतिक कैदी हैं और उनके ऊपर लगाए गए आरोप जासूसी एजेंसियों के दिमाग की उपज हैं. 30 साल की जारा बताती हैं, "हम हर तरह चीजों की सिलाई करते थे. सेना की वर्दियां, दस्ताने और यहां तक कि टेंट भी. हम दिन-रात काम करते थे." जारा को इस मेहनत की एवज में हर महीने 15 यूरो यानी करीब 1200 रुपये मिलते थे. चेचन होने की वजह से उन पर विशेष निगरानी रखी जाती थी. कई बार उन्हें पीटा जाता. जारा को कॉलोनी में एक बात सबसे ज्यादा खलती थी कि वहां शांति और खामोशी नहीं थी. वह अकेले रह लेने के एक मौके को भी तरसती थीं. वह कहती हैं, "हर जगह विडियो कैमरे लगे हैं. आपके ऊपर अविश्सनीय भावनात्मक दबाव होता है."

पुसी रॉयट्स की एक सदस्य नादेज्दा तोलोकोनिकोवा नंबर 14 में सजा काट रही हैं.तस्वीर: DW/O.Kapustina

पिछले साल जेल से रिहा होने के बाद जारा फ्रांस चली गईं जहां उन्हें राजनीतिक शरण मिल गई.

एक अलग दुनिया

मॉस्को में रहने वाली पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता सोया स्वेतोवा कहती हैं कि मोरदोविया की जेल एक अलग ही दुनिया है, जहां से न कैदी निकल सकते हैं, न वहां के बाशिंदे. उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए जेल विभाग रोजगार का एक अहम जरिया है. वहां के लोगों ने कई पीढ़ियों तक जेलों में काम किया है. स्वेतोवा बताती हैं कि कई बार मोरदोविया के लोग उन्हें फोन करके जेल में होने वाली हिंसा के बारे में बताते हैं.

हालांकि स्वेतोवा कहती हैं कि कुछ चीजें बदली भी हैं. पहली बार जेल जाने वालों को कई बार सजा पा चुके कैदियों से अलग रखा जाता है. लेकिन स्वेतावा के मुताबिक सबसे अहम बात है कि रूसी समाज धीरे-धीरे अपने कैदियों के हालात में दिलचस्पी लेना शुरू कर रहा है.

रिपोर्टः ओल्गा कपुस्तीना/आईबी

संपादनः निखिल रंजन

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