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जेल में बंद लिऊ शियाओपो को शांति का नोबेल

८ अक्टूबर २०१०

चीन में मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले लिऊ शियाओपो को 2010 के नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. इससे चीन बेहद नाराज है और उसने नॉर्वे के राजदूत को तलब किया है.

लिऊ शियाओपो को नोबेलतस्वीर: AP/Kyodo News

लिऊ ने काफी वक्त जेल में बिताया है. 1989 के थिआनमन चौक पर हुए लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों में उनकी भूमिका के लिए उन्हें जेल भेजा गया. 2008 में उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया और विध्वंस का आरोप लगाते हुए 11 साल की सजा दी गई. इस सजा का दुनिया भर में विरोध हुआ. लेकिन लिऊ आज भी लियोनिंग की हिनजोऊ जेल में बंद अपनी सजा काट रहे हैं.

इसलिए उनकी तरफ से नोबल मिलने की खबर पर प्रतिक्रिया उनकी पत्नी लिऊ जिया ने दी. उन्होंने खुशी जाहिर की और कहा, "हमें कोई पछतावा नहीं है. यह सब हमने चुना है. हमेशा ऐसा ही रहेगा. जो भी नतीजे होंगे उन्हें हम मिलकर झेलेंगे. मैं लिऊ को 1982 से जानती हूं. मैंने उन्हें साल दर साल थोड़ा थोड़ा बदलते देखा है. और हम जानते हैं कि आज चीन में जो हालात हैं हमें उनकी कीमत तो चुकानी होगी."

तस्वीर: AP

जब से लिऊ शियाओपो को नोबल मिलने की चर्चा शुरू हुई, तभी चीन ने नॉर्वे को चेतावनी दी कि लिऊ को नोबल न दिया जाए. चीन का कहना था कि लिऊ शांति पुरस्कार के लिए योग्यताओं को पूरा नहीं करते. 2008 में लिऊ ने चार्टर 08 लिखा. यह देश में राजनीतिक सुधारों के लिए एक अपील थी. जब यह चार्टर इंटरनेट पर आया तो इसे 10,000 लोगों का समर्थन मिला. इसमें चीन की एकदलीय प्रणाली में सुधार और मानवाधिकारों की हालत बेहतर बनाने की बात कही गई है. इसी के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया.

नोबल मिलने से पहले लिऊ की पत्नी जिया ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "सरकार उन्हें नोबल का विरोध इसलिए कर रही है क्योंकि उसे डर है कि इससे लोगों का ध्यान उन पर और चीन की हालत पर जाएगा. अगर उन्हें इसका डर न होता तो वे एक लेख लिखने के लिए उन्हें 11 साल कैद की सजा न देते." लिऊ का कोई बच्चा नहीं है. जब से वह जेल गए हैं तब से उनकी पत्नी बीजिंग में कड़ी पुलिस निगरानी में रह रही हैं.

लिऊ को थिआनमन चौक की उस खूनी घटना में हजारों लोगों को बचाने के लिए भी जाना जाता है. जब छह हफ्ते से प्रदर्शन कर रहे छात्रों को सेना ने 3 जून 1989 की रात घेर लिया तो लिऊ ने ही बातचीत के जरिए हजारों छात्रों को बाहर निकलवाया. लेकिन इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. 1991 तक वह जेल में रहे. फिर उन्हें बिना कोई आरोप लगाए रिहा कर दिया गया. बाहर निकलकर लिऊ फिर से उन लोगों के लिए संघर्ष करने लगे जिन्हें थिआनमन पर गिरफ्तार किया गया. इस वजह से वह 1996 में दोबारा गिरफ्तार हुए और तीन साल तक लेबर कैंप में रहे.

चीनी साहित्य में डॉक्टरेट लिऊ पहले बीजिंग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे. लेकिन 1989 के बाद उनके पढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. उनके चीन में छपने पर भी प्रतिबंध है. लोकतंत्र के समर्थन में लिखे गए उनके ज्यादातर लेख हांग कांग के अलावा चीन के विदेशी प्रकाशनों में छपते रहे हैं. बुद्धिजीवियों के बीच उनका नाम काफी सम्मान से लिया जाता है. अमेरिका और यूरोपीय संघ उनकी रिहाई की अपील कर चुके हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः ए जमाल

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