जापान की राजधानी टोक्यो में अगले साल ओलंपिक खेल होने हैं. ऐसे में जापानी भाषा पर इंग्लिश हावी होती जा रही है जिसे लोग वहां जैपलिश का नाम दे रहे हैं. इस चक्कर बहुत उल्टा पुल्टा हो रहा है.
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जापान में होने वाले ओलंपिक खेलों को देखते हुए देश के पर्यटन अधिकारियों ने कमर कस ली है. वे सभी जगहों और दिशाओं को दिखाने वाले साइनबोर्ड्स को अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में लिखने में जुटे हैं ताकि ओलंपिक के दौरान आने वाले लोगों को कोई परेशानी ना हो.
लेकिन अनुवाद में बहुत सारी गलतियां हो रही हैं. कई बार वाक्य इतने उल्टे पुल्टे होते हैं कि कुछ समझ नहीं आता. जापानी टूरिज्म एजेंसी ने देश में ट्रेन और बस सेवाएं देने वाली 85 वेबसाइटों के अनुवाद को परखा और उनमें बहुत सारी गलतियां देखने को मिली. मिसाल के तौर पर एक ट्रैवल एजेंसी ने बच्चों को 'बौने' लिखा था. इसी तरह टोक्यो में अंडरग्राउंड ट्रेन के एक स्टेशन पर लगे बड़े से बोर्ड पर लिखा था, "टोई शिनजुकु और टोई मिता लाइनें इसे नहीं ले सकतीं." वहीं होकाने में कभी जेल रही एक इमारत के बाहर लिखा है, "अपने दोषी जूतों को उतारिए और विनम्रता से जेल में आइए."
दुनिया भर में लोग एक दूसरे से मिलने पर बिल्कुल अलग तरह से अभिवादन करते हैं. आइए जानें कि कहां कैसे किया जाता है नमस्कार.
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भारत
अपने दोनों हाथों को साथ लाकर प्रार्थना जैसी मुद्रा में एक दूसरे का अभिवादन नमस्कार के साथ होता है. सिर हल्का सा झुका कर नमस्ते कहना भी प्रचलित है.
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यमन, कतर और ओमान
यहां नाक लड़ा कर नमस्कार किया जाता है. पुरुष मिलने पर कुछ बार दोस्ताना तरीके से नाक को एक दूसरे से सटाते हैं. महिलाओं में ऐसा नहीं होता.
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फ्रांस
यूरोपीय देश फ्रांस में आमतौर पर बारी बारी से दोनों गालों पर किस किया जाता है, लेकिन इलाके के हिसाब से किस की संख्या कम या ज्यादा हो सकती है.
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तिब्बत
9वीं शताब्दी से तिब्बत में जीभ दिखाकर एक दूसरे का अभिवादन करने की परंपरा रही है. माना जाता है कि काली जीभ वाले एक राजा ने इसे शुरु किया था.
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थाईलैंड
यहां अपनी हथेलियों को नमस्कार की मुद्रा में साथ लाकर अपने सीने से सटाया जाता है. फिर सिर को ऐसे झुकाते हैं जिससे अंगुलियां ठुड्डी को छूती हों.
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अफ्रीका
अफ्रीका के अलग अलग देशों और कबीलों में बहुत से तरीके प्रचलित हैं. केन्या और तंजानिया के मसाई लोग एक दूसरे पर थूक कर हैलो बोलते हैं.
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जर्मनी
पूरा पंजा पकड़ कर अच्छी तरह से हाथ मिलाना जर्मनी, चीन, मध्य पूर्वी देशों से लेकर बोत्सवाना, जाम्बिया और रवांडा जैसे देशों में प्रचलित हैं.
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रूस
यहां पुरुष सार्वजनिक रूप से मिलने पर बड़े जोरदार तरीके से एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं.
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न्यूजीलैंड
यहां के माओरी लोगों में अभिवादन का एक खास तरीका होता है. लोग एक दूसरे के सामने आकर अपने सिर और नाक सटाते हैं.
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जापान
एक दूसरे के सामने खड़े होकर थोड़ा झुकना अभिवादन का पारंपरिक तरीका है. यह आज भी प्रचलित है.
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जापान में 15 साल से रह रहे एरिक फियोर योकोहामा में फ्रेंच भाषा सिखाने वाला एक स्कूल चलाते हैं. वह एक म्यूजियम के बाहर लगे बोर्ड को पढ़ कर हैरान रह गए. यह म्यूजियम उत्तर कोरियाई एजेंटों द्वारा अगवा किए गए जापानी लोगों की कहानी बताता है.
फियोर कहते हैं, "जो मैंने पढ़ा उस पर मुझे विश्वास नहीं हुआ. यह म्यूजियम जापानी लोगों के अपहरण और उनकी रिहाई के एवज में उत्तर कोरिया की तरफ से रखी गई मांगों की कहानी बताता है, लेकिन उस बोर्ड पर फ्रेंच भाषा में लिखा था कि उन्हें वापस उत्तर कोरिया भेजा जाना चाहिए था." यही नहीं, जब फियोर ने गलती सुधारने के लिए म्यूजियम के अधिकारियों को लिखा तो उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
जापान की निगाता यूनिवर्सिटी में भाषा विज्ञान और पश्चिमी संस्कृति अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर ग्रेगोरी हेडली कहते हैं कि जापान में अंग्रेजी भाषा के बोर्डों की एक परंपरा रही है. यहां तक कि निगाता जैसे छोटे शहरों में भी ऐसे बोर्ड दिखते हैं जहां दूसरे विश्य युद्ध के दौरान कैदियों को रखा गया.
वह कहते हैं, "यह एक सामाजिक-भाषाई मुद्दा है. हमें समझना होगा कि जापान में जो अंग्रेजी वाले साइन बोर्ड लगे हैं वे अंग्रेजी बोलने वालों के लिए नहीं हैं. इन्हें जापान के लोगों ने जापानी पढ़ने वाले लोगों के लिए लगाया है ताकि वे दिखा सकें कि वे एक आधुनिक और विविध समाज में रहते हैं जो पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है."
हेडली कहते हैं कि ट्रैवल कंपनियों को टूरिज्म अधिकारियों की तरफ से अपने साइन बोर्ड्स और निर्देशों में अनुवाद की गलतियों को दूर करने के लिए जो निर्देश दिए गए हैं, वे बहुत प्रभावी नहीं है और उनके लिए काफी देर हो चुकी है.
जापान जाने वाले विदेशी पर्यटकों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में यह और भी जरूरी हो जाता है कि वहां विदेशियों को आने जाने, घूमने फिरने या फिर रहने में कोई दिक्कत ना हो. 2011 में 71 लाख विदेशी सैलानी जापान गए जबकि 2018 में यह आंकड़ा बढ़ कर तीन करोड़ हो गया. 2020 के लिए अधिकारी चार करोड़ के आंकड़े को छूने का लक्ष्य रख रहे हैं.
जापानी भाषा पर पड़ रहे इंग्लिश के प्रभाव को 'जैपलिश' कहा जा रहा है और कई लोग सोशल मीडिया पर इसका मजाक भी उड़ाते हैं. खासकर कई विदेशी इस बारे में अपने अनुभव साझा कर रहे हैं. जापान टुडे वेबसाइट पर एक व्यक्ति ने लिखा, "मैं जब एक जापानी कंपनी में काम करता था तो मेरे जापानी सहकर्मी मेरे पास गूगल से अनुवाद किया हुआ टेक्स्ट लाते थे और मुझसे उसे ठीक करने को कहते थे. मैं समय निकालकर उसे ठीक भी करता था. लेकिन मैं यह देख कर झल्ला जाता था कि वे इस्तेमाल गूगल ट्रांसलेटर वाला टेक्स्ट ही करते थे."
अमेरिकी दबाव में चीन और जापान अपने रिश्ते बेहतर बनाने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने में लगे हैं. लेकिन यह कहना आसान है और करना बहुत मुश्किल. दोनों देशों के बीच राजनीतिक और क्षेत्रीय सीमाओं से जुड़े मुद्दों पर तीखे मतभेद हैं.
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संबंधों पर जोर
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अक्टूबर 2018 में चीन की यात्रा की. साल 2011 के बाद किसी जापानी प्रधानमंत्री की यह पहली चीन यात्रा है. 1972 में राजनयिक संबंध बहाल होने के बाद से ही दोनों देशों के रिश्ते सहज नहीं रहे हैं. अब भी ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिन्हें सुलझाना बाकी है. लेकिन अब रिश्ते 'ऐतिहासिक मोड़' पर बताए जा रहे हैं.
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अमेरिका का दबाव
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सिर्फ अमेरिकी कंपनियों के हितों की बात करने वाले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण चीन और जापान करीब आ रहे हैं. चीन और अमेरिका के बीच तो कारोबारी जंग चल रही है. दोनों ही देश एक-दूसरे के सामानों पर अरबों डॉलर के आयात शुल्क लगा रहे हैं. इसके अलावा ट्रंप प्रशासन अपने देश के व्यापार घाटे को कम करने के लिए जापान के निर्यात को भी निशाना बना रहा है.
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आर्थिक लाभ
चीन, जापान का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और कई जापानी कंपनियां चीन में भारी निवेश भी कर रही हैं. जापान चीन के बड़े बाजार तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है, तो चीन की दिलचस्पी जापान की टेक्नोलॉजी और कॉरपोरेट विशेषज्ञता में है. चीन और जापान, दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. दोनों मानते हैं कि उनके बीच अधिक आपसी आर्थिक सहयोग अमेरिकी दबाव को कम करने में मदद करेगा.
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आपसी अविश्वास
आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों के नेताओं को राजनीतिक और क्षेत्रीय विवाद निपटाने होंगे. जापान एशिया महाद्वीप में चीन के बढ़ते दखल से परेशान है. पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में चीन का आक्रामक रवैया भी जपान के लिए सिर दर्द है. वहीं चीन अमेरिका के साथ जापान की सैन्य साझेदारी को अपने हितों के खिलाफ एक रणनीतिक कदम मानता है.
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विवादित द्वीप
चीन और जापान के बीच कई निर्जन द्वीपों को लेकर भी विवाद रहा है जिन्हें जापान में सेंकाकू और चीन में दिआओयू कहा जाता है. वर्तमान में इन पर जापान का नियंत्रण है, लेकिन चीन भी अपना हक जमाता है. इस विवाद ने चीन-जापान संबंधों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही उनके रिश्ते अस्थिर रहे हैं. युद्ध के दौरान जापान ने चीन के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था.
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नानजिंग का नरसंहार
नानजिंग के नरसंहार पर जापान का रुख भी दोनों देशों के संबंधों में बड़ी बाधा रहा है. जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने वाला था तो जापान की शाही सेना ने चीन के नानजिंग शहर में छह हफ्तों तक बड़े पैमाने पर हत्याओं और बलात्कारों को अंजाम दिया. अब जापान "बड़ी संख्या में गैर लड़ाका (आम) लोगों की हत्या की बात तो मानता है", लेकिन इस घटना की वीभत्सता को उसने हमेशा कम करके ही बताया है.
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उत्तर कोरिया भी कड़ी
कोरिया और चीन की नजदीकियां हमेशा ही जापान के लिए सिर दर्द रही है. जापान जहां उत्तर कोरिया के पूरी तरह परमाणु निशस्त्रीकरण की बात करता है तो वहीं चीन इस क्षेत्र में किम जोंग उन की सरकार का सबसे बड़ा हिमायती है. जापान ने कहा है कि वह उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते सामान्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन जापानी नागरिकों का उत्तर कोरिया द्वारा अपहरण जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें पहले सुलझाना जरूरी है.