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मेघालय में मिली स्नेकहेड मछली की नई प्रजाति

प्रभाकर मणि तिवारी
३० दिसम्बर २०२०

पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहे जाने वाले पर्वतीय प्रदेश मेघालय में स्नेकहेड यानी सांप जैसे सिर वाली मछली की एक नई प्रजाति का पता चला है. ‘चन्ना स्नेकहेड’ नामक यह मछली पहाड़ियों में मौजूद मीठे पानी में पाई जाती है.

Indien Neuer Schlangenkopf-Fisch entdeckt
तस्वीर: J. Praveennraj/Central Island Agricultural Research Institute

बीते साल एक फिशरी ग्रेजुएट ऐरिस्टोन को यह मछली मिली थी. उनसे मिली जानकारी के आधार पर हिमालय की जैव-विविधता की खोज में निरंतर व्यस्त रहनेवाले शोधकर्ताओं की एक टीम ने मेघालय की पर्वत श्रृंखला में अथक परिश्रम करके इस बारे में विस्तृत जानकारी जुटाई है. इस मछली के बारे में विस्तृत ब्योरा "ए न्यू स्पेसीज ऑफ स्नेकहेड फ्रॉम ईस्ट खासी हिल्सा, मेघालय, इंडिया" शीर्षक से हाल में अमेरिका की अमेरिकन सोसायटी ऑफ इचिथोलॉजिस्ट के आधिकारिक जर्नल कोपिया में छपा है.

शोधकर्ताओं की इस टीम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पुत्र तेजस ठाकरे भी शामिल हैं. इस राज्य में खदानों और नदियों में जहरीले रसायनों की वजह से कई दुर्लभ मछलियों के विलुप्त होने की खबरें अक्सर सुर्खियों में रही हैं. इसे लेकर स्थानीय जनजातियां आंदोलन भी करती रही हैं.

मछली की नई प्रजाति

चन्ना स्नेकहेड प्रजाति की मछली की खोज सबसे पहले ऐरिस्टोन मानभा रिंग्डोंगसिंगी ने की थी. उन्होंने इसको लेकर काफी काम किया है. ऐरिस्टोन ने इस संदर्भ में विभिन्न जगहों का दौरा कर उससे जुड़ी जानकारियां जुटाई हैं. इसलिए ‘चन्ना स्नेकहेड' नामक इस प्रजाति का नामकरण उनके नाम पर चन्ना ऐरिस्टोन ही किया गया है. तेजस ठाकरे और उनकी टीम ने राज्य में अब तक 11 दुर्लभ वन्य प्रजातियों का पता लगाया है. इनमें केकड़ा, छिपकली व कई अन्य जीव शामिल हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने हिरण्यकेशी नामक मछली की एक और दुर्लभ प्रजाति का पता लगाया था.

चन्ना स्नेकहेड नामक यह रंग-बिरंगी मछली राज्य के ईस्ट खासी हिल्स जिले के पुरियांग में एक छोटी पहाड़ी नदी में मिली है. सबसे पहले इसे देखने वाले रिभोई जिले के लेमांवलांग गांव के ऐरिस्टोन रिंग्डोंगसिंगी बताते हैं, "पूर्वोत्तर के अलावा पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, मध्य भारत और श्रीलंका में अब तक जितनी स्नेकहेड मछलियां पाई गई हैं उससे इस मछली का रंग, दांतों का पैटर्न और डीएनए सीक्वेंस एकदम भिन्न है." शिलांग के सेंट एंथनी कालेज से फिशरी में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाले ऐरिस्टोन बताते हैं कि मछली के नीले शरीर पर मैरून रंग की स्थानीय तिपतिया घास जैसी धारियां हैं जो इसे देश के बाकी हिस्सों में पाई जाने वाली स्नेकहेड मछलियों से अलग करती है. इसके अलावा इसका डीएनए पैटर्न भी अलग है. इन मछलियों की लंबाई 10 से 180 सेंटीमीटर तक है.

मेघालय में अवैध खननतस्वीर: DW/P. Mani

जैव विविधताओं के लिए मशहूर

राज्य में इस मछली की खोज के बाद ऐरिस्टोन ने इसका ब्योरा, तस्वीरें और नमूना पोर्टब्लेयर स्थित आईसीएआर-सीएआरआई (इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च—सेंट्रल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट) के फिशरी साइंस डिवीजन में वैज्ञानिक जे. प्रवीणराज को भेजा था. प्रवीणराज बताते हैं, "यह एक नई मछली थी. इसकी पुष्टि के लिए हमने ईस्ट खासी हिल्स का दौरा कर नमूना जुटाया. बाद में मोर्फोलाजिकल और डीएनए पैटर्न की जांच से इसके नई प्रजाति होने की पुष्टि हुई. सबसे पहले इसकी तलाश करने वाले के सम्मान में हमने इसे चन्ना ऐरिस्टोन नाम दिया है.”

प्रवीणराज बताते हैं कि पूर्वी नेपाल से पूर्वोत्तर, भूटान और म्यांमार तक फैला हिमालय का पूर्वी क्षेत्र जैव-विविधता से भरपूर है. इस इलाके में कई विलुप्तप्राय जीव रहते हैं. हाल के वर्षों में स्नेकहेड मछली की छह प्रजातियां उसी इलाके से मिली हैं. उनके मुताबिक, मछली की इस नई प्रजाति को खाने के साथ ही घरों में भी सजाया जा सकता है. अमेरिकी जर्नल की ओर से इस शोध को मानय्ता मिलने पर तेजस ठाकरे ने खुशी जताई है. वह कहते हैं, "मैंने आज तक चन्ना एरिस्टोन से सुंदर मछली नहीं देखी थी. इसके बारे में शोध करने वाली टीम का हिस्सा बनना मेरे लिए गर्व की बात है.”

पूर्वोत्तर में खासकर मेघालय मछलियों की नई प्रजातियों का घर है. हाल में शिलांग के लेडी कीन कॉलेज के प्रोफेसर खलुर मुखिम के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने वाबलेइ नदी की सहायक त्वादोह नदी से शिस्तुरा सिंगकई नाम की मछली की नयी प्रजाति की खोज की थी. मुखिम बताते हैं, "उस मछली के शरीर पर काले रंग की पार्श्विक धारियों के साथ सुनहरे-भूरे रंग की त्वचा है. मछली के नमूने कोलकाता में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण और गुवाहाटी में गौहाटी यूनिवर्सिटी म्यूजियम ऑफ फिशेज को भेजे गए हैं.”

खदानों से जहरीला होता पानी

दूसरी ओर, नई प्रजातियां मिलने के साथ ही राज्य में तेजी से होने वाली खुदाई और चूना पत्थर की खदानों की वजह से कई नदियों का पानी जहरीला हो रहा है. नतीजतन उनमें रहने वाली मछलियां विलुप्त होती जा रही हैं. पूर्वी जयंतिया पहाड़ी जिले में जहरीली 'नीली' नदी को बांग्लादेश के सिलहट जिले में गंभीर रूप से लुप्तप्राय मछली प्रजातियों के विलुप्त होने की मुख्य वजह माना जा रहा है. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर की ओर से तैयार बांग्लादेश की रेड लिस्ट में बताया गया है कि रहने की जगह के नष्ट होने की वजह से लुखा नदी, जिसे बांग्लादेश में लुबाचारा कहा जाता है, से मछली की प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं. मेघालय की लुखा नदी और बांग्लादेश में सिलहट जिले के पूर्वोत्तर कोने में सुरमा नदी की एक सहायक नदी लुबाचारा नदी में गोलपारा पाश मछली पाई जाती है.

लुखा नदी बांग्लादेश में पूर्वी जयंतिया पहाड़ियों में सोनापुर से लगभग आठ किलोमीटर दूर बहती है. मेघालय के पूर्वी जयंतिया पहाड़ी जिले में थांगस्कई और लामशानोंग के आसपास चूना पत्थर की खदानों व सीमेंट कारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायनों के नदी में गिरने की वजह से लुखा नदी गहरे नीले रंग में बदल जाती है. इस मुद्दे पर खासी स्टूडेंट्स यूनियन ने लुखा को प्रदूषित करने के लिए सीमेंट कंपनियों को दोषी ठहराया है. खासी स्टूडेंट्स यूनियन ने मेघालय सरकार से कहा है कि जलीय वनस्पतियों और जीवों को लुखा के जहरीले पानी ने नष्ट कर दिया है. मेघालय के पूर्वी जयंतिया पहाड़ियों के जिले में सीमेंट की कई बड़ी फैक्टरियां हैं.

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