जॉर्ज बुश: पश्चिमी देशों का अफगानिस्तान छोड़ना एक गलती
१४ जुलाई २०२१
अफगानिस्तान युद्ध को शुरू करने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पश्चिमी देशों के अफगानिस्तान छोड़ कर जाने को एक गलती बताया है. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा कि इससे वहां की महिलाओं को "अकथनीय" नुकसान होगा.
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जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय प्रसारक डॉयचे वेले ने जब बुश से पूछा की अफगानिस्तान से पश्चिमी ताकतों का निकलना क्या एक गलती है, तो उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हां ये एक गलती है, क्योंकि मुझे लगता है कि इसके परिणाम अविश्वसनीय रूप से खराब होंगे." अफगानिस्तान में युद्ध बुश के ही कार्यकाल में अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद शुरू हुआ था.
अमेरिका ने तालिबान के नेता मुल्ला उमर के सामने अंतिम शर्त रखी थी कि या तो वो अल-कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन को सौंप दे और आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट कर दे या हमले के लिए तैयार हो जाए. उमर ने शर्त मानने से मना कर दिया था और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के एक गठबंधन ने अक्टूबर में आक्रमण कर दिया था.
'मैर्केल समझ गई थीं'
इस साल की शुरुआत में नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो की सेनाओं के निकलने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. अब यह प्रक्रिया पूरी होने ही वाली है. तालिबान के लड़ाके एक एक कर के देश के कई जिलों पर कब्जा जमाते जा रहे हैं और उन्होंने देश के इलाके के एक बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया है.
डॉयचे वेले ने बुश का यह साक्षात्कार जल्द सत्ता छोड़ कर जाने वाली जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के आखिरी अमेरिका दौरे के मौके पर किया. बुश ने प्रसारक को बताया कि मैर्केल ने अफगानिस्तान में सेनाओं की तैनाती का आंशिक रूप से समर्थन किया था "क्योंकि वो समझ गई थीं कि इससे अफगानिस्तान में युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए काफी तरक्की हासिल की जा सकती थी."
मासूमों की बलि
बुश ने कहा, "तालिबान की क्रूरता की वजह से वो समाज कैसे बदल गया, यह अविश्वसनीय है...और अब अचानक...दुखद रूप से...मुझे डर है कि अफगान महिलाओं और लड़कियों का अकथनीय अनिष्ट होगा." 1990 के बाद के दशकों में तालिबान के शासन के दौरान महिलाओं को मोटे तौर पर उनके घरों के अंदर तक ही सीमित कर दिया गया था और लड़कियां शिक्षा हासिल नहीं कर सकती थीं.
अमेरिका और यूरोप के विरोध के बावजूद तालिबान ने इस्लामिक शरिया कानून एक अपने चरम प्रारूप को लागू किया. हालांकि लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा नहीं हुई. बुश ने कहा, "मैं दुखी हूं...लौरा (बुश) और मैंने अफगान महिलाओं के साथ काफी वक्त बिताया था और अब वो डरी हुई हैं. और मैं उन सब अनुवादकों और अमेरिकी और नाटो सैनिकों की मदद करने वाले उन सभी लोगों के बारे में सोचता हूं, तो मुझे लगता है कि वो सब वहीं छूट जाएंगे और इन अति क्रूर लोगों के हाथों बलि चढ़ा दिए जाएंगे. और इससे मेरा दिल टूट जाता है."
सीके/एए (एपी)
अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध की कीमत
सितंबर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ अफगानिस्तान में युद्ध अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध बन चुका है. अब स्पष्ट हो चुका है कि संसाधनों और जिंदगियों की असीमित कीमत चुकाने के बाद भी अमेरिका यह युद्ध जीत नहीं पाया.
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AFP
एक खूनी अभियान
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत अफगानियों ने चुकाई है. ब्राउन विश्वविद्यालय के "युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के कम से कम 47,245 नागरिक मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 66,000-69,000 अफगान सैनिकों के भी मारे जाने का अनुमान है. अमेरिका ने 2,442 सैनिक और 3,800 निजी सुरक्षाकर्मी गंवाएं हैं और नाटो के 40 सदस्य राष्ट्रों के 1,144 कर्मी मारे गए हैं.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
भारी विस्थापन
युद्ध की वजह से 27 लाख से भी ज्यादा अफगानी लोग दूसरे देश चले गए. इनमें से अधिकतर ईरान, पाकिस्तान और यूरोप चले गए. जो देश में ही रह गए उनमें से 40 लाख देश के अंदर ही विस्थापित हो गए. देश की कुल आबादी 3.6 करोड़ है.
तस्वीर: Aref Karimi/DW
पैसों की बर्बादी
"युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक अमेरिका ने इस युद्ध पर 2260 अरब डॉलर खर्च दिए हैं. अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक सिर्फ युद्ध लड़ने में ही 815 अरब डॉलर खर्च हो गए. युद्ध के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्र निर्माण की अलग अलग परियोजनाओं में 143 अरब डॉलर खर्च हो गए. इतिहास में पहली बार एक युद्ध के लिए अमेरिका ने उधार भी लिया और पिछले सालों में वो 530 अरब डॉलर मूल्य के ब्याज का भुगतान कर चुका है.
तस्वीर: Gouvernement Media and Information Center
यह खर्च अभी भी चलता रहेगा
अमेरिका ने सेवानिवृत्त सैनिकों के इलाज और देखभाल पर 296 अरब डॉलर खर्च किए हैं. यह खर्च आने वाले कई सालों तक चलता रहेगा.
अमेरिकी सरकार का अनुमान है कि राष्ट्र निर्माण पर हुए खर्च में से अरबों रुपए बेकार चले गए. नहरें, बांध और राज्य मार्गों का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया, नए अस्पताल और स्कूल खाली पड़े हैं और भ्रष्टाचार भी पनपा है.
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जाने का खर्च अलग है
कई लोगों को डर है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और महिलाओं के लिए अधिकारों के क्षेत्र में अफगानिस्तान में जो भी थोड़ी-बहुत तरक्की हुई है, वो अमेरिका के यहां से चले जाने के बाद संकट में पड़ जाएगी. पिछले 20 सालों में देश में अनुमानित जीवन-काल 56 से बढ़कर 64 हो गया है. मातृत्व मृत्यु दर आधे से भी ज्यादा कम हो गई है. साक्षरता दर आठ प्रतिशत बढ़ कर 43 प्रतिशत पर पहुंची है. बाल विवाह में भी 17 प्रतिशत की कमी आई है.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
अनिश्चितता का दौर
निश्चित रूप से अमेरिका एक स्थिर, लोकतांत्रिक अफगानिस्तान बनाने के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया और अब जब अमेरिकी सैनिक देश छोड़ रहे हैं, अफगानिस्तान का भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ नजर आ रहा है. (एपी)