करीब दो हजार साल पहले ज्वालामुखी के एक धमाके ने इंसान के मस्तिष्क कांच में बदल दिया था. लगभग 50 साल की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है.
विज्ञापन
सन 1944 से शांत पड़ा माउंट वेसुवियस ज्वालामुखी आज दक्षिणी इटली की सीमा में आता है. लेकिन करीब दो हजार साल पहले एडी 79 में इसमें इतना भीषण धमाका हुआ कि रोमन साम्राज्य के कई शहर पूरी तरह उजड़ गए. पास के इलाके से मिले एक इंसानी अवशेष की जांच करने पर पता चला है कि ज्वालामुखी के धमाके ने मानव मस्तिष्क को कांच में बदल दिया था. इटली के मानव विज्ञान शास्त्रियों की इस खोज को "सनसनीखेज" बताया जा रहा है. शोध हाल ही में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपा है. यह पहला मौका है जब वैज्ञानिक एक अकल्पनीय माने जाने वाले नतीजे तक पहुंचे हैं.
ज्वालामुखी से करीब 20 किलोमीटर दूर हरक्यूलेनियम साइट के पुरातत्व विभाग ने एक बयान जारी कर कहा, "अत्यधिक गर्मी पीड़ित के फैट और शरीर के ऊतकों को जलाने के लिए काफी थी, इसके चलते मस्तिष्क विट्रीफाई हुआ. यह पहला मौका है जब कांच में तब्दील इंसानी मस्तिष्क के ऐसे अवशेष मिले हैं जिनके लिए विस्फोट जिम्मेदार हो."
पुरातत्व विज्ञानियों को आम तौर पर इंसानी मस्तिष्क के ऊतक नहीं ही मिलते हैं. अगर वे ऊतक मिल भी जाएं तो वे मुलायम और छागदार से बने रहते हैं. लेकिन 1960 के दशक में हरक्यूलेनियम में खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को पत्थर जैसे ठोस आवरण वाला इंसानी अवशेष मिला. वह शख्स 79 एडी में ज्वालामुखी के फटने से मारा गया था. आज से 1941 साल पहले फटे माउंट वेसुवियस ने पोमपेईएंड और उसके पड़ोसी इलाके हरक्यूलेनियम के सारे बाशिंदों को मार डाला. लोग 16 मीटर मोटे राख के ढेर में दब गए. ज्वालामुखी से 20 किलोमीटर दूर हरक्यूलेनियम में मिला यह इंसान अवशेष राख के ढेर के चलते सुरक्षित रहा. उसके ऊपर लकड़ी की खाट भी थी.
माना जाता है कि यह अवशेष करीब दो हजार साल पहले वहां स्थित आगुस्टालेस कॉलेज के संरक्षक का है. इस कॉलेज को रोमन सम्राट आगुस्टस की पूजा का केंद्र माना जाता है. केंद्र में राख में दबे बिस्तर और उसके नीचे से मिले इंसानी अवशेष की जब जांच की गई तो वैज्ञानिकों को सिर के ढांचे के भीतर कांच मिला. वैज्ञानिकों के मुताबिक वह शख्स लावे और जहरीली गैसों के बीच फंस गया होगा.
वैज्ञानिकों की टीम ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि पीड़ित का मस्तिष्क विट्रीफाई हो चुका था. विट्रीफिकेशन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें कोई चीज अतिउच्च तापमान के चलते कांच में बदल जाती है. पीड़ित के मस्तिष्क के ऊतकों के साथ भी ऐसा ही हुआ, वे इतने ज्यादा तापमान के संपर्क में आए कि जलकर कांच में बदल गए.
रिसर्चरों को यकीन है कि तापमान करीब 520 डिग्री सेल्सियस तक गया होगा, इसके बाद अचानक बहुत तेजी से तापमान गिरा होगा, जिसके चलते कांच बरकरार रहा. माउंट वेसुवियस को आज भी दुनिया के सबसे खतरनाक ज्वालामुखियों में गिना जाता है. आखिरी बार वह 1944 में फटा था.
ओएसजे/आरपी (एपी, एएफपी)
कितना जानते हैं आप ज्वालामुखी के बारे में
समय समय पर फट पड़ने वाले ज्वालामुखी असल में कैसे बनते हैं और वे फटते क्यों हैं? यहां देखिए ज्वालामुखी के बारे में कई दिलचस्प बातें.
तस्वीर: Reuters
ज्वालामुखी एक पहाड़ होता है जिसके भीतर पिघला लावा भरा होता है. पृथ्वी के नीचे दबी उच्च ऊर्जा यानि जियोथर्मल एनर्जी से पत्थर पिघलते हैं. जब जमीन के नीचे से ऊपर की ओर दबाव बढ़ता है तो पहाड़ ऊपर से फट पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Aton Chile
ज्वालामुखी के नीचे पिघले हुए पत्थरों और गैसों के मिश्रण को मैग्मा कहते हैं. ज्वालामुखी के फटने पर जब यह मैग्मा बाहर निकलता है तो वह लावा कहलाता है.
तस्वीर: picture alliance/AP/David Jordan
ज्वालामुखी फटने पर मैग्मा तो बहता ही है, साथ ही गर्म राख भी हवा के साथ बहने लगती है. जमीन के नीचे हलचल मचने से भूस्खलन होता है और बाढ़ भी आती है.
तस्वीर: picture alliance/AP/David Jordan
ज्वालामुखी से निकलने वाली राख में पत्थर के छोटे छोटे कण होते हैं जिनसे चोट पहुंच सकती है. इसके अलावा बच्चों और बुजुर्गों के फेंफड़ों को इनसे खासा नुकसान पहुंच सकता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Aditya
ज्वालामुखियों के फटने का नतीजा देखिए कि आज पृथ्वी की सतह का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा करोड़ों सालों पहले निकले लावा के जमने से ही बना है. समुद्र तल और कई पहाड़ भी ज्वालामुखी के लावा की ही देन हैं. इससे निकली गैसों से वायुमंडल बना.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Aditya
दुनिया भर में 500 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं. इनमें से आधे से ज्यादा 'रिंग ऑफ फायर' का हिस्सा हैं. यह प्रशांत महासागर के चारों ओर ज्वालामुखियों के हार जैसा है, इसलिए इसे रिंग ऑफ फायर कहते हैं.
तस्वीर: DW
कई देशों में ज्वालामुखियों की पूजा होती है. जैसे अमेरिकी प्रांत हवाई में ज्वालामुखियों की देवी पेले की मान्यता है. हवाई में ही दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी हैं, जिनमें सबसे खतरनाक हैं मौना किया और मौना लोआ.
1982 में ज्वालामुखी की तीव्रता मापने के लिए शून्य से आठ के स्केल वाला वॉल्कैनिक एक्सप्लोसिविटी इंडेक्स बनाया गया. इंडेक्स पर शून्य से दो के स्कोर वाले ज्वालामुखी लघभग रोजाना फटते हैं. तीन के स्कोर वाले ज्वालामुखी का फटना घातक होता है और यह लगभग हर साल होता है.
तस्वीर: Reuters/U.S. Geological Survey/Handout
चार और पांच स्कोर वाले ज्वालामुखी कई दशकों या सदियों में फटते हैं. छह और सात स्कोर वाले ज्वालामुखियों से सुनामी आते हैं या भूकंप होता है. स्कोर आठ के कम ही ज्वालामुखी हैं. इस तीव्रता वाला पिछला विस्फोट ईसा से 24,000 वर्ष पहले हुआ था.
तस्वीर: Reuters
ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं. पहला- खोखली पहाड़ी जैसा, जिससे लावा निकलता है. दूसरा- ऊंचे पर्वत जैसा, जिसकी कई सुरंगों से लावा बहता है. तीसरी किस्म समतल पहाड़ियों जैसी होती है.