झारखंड में एक नया घोटाला सामने आया है जिसमें एक केंद्रीय योजना के तहत दी जाने वाली छात्रवृत्ति की राशि को बड़े ही सुनियोजित तरीके से चोरी करने का पर्दाफाश हुआ है. मामले में अब जांच की घोषणा कर दी गई है.
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यह घोटाला केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति की एक योजना, प्री-मेट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम, में हुआ. स्कीम के तहत सालाना एक लाख रुपयों से काम आय वाले मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध परिवारों के मेधावी बच्चों को मदद की रकम दी जाती है.
2019-20 में मंत्रालय ने योजना के लिए 1400 करोड़ रुपये आबंटित किए थे जिसमें झारखंड के हिस्से आए थे 61 करोड़. राज्य में इस योजना के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार नोडल संस्था है झारखंड स्टेट माइनॉरिटीज फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कोरपोरेशन.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने खुद की गई एक जांच में पाया कि कई मामलों में जिन छात्रों के नाम से छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया गया था उन्हें उसका बस एक हिस्सा ही मिला. कई जगह वयस्कों की जानकारी को छात्रों की जानकारी दिखा कर फर्जी आवेदन भरे गए और रकम आने पर उन्हें सिर्फ उसका एक हिस्सा दे दिया गया.
कैसे हुआ घोटाला
आरोप है कि घोटाले के पीछे बिचौलियों, बैंक कर्मचारियों, स्कूल स्टाफ और राज्य सरकार के कर्मचारियों का एक पूरा तंत्र काम कर रहा था. बिचौलियों ने पहले तो कुछ स्कूल मालिकों को अपने साथ मिला कर राष्ट्रीय स्कॉलरशिप पोर्टल पर उनका लॉगिन आईडी और पासवर्ड ले लिया. फिर कुछ बैंक कर्मचारियों की मदद से भावी लाभार्थियों के आधार और उंगलियों के निशान जैसी जानकारी हथिया ली, उनके नाम पर खाते खुलवाए और उनकी तरफ से छात्रवृत्ति के लिए आवेदन भर दिया.
कुछ सरकारी कर्मचारियों की मदद से कई मामलों में छात्रवृत्ति का पैसा हथिया लेने के बाद लाभार्थियों को उसका एक छोटा हिस्सा देकर बाकी चोरी कर लिया गया. कई दूसरे मामलों में फर्जी लाभार्थियों के खाते बनाए गए और पूरी की पूरी रकम चोरी कर ली गई. ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिनमें एक ही स्कूल के 100 से भी ज्यादा फर्जी छात्रों के खाते बना कर रकम हथिया ली गई और स्कूल को खबर तक नहीं हुई.
जहां वयस्कों की जानकारी भरवाई गई वहां उनसे आने वाली रकम के स्रोत के बारे में झूठ बोल दिया गया, जैसे सऊदी अरब से आई धर्मार्थ रकम. इस मामले में राज्य की झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं और घोटाले पर लगाम ना लगाने के लिए बीजेपी की पूर्ववर्ती सरकार पर आरोप लगाया है.
आधार व्यवस्था भी कमजोर
लेकिन राजनीतिक खींच तान से परे इस मामले ने यह दिखा दिया है कि अगर घोटालों के पीछे सरकारी कर्मचारियों से लेकर बिचौलियों तक पूरा का पूरा तंत्र शामिल हो तो आधार और बायोमेट्रिक जानकारी जैसी चीजें भी भ्रष्टाचार के आगे विफल हैं.
अर्थशास्त्री जॉन देरेज ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि भ्रष्ट बैंकिंग करेस्पॉन्डेंट गरीबों से उनकी आधार और बायोमेट्रिक जानकारी लेकर नियमित रूप से उनके वेतन, पेंशन और छात्रवृत्तियां चुरा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने कई बार इस बारे में आरबीआई, एनपीसीआईएल और अन्य संस्थाओं को बताया है लेकिन किसी भी संस्था ने कभी कोई कदम नहीं उठाया.
भारत में भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीति के केंद्र में है. यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही. फिर भ्रष्टाचार मुक्त शासन के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आयी. एक नजर भारत के अब तक के महाघोटालों पर.
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कोलगेट स्कैम
यूपीए टू के समय सामने आया कोलगेट घोटाला 1993 से 2008 के बीच सार्वजनिक और निजी कंपनियों को कम दामों में कोयले की खदानों के आवंटन का था. कैग (सीएजी) की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया था कि गलत आवंटन कर इन कंपनियों को 10,673 अरब का फायदा पहुंचाया गया था. इस घोटाले ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पर नकारात्मक असर डाला. हालांकि अदालत में यह घोटाला साबित नहीं हुआ.
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टूजी स्कैम
कंपनियों को गलत तरह से टूजी स्पैक्ट्रम आवंटित करने का यह महाघोटाला भी यूपीए सरकार के समय का है. कैग के एक अनुमान के मुताबिक जिस कीमत में इन स्पैक्ट्रमों को बेचा गया और जिसमें इसे बेचा जा सकता था उसमें 17.6 खरब रूपये का अंतर था. यानि देश को लगा कई खरब का चूना लगा. लेकिन अदालत में सीबीआई इसको साबित नहीं कर सकी. अदालत ने कहा कि कोई घोटाला ही नहीं हुआ.
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व्यापमं घोटाला
भाजपा शासित मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल की ओर से मेडिकल समेत अन्य सरकारी क्षेत्रों की भर्ती परीक्षा में धांधली से जुड़ा 'व्यापमं घोटाला' अब तक का सबसे जानलेवा घोटाला है. अब तक इससे जुड़े, इसकी जांच कर रहे या इस की खबर लिख रहे पत्रकारों समेत दर्जनों लोगों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो चुकी है.
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बोफोर्स घोटाला
स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तोपों की खरीद के सौदे में घूसखोरी का ये घोटाला भारतीय राजनीति का सबसे चर्चित घोटाला है. 410 तोपों के लिए कंपनी के साथ 1.4 अरब डॉलर का सौदा किया गया जो कि इसकी असल कीमतों का दोगुना था. अदालत ने राजीव गांधी को इस मामले से बरी कर दिया था.
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कफन घोटाला
2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौर में सामने आया यह घोटाला कारगिल युद्ध के शहीदों के ताबूतों से जुड़ा था. शहीदों के लिए अमेरीकी कंपनी ब्यूट्रॉन और बैजा से तकरीबन 13 गुना अधिक दामों में ताबूत खरीदे गए थे. हर एक ताबूत के लिए 2,500 डॉलर दिए गए.
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हवाला कांड
एलके आडवानी, शरद यादव, मदन लाल खुराना, बलराम जाखड़ और वीसी शुक्ला समेत भारत के अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं का नाम इस घोटाले में सामने आया. इस घोटाले में हवाला दलाल जैन बंधुओं के जरिए इन राजनेताओं को घूस दिए जाने का मामला था. इसकी जांच में सीबीआई पर कोताही बरतने के आरोप लगे और धीरे-धीरे तकरीबन सभी आरोपी बरी होते गए.
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शारदा चिट फंड
200 निजी कंपनियों की ओर से साझे तौर पर निवेश करने के लिए बनाए गए शारदा ग्रुप में हुआ वित्तीय घोटाला भी महाघोटालों में शामिल है. चिट फंड के बतौर जमा राशि को लौटाने के समय में कंपनी को बंद कर दिया गया. इस घोटाले में त्रिणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष जेल भजे गए. साथ ही बीजू जनता दल, बीजेपी और त्रिणमूल कांग्रेस के कई अन्य नेताओं की भी गिरफ्तारियां हुई हैं.
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ऑगस्टा वेस्टलैंड डील
इटली की हेलीकॉप्टर निर्माता फर्म ऑगस्टा वेस्टलैंड से 12, एडब्लू101 हेलीकॉप्टर्स की खरीददारी के इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कुछ भारतीय राजनीतिज्ञों और सेना के अधिकारियों पर घूस लेने के आरोप हैं. ऑगस्टा वेस्टलैंड के साथ इन 12 हेलीकॉप्टर्स के लिए ये सौदा 36 अरब रूपये में हुआ था.
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चारा घोटाला
करीब 9.4 अरब के गबन का चारा घोटाला भारत के मशहूर घोटालों में से एक है. यह घोटाला राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक अवसान की वजह बना. वहीं इस घोटाले से पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और शिवानंद तिवारी का भी नाम जुड़ा था.
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कॉमनवेल्थ
2010 में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ खेल, भारत में खेल जगत का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुए. इस खेल में अनुमानित तौर पर 70 हजार करोड़ रूपये खर्च किए गए. गलत तरीके से ठेके देकर, जानबूझ कर निर्माण में देरी, गैर वाजिब कीमतों में चीजें खरीद कर इस पैसे का दुरूपयोग किया गया था. इन अनियमितताओं के केंद्र में मुख्य आयोजनकर्ता सुरेश कल्माड़ी का नाम था.