केंद्र सरकार उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन मुहैया करा आम लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने के साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा के दावे तो कर रही है. लेकिन शहरों में झुग्गियों बस्तियों के सारे घरों के पास एलपीजी नहीं है.
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काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के एक ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि छह भारतीय राज्यों में शहरी झुग्गियों में रहने वाले परिवारों में से लगभग आधे ही एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में, ग्रामीण इलाकों की तस्वीर का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के शहरी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले आधे परिवार ही पूरी तरह एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं.
ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि इन शहरी झुग्गियों में 86 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन है. भारत की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा इन्हीं छह राज्यों में रहता है. इसके अलावा ऐसे घरों में से 16 प्रतिशत आज भी प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल करते हैं.
सर्वेक्षण रिपोर्ट
सीईईडब्ल्यू के ‘कुकिंग एनर्जी एक्सेस सर्वे 2020' के नतीजे हाल में जारी किए गए हैं. यह सर्वेक्षण छह राज्यों की शहरी झुग्गियों में किया गया था. इसके लिए देश के 58 अलग-अलग जिलों की 83 शहरी झुग्गी बस्तियों के 656 घरों को चुना गया था. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बस्तियों के 86 फीसदी घरों में एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद विभिन्न वजहों से लगभग आधे लोग ही रसोई गैस का इस्तेमाल करते हैं. इनमें से 37 फीसदी घरों को समय पर रीफिल की डिलीवरी नहीं मिलती. इसके साथ ही इन बस्तियों के 16 फीसदी घरों में अब भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, गोबर के उपले और केरोसिन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. इससे घर के अंदर प्रदूषण बढ़ जाता है और उसमें रहने वाले लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने पर मजबूर हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सर्दियों में प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों का इस्तेमाल बढ़ जाता है. उस दौरान खाना पकाने के साथ ही लोगों को सर्दी से बचने के लिए भी आग की जरूरत पड़ती है. बस्तियों के लगभग दो-तिहाई घरों में ऐसे ईंधन का इस्तेमाल घर के भीतर किया जाता है और उनमें से 67 फीसदी घरों में धुआं बाहर निकलने के लिए कोई चिमनी नहीं है.
सर्वेक्षण रिपोर्ट में संगठन ने सरकार को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत उपभोक्ताओं की तादाद बढ़ाने की सलाह दी गई है. इसमें कहा गया है कि इस योजना के दूसरे चरण में सरकार को शहरी झुग्गी बस्तियों में उपभोक्ताओं की तादाद बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. इसकी वजह यह है कि अब भी काफी घर ऐसे हैं जहां एलपीजी का कनेक्शन नहीं है. रिपोर्ट में उज्ज्वला योजना को स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण संबंधी दूसरी केंद्रीय योजनाओं के साथ जोड़कर लोगों में स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रति जागरुकता फैलाने की सिफारिश की गई है ताकि लोग अधिक से अधिक तादाद में रसोई गैस का इस्तेमाल करें.
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पर्यावरण की खातिर इस साल लाएं जीवन में ये बदलाव
कोरोना महामारी ने दिखा दिया है कि इंसान अपनी गति को कम कर दे तो पर्यावरण को फायदा पहुंचा सकता है. सरकारों और नीतियों का इंतजार करने की जगह इस साल आप अपने जीवन में ये छह बदलाव ला कर पर्यावरण को बचा सकते हैं.
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कार की जगह साइकल
हर दिन ना सही तो कम से कम हफ्ते में एक दिन अपनी कार को घर में ही रहने दें. पेट्रोल का खर्च तो बचेगा ही, कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन भी कम होगा. शोध दिखाते हैं कि यदि एक व्यक्ति भी कार का इस्तेमाल बंद कर दे, तो सालाना दो टन CO2 उत्सर्जन कम किया जा सकता है. यानी आप खुद अपनी हवा साफ कर सकते हैं.
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प्लेन की जगह ट्रेन
वैसे तो कोरोना के कारण उड़ानें यूं भी कम हो गई हैं लेकिन अगर आपको कहीं सफर करना ही हो, तो प्लेन की जगह ट्रेन की टिकट कराइए. यह आपकी जेब पर भी हल्का रहेगा और इससे भी CO2 उत्सर्जन कम होगा. सालाना एक व्यक्ति की लंबी दूरी वाली एक रिटर्न फ्लाइट 1.68 टन CO2 उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होती है.
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नॉन वेज की जगह वेज
आप जो खाते हैं उससे भी आपका कार्बन फुटप्रिंट निर्धारित होता है. दुनिया भर में जितना CO2 उत्सर्जन होता है, उसका एक चौथाई हिस्सा मीट इंडस्ट्री की देन है. जहां एक किलो बीफ की पैदावार में 60 किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, वहीं एक किलो चिकन में छह किलो ग्रीनहाउस गैसों का और एक किलो मटर में केवल एक किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है.
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बर्बादी रोकिए
घर में लोग भले ही खाने की बर्बादी ना करें लेकिन शादी, पार्टी या किसी बड़े समारोह में ऐसा बहुत होता है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में उगने वाला एक तिहाई भोजन बर्बाद होता है. फिका हुआ खाना जब लैंडफिल में जाकर सड़ता है, तो भी मीथेन जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं. इसलिए, इस ओर खूब ध्यान दें.
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पौधे लगाएं
जरूरी नहीं है कि पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ ही लगाने हैं. आप अपने घर की बालकनी में कुछ फूल वाले पौधे भी लगा सकते हैं. ये भंवरों और मधुमक्खियों को आकर्षित करेंगे जो खाद्य श्रृंखला के लिए बेहद अहम हैं. साथ ही चाय पत्ती और फल सब्जी के छिलकों को फेंकने की जगह इनमें खाद की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
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फास्ट फैशन से बचें
यह शायद सबसे मुश्किल बदलाव होगा लेकिन सबसे जरूरी भी. एक जमाना था जब लोग किसी भी खरीदे हुए कपड़े को सालोंसाल चलाते थे लेकिन अब ब्रैंडेड कपड़े भी इतने सस्ते मिलने लगे हैं कि लोग कुछ बार ही पहन कर इन्हें फेंक देते हैं. ये फेंके हुए कपड़े दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का दस फीसदी हिस्सा बनते हैं.
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सरकार को सलाह
सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने के मौके पर सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा, "सरकार को शहरी बस्तियों के उन घरों की पहचान कर एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराना चाहिए जिनके पास अब तक यह सुविधा नहीं है. इसके साथ ही तेल कंपनियों और वितरकों से बात कर डिलीवरी नेटवर्क को दुरुस्त करना जरूरी है ताकि समय पर घर बैठे सिलेंडर की सप्लाई सुनिश्चित की जा सके. इसके अलावा रसोई गैस की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के अलावा इन बस्तियों के दूसरे परिवारों को भी सब्सिडी की रकम बढ़ानी चाहिए.”
इस सर्वेक्षण का नेतृत्व करने वाली शैली झा ने कहा, "शहरी झुग्गी बस्तियों का एक बड़ा हिस्सा खासकर बढ़ती कीमतों और महामारी की वजह से एलपीजी के इस्तेमाल में समस्याओं से जूझ रहा है. शहरी झुग्गियों में उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की तादाद कम होने की वजह से वहां रहने वाले ज्यादातर परिवार पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त सिलेंडर के रूप में राहत सहायता के हकदार नहीं हैं.” सीईईईडब्ल्यू ने सुझाव दिया है कि नेशनल अर्बन लाइवलीहुड मिशन और आवास जैसे प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों का इस्तेमाल रसोई के लिए साफ ईंधन मुहैया कराने के लिए भी किया जाना चाहिए. इससे जरूरतमंद गरीबों को उनकी आर्थिक पहुंच के भीतर साफ ईंधन मिल सकेगा.
सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इन बस्तियों में रहने वाले सिर्फ आधे परिवारों में महिलाएं तय करती हैं कि एलपीजी रीफिल कब खरीदा जाए और खरीदा भी जाए या नहीं. इससे पता चलता है कि निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी सीमित है. ऐसे परिवारों को और सब्सिडी और जागरुकता की जरूरत है.
कोलकाता के समाजशास्त्री शैवाल कर कहते हैं, "सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत कनेक्शन मुहैया कर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है. लेकिन इस बात की निगरानी का कोई ठोस तंत्र विकसित नहीं हो सका है कि लोग दोबारा रीफिल खरीदते हैं या नहीं. और नहीं तो इसमें क्या दिक्कतें हैं. वितरण और निगरानी तंत्र को दुरुस्त किए बिना इस योजना का खास फायदा नहीं होगा.”
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भारत के 10 प्रदूषित शहरों में आठ उत्तर प्रदेश के
भारत के कई शहरों की हवा काफी प्रदूषित हो चुकी है. एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 से ऊपर पहुंच चुका है. देश के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में सात शहर उत्तर प्रदेश के हैं. ये शहर गैस चैम्बर में तब्दील हो रहे हैं.
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गाजियाबाद
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर की स्थिति सबसे खराब है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा जारी डाटा के अनुसार बुधवार (30 अक्टूबर) को एक्यूआई 478 था. यह देश में सबसे अधिक है.
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पानीपत
हरियाणा का पानीपत शहर प्रदूषण के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है. यहां का एक्यूआई 475 मापा गया. यहां कई सारी फैक्ट्रियां हैं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
बल्लभगढ़
बल्लभगढ़ हरियाणा का एक शहर है और यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से यह करीब 57 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. प्रदूषण के मामले में यह पूरे देश में तीसरे स्थान पर है. यहां का एक्यूआई 467 मापा गया.
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बागपत
उत्तर प्रदेश का बागपत शहर प्रदूषण के मामले में देश में चौथे स्थान पर है. यहां का एक्यूआई 461 मापा गया.
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नोएडा
तेजी से तरक्की करता उत्तर प्रदेश का यह शहर प्रदूषण के मामले में पूरे देश में पांचवें स्थान पर है. यहां का एक्यूआई 450 मापा गया.
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ग्रेटर नोएडा
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में इन दिनों रियल इस्टेट का कारोबार तेजी से फैल रहा है और साथ ही प्रदूषण भी. एक्यूआई 438 के साथ यह देश का छठा प्रदूषित शहर है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Schmidt
हापुड़
उत्तर प्रदेश का हापुड़ शहर भारत का सातवां सबसे प्रदूषित शहर है. यहां का एक्यूआई 435 मापा गया. दिवाली के बाद से यहां हवा की गुणवत्ता और ज्यादा खराब हुई है.
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मेरठ और बुलंदशहर
मेरठ और बुलंदशहर दोनों उत्तर प्रदेश में हैं. ये दोनों शहर भारत के आठवें सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर हैं. यहां का एक्यूआई 430 मापा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
मुजफ्फरनगर
उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर भारत का नौंवा सबसे प्रदूषित शहर है. यहां का एक्यूआई 428 मापा गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/T. Topgyal
दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली का स्थान प्रदूषण के मामले में 10वां है. यहां का एक्यूआई 419 मापा गया. अक्टूबर के दूसरे हफ्ते से ही यहां वायु की गुणवत्ता खराब होनी शुरू हो गई थी.