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टिटो के ड्रोग्बा बनने की दास्तान

१ मार्च २०१४

जन्म के 180 दिन बाद उसने चलना शुरू कर दिया. पांच साल में घर छोड़ना पड़ा. 17 साल होते होते पत्नी के रूप में प्रेमिका खोज ली. गरीबी और मिट्टी में लोटने के बावजूद चुनौतियां अफ्रीकी सुपर स्टार ड्रोग्बा का रास्ता न रोक पाईं.

Champions League FC Schalke 04 - Galatasaray Istanbul
तस्वीर: Reuters

आइवरी कोस्ट के फुटबॉलर डिडियर ड्रोग्बा अपने जीवन के ऐसे कई अनछुए पहलुओं को आत्मकथा के मार्फत सामने ला रहे हैं. किताब जल्द फ्रांस में आने वाली है और ब्रिटेन में भी लॉन्च की जाएगी. वहां ड्रोग्बा के कई फैन्स हैं. वो जानते हैं कि 2012 में एक हेडर मारकर ड्रोग्बा ने कैसे बायर्न म्यूनिख से चैंपियंस लीग की ट्रॉफी छीन चेल्सी को दिला दी. 35 साल के ड्रोग्बा फिलहाल तुर्क क्लब गलातासाराय के लिए खेलते हैं.

जून-जुलाई के आस पास किताब ब्राजील में आएगी फिर तुर्की के लोग भी इसे पढ़ सकेंगे. किताब का नाम "फ्रॉम टिटो टू ड्रोग्बा" है. टिटो उनके बचपन का नाम है. वैसे ये किताब 2012 में पहली बार आइवरी कोस्ट में प्रकाशित हुई.

सपनों के खिलाड़ी ड्रोग्बातस्वीर: picture-alliance/dpa

ड्रोग्बा को आइवरी कोस्ट में एक आदर्श की तरह देखा जाता है. 2006 में जब देश गृह युद्ध की लपटों में जूझ रहा था तब ड्रोग्बा ही उसे वर्ल्ड कप में अपने शानदार प्रदर्शन से साथ लेकर आए.

11 मार्च 1978 को पैदा हुए ड्रोग्बा पांच साल की उम्र में अपने अंकल मिशेल गोबा के साथ फ्रांस आए. गोबा पेशवर फुटबॉलर थे. मां बाप को लगा कि अंकल के साथ फ्रांस में रहकर टिटो जिंदगी में कुछ करना सीख जाएगा. लेकिन इस दौरान ड्रोग्बा काफी परेशान भी होते रहे. अंकल के आए दिन क्लब बदलने से उनका ठिकाना भी बदलता रहता था.

ड्रोग्बा जब 13 साल के हुए तो आखिरकार उनके माता पिता भी फ्रांस आए. परिवार पेरिस के बाहरी और गरीब इलाके में रहने लगा. लेकिन इसी दौरान कुछ फुटबॉल मैनेजर ड्रोग्बा की प्रतिभा को भांप गए. लेवालियोस एससी ने उन्हें मौका दिया. बस उस दिन के बाद अफ्रीका के इस बच्चे ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

किताब को ड्रोग्बा युवाओं के लिए प्रेरणा बता रहे हैं, "इसमें मजे के साथ मेरे बारे में काफी बातें जानी जा सकती है. युवाओं को पता चल सकता है कि अगर वे भी बिल्कुल मेरे जैसे आगे बढ़ें तो वो अपने लक्ष्य पा सकते हैं."

कल्पना को खासी अहमियत देते हुए ड्रोग्बा कहते हैं, "सबसे जरूरी चीज है कि आप अपने ख्वाबों को आगे बढ़ाएं. मेरे लिए फुटबॉल मेरा काम बन गया, मेरी रोजी का जरिया और इसकी वजह से मैं कई मशहूर लोगों से मिला, यूनिसेफ का दूत बना."

सफलता और फुटबॉल के बीच उनकी कहानी का एक मानवीय पहलू भी है. वो अफ्रीका में एक फाउंडेशन भी चला रहे हैं. संस्था के मुताबिक किताब की बिक्री से मिलने वाले पैसे को अफ्रीका में स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च किया जाएगा.

ओएसजे/एएम (एएफपी)

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