1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

टीबी की बीमारी पर पैसों की मार

२६ मार्च २०१२

दुनिया भर में टीबी से निपटने के लिए अगले पांच साल में 1.7 अरब यानी 85 अरब रुपये की जरूरत है. अगर यह पैसा नहीं जुटा तो 34 लाख लोगों का इलाज नहीं हो पाएगा. इसके बाद टीबी पर जो कामयाबी पाई गई है, सब बेकार हो जाएगी.

तस्वीर: AP

शनिवार को टीबी उन्मूलन दिवस के मौके पर इससे संघर्ष कर रही तीन गैरसरकारी संस्थाओं ने ये आंकड़े पेश किए हैं. एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष ने करीब 40 लाख लोगों को टीबी से निपटने में मदद की है. लेकिन इसके पास अब इतना संसाधन नहीं है कि वह काम बढ़ाए. अंतरराष्ट्रीय एचआईवी/एड्स अलायंस, द स्टॉप एड्स कैंपेन और गरीबी उन्मूलन ग्रुप रिजल्ट यूके ने संयुक्त रूप से एक बयान जारी कर यह बात कही है.

रिजल्ट यूके के आरोन ओक्सले ने कहा, "हम बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. टीबी से निपटने में 80 फीसदी पैसा अंतरराष्ट्रीय कोष से आ रहा है और उसे अब पैसों की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. मुश्किल यह है कि पैसा कम होता है तो छूत की बीमारियां कम नहीं होतीं. वे बढ़ती जाती हैं और हमारे काबू से बाहर हो जाती हैं."

कैसे होता है टीबी

टीबी का असर दुनिया भर के कई देशों में अब भी है और हर साल करीब 15 लाख लोग टीबी की वजह से दम तोड़ देते हैं. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस नाम की बैक्टीरिया से होने वाली इस बीमारी में फेफड़ों के उत्तक संक्रमित हो जाते हैं. बाद में यह हवा से वायुमंडल में फैल सकता है और दूसरे लोग भी इस बैक्टीरिया को सांस से अपने शरीर में पहुंचा सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 2010 में 88 लाख लोगों को टीबी था.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

इन तीनों संगठनों ने दुनिया भर के राष्ट्रों से अपील की है कि जब वे जून में जी 20 की बैठक में हिस्सा लें, तो टीबी के बारे में खास तौर पर सोचें और दो अरब डॉलर जुटाने की कोशिश करें. एड्स, टीबी और मलेरिया के खिलाफ संघर्ष में पैसे जुटाने वाली सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय कोष ने पिछले साल नवंबर में ही कह दिया है कि उसके पास अब पैसे नहीं हैं और वह नई मदद नहीं दे सकता है. उसका कहना है कि 2014 तक उसके पास कोई पैसे नहीं हैं.

इस अंतरराष्ट्रीय कोष का गठन 2002 में हुआ और इसने 86 लाख टीबी के मामलों में मदद की है. टीबी के इलाज से जुड़ी संस्थाओं का अनुमान है कि अगले दो साल में 2,44,000 लोगों के टीबी का इलाज नहीं हो पाएगा इनमें से 40 फीसदी मोजांबिक और तंजानिया में रहते हैं. अफ्रीकी देश जाम्बिया में 11,000 टीबी मरीजों और 1,32,000 एचआईवी मरीजों की जान खतरे में है क्योंकि उनका इलाज नहीं हो पा रहा है.

भारत में टीबी

जानकारों का कहना है कि भारत में हर साल टीबी के 99000 मामले बढ़ जाते हैं, जिन पर दवाइयों का असर नहीं होता. लेकिन सरकारी प्रोजेक्ट से सिर्फ गिने चुने लोगों को ही इलाज मिल पाता है.

साधारण टीबी को एंटी बायोटिक से ठीक किया जा सकता है. छह से नौ महीने तक एंटी बायोटिक लेने से टीबी का इलाज हो सकता है. लेकिन अगर इस इलाज को बीच में रोक दिया जाता है, तो बैक्टीरिया दोबारा हमला कर देता है. उसके बाद साधारण दवाइयों से बात नहीं बनती.

रिपोर्टः एपी, रॉयटर्स/ए जमाल

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें