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टीम भावना के लिए राजस्थान का साइकिल दौरा

८ मार्च २०१२

कई देशों में सक्रिय कंपनियां अब अपने मैनेजरों को दूसरे देशों को निकट से जानने के लिए उन देशों के शैक्षिक दौरे पर भेज रही हैं. पिछले दिनों एक जर्मन कंपनी के मैनेजर साइकिल दौरे पर राजस्थान में थे.

तस्वीर: DW

आम तौर पर भारत आने वाले विदेशी पर्यटक होली के रंगों और अबीर गुलाल से दूर रहना पसंद करते हैं पर जयपुर पहुंचे जर्मन कंपनी के मैनेजरों को इससे परहेज नहीं. वे होली का मजा ही नहीं ले रहे, रंगों से नहा लेना चाहते हैं. भारतीय संस्कृति को नजदीक से जानने पहुंचे विदेशी मेहमानों को न तो अपने शरीर की परवाह थी और न ही अपने कपड़ों की. होली की हुड़दंग में शामिल होने और रंग लगवाने की इतनी आतुरता कि शहर की तंग गलियों में मस्ताये 'होलियारों' के बीच जा कर भी धुलंडी मनाने से कोई गुरेज नहीं.

जर्मन कंपनी मेंज एंड कोएनेके ने अपने मैनेजरों को राजस्थान के साइकिल दौरे पर इसलिए भेजा कि वे भारत को, उसके लोगों को और उनके रीति रिवाजों को बेहतर ढंग से जान सकें. होली के समय का चुनाव इसलिए किया गया है ताकि वे भारत के तीज त्योहारों और रिवाजों को खुद देख सकें. वैसे तो भारत आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान आता है पर इसके लिए वो हवाई जहाज, रेल, बस या कार का प्रयोग करता है. यूरोप में तो साइकिल पर्यटन मशहूर है, लेकिन पहली बार विदेशी पर्यटकों ने राजस्थान घूमने के लिए साइकिल को चुना.

तस्वीर: DW

जर्मन मैनेजरों का यह दौरा टीम भावना के प्रशिक्षण और विषम परिस्थितियों में काम करने की क्षमता के विकास के लिए आयोजित किया गया. इस दौरे पर नौ प्रबंधकों का चयन कर राजस्थान भेजा गया है जिनमें पांच अपनी पत्नियों के साथ साइकिलों की सवारी कर रहे हैं. उदयपुर से रणकपुर, कुम्भलगढ़, देवगढ़, पुष्कर, जयपुर और आगरा होते हुए वे दिल्ली तक साइकिल से जाएंगे.

होली के रंग- जयपुर के संग

होली पर पूरा दल जयपुर का विश्वप्रसिद्ध हाथी उत्सव देखने पहुंचा. जर्मन शहर हनोवर के पास रहने वाली डानिएला फौस्टिनो हाथियों के सिंगार से तो मुग्ध थीं पर उन्हें महावत द्वारा हाथी को अंकुश चुभाना नहीं सुहा रहा था. समारोह में चंग ढाप के साथ गाये जा रहे होली के गीत भले ही उनकी समझ से परे थे पर उनके थिरकते कदम नाचने के लिए उनकी आतुरता को दिखा रहे थे.

दो बार भारत आ चुकी डानिएला कहती हैं, "किसी उत्सव का इतना मजेदार अनुभव इससे पहले कभी नहीं हुआ." समारोह में अबीर गुलाल की आतिशबाज़ी भी उन्हें बहुत पसंद आई और होलिया में उड़े रे गुलाल गीत तो उनकी जर्मन जबान पर ऐसा चढ़ा कि उतरने को तैयार ही नहीं. इलजे और विम अपने विवाहित जीवन में साइकिल से लेकर हवाई जहाज तक की यात्रा कर चुके हैं पर हाथी पर बैठने का अनुभव उन्हें जीवन भर रोमांच देता रहेगा.

साइकिल ही क्यों?

पेटर कोर्नेलिस साइकिल दल के मुखिया हैं. 60 साल की उम्र में भी सबसे आगे रहते हैं. उनका कहना है, "साइकिल एक लाजवाब सवारी है जिसे चलाना बहुत ही आसान है और यह शरीर के साथ- साथ दिमाग को भी चुस्त रखती है." वह बताते हैं कि दल के सदस्यों की उम्र 30 से 70 के बीच है पर उम्र का साइकिल सवारी पर कोई प्रभाव नहीं दिखता. टीम के सदस्य रोजाना 80 से 100 किलोमीटर का सफर करते हैं. भारत आने से पहले सभी सदस्यों को लगभग चार महीने का प्रशिक्षण दिया गया.

तस्वीर: DW

टीम के साथ कोच, ट्रेनर और मेकैनिक के रूप में विख्यात अंतरराष्ट्रीय साइकिल चालक फतेह सिंह गौड़ हैं. जयपुर के गौड़ पांच बार राष्ट्रीय साइक्लिंग चैंपियन रह चुके हैं और जर्मनी सहित विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वह बताते हैं कि यह लोग थैलों में अपनी साइकिल के टुकड़े ले कर आये और रात भर जाग कर उन्होंने टुकड़ों को जोड़ कर साइकिल तैयार की.

फतेह सिंह दल के आगे उन्हें रास्ता बताते हुए चलते हैं और एक अतिरिक्त साइकिल के अलावा मरम्मत का सामान भी साथ रखते हैं ताकि उबड़ खाबड़ रास्तों पर पंक्चर तुरंत दुरुस्त किए जा सकें. साइक्लिंग का शौक तो उन्होंने बहुत देखा पर ऐसी सनक पहली बार देखी है.

हर मैनेजर भारत में अनेकता में एकता का जिक्र करना नहीं भूलता. नीदरलैंड बोर्डर के पास नौकरी करने वाले आन्द्रे विनिअर्सल बताते हैं, "भारत की इस यात्रा ने एक नए मनोबल का संचार किया है." वह कहते हैं कि भारत के ग्रामीण क्षेत्र उसकी सबसे बड़ी ताकत है और हर जगह मिलने वाला प्यार और दुलार, सबसे बड़े उपहार. जयपुर के बाद जर्मन मैनेजर निकल पड़े हैं एक नई मंजिल की ओर, भारत को समझने ओर पहचानने की मंजिल.

रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, जयपुर

संपादन: महेश झा

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