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टेलीफोन के 150 साल

२३ अक्टूबर २०११

डेढ़ सौ साल पहले जब जर्मन वैज्ञानिक योहान फिलिप राइस ने तारों से जुडे़ लकड़ी के एक गुटके में मुंह लगाकर बोला, "घोड़े खीरे का सलाद नहीं खाते", तो उन्हें क्या पता था कि वह दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव करने जा रहे हैं.

तस्वीर: Fotolia/Andrey Zyk

दुखद ये है कि राइस को बहुत कम लोग जानते हैं. राइस ने 150 साल पहले 26 अक्तूबर 1861 को फिजिकल सोसाइटी ऑफ फ्रैंकफर्ट में अपनी खोज पहली बार पेश की. उन्होंने अपने लेक्चर को नाम दिया, "गैल्वेनिक इलेक्ट्रिसिटी के जरिये कितनी भी दूरी पर आवाजों का पुनरोत्पादन."

तस्वीर: picture-alliance/imagestate/HIP

जिंदा रहते तो

तब राइस सिर्फ 27 साल के थे. उन्होंने टेलीफोन पर पहले संचार के लिए जानबूझकर घोड़े और खीरे की बात की ताकि सुनने वाला हर शब्द ध्यान से सुने बिना समझ न पाए कि क्या कहा जा रहा है. अपनी फिजिक्स क्लास के लिए लकड़ी का एक कृत्रिम कान बना लिया था. इसमें उन्होंने इन्सानी कान जैसी तकनीक का ही इस्तेमाल किया था.

लेकिन राइस को ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिली. वह अपनी खोज से बहुत बड़ा कुछ बना भी नहीं पाए. उनका टेलीफोन एक ही तरफ से आवाज भेज सकता था. दूसरी तरफ बैठा आदमी उसी वक्त बात का जवाब नहीं दे पाता था. लेकिन उन्होंने शुरुआत कर दी थी. और वह इस खोज को आगे भी बढ़ा सकते थे, अगर जिंदा रहते. जनवरी 1874 में सिर्फ 40 साल की उम्र में उनकी टीबी ने जान ले ली. इसलिए पहले टेलीफोन के अविष्कार का श्रेय एलेग्जेंडर ग्राहम बेल को दिया जाता है. कान और मुंह पर लगाने वाले हिस्सों के साथ यह टेलीफोन 1870 के दशक में बाजार में आया और दूरसंचार की दुनिया ही बदल गई.

तस्वीर: AP

बेल को मिल गया मौका

बेल को 1876 में पहला अमेरिकी पेटेंट मिला और जल्दी ही उनकी बनाई वह अद्भुत चीज दुनियाभर में फैल गई. शुरुआत में इसका इस्तेमाल महिलाओं ने ही किया क्योंकि ज्यादा तीखी आवाज को दूसरी ओर सुन पाना आसान था. 1877-78 में थॉमस अल्वा एडिसन ने कार्बन माइक्रफोन बनाया जो टेलीफोन में इस्तेमाल किया जा सकता था. अगले एक दशक तक यही कार्बन माइक्रोफोन टेलीफोन का आधार बना रहा. एडिसन ने यह बात कही कि टेलीफोन का पहले अविष्कारक योहान फिलिप राइस थे जबकि ग्राहम बेल उसे सार्वजनिक तौर पर पेश करने वाले पहले व्यक्ति बने. व्यवहारिक और व्यापारिक स्तर पर इस्तेमाल किया जा सकने वाले टेलीफोन के अविष्कार का श्रेय एडिसन ने खुद को दिया.

शुरुआत में टेलीफोन को लेकर लोग संदेहभरा नजरिया रखते थे. जब 1881 में बर्लिन में पहली टेलीफोन डायरेक्टरी छपी तो उसे मूर्खों की किताब कहा गया. तब टेलीफोन को अमीरों का नखरा माना जाता था. लेकिन ये ताने उसे घर घर तक पहुंचने से रोक नहीं सके.

तस्वीर: fotolia/zentilia

टेलीफोन ऑपरेटर तो अब बीती बिसरी चीज हो चुके हैं. और बीती सदी के आखिर तक भी टेलीफोन बहुत महंगी चीज रहा. डिजिटल तकनीक और खुले बाजारों ने टेलीफोन और फिर मोबाइल फोन के जरिए इस महान अविष्कार की किस्मत बदल दी है. और आज यह सबसे बड़ी जरूरतों में शामिल हो चुका है. मार्केट रिसर्च कंपनी गार्टनर के मुताबिक पिछले साल 1.6 अरब मोबाइल फोन बेचे गए. इनमें से 20 फीसदी स्मार्ट फोन थे.

रिपोर्टः डीपीए/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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