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टेस्टोस्टेरोन बनाता है महिलाओं को अहंकारी

२ फ़रवरी २०१२

पुरुष सेक्स हॉरमोन टेस्टोस्टेरोन लोगों को आक्रामक बनाता है. यह नतीजा है एक वैज्ञानिक परीक्षण का. और अगर महिलाएं इसे ले लें तो दूसरे के साथ सहयोग करना कम कर देती हैं और अपनी राय पर अड़ने की प्रवृति दिखाती हैं.

तस्वीर: Scott Griessel/Fotolia

लंदन यूनिवर्सिटी में निकोलस राइट के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे परीक्षण किए हैं जिनमें पता चला है कि टेस्टोस्टेरोन का डोज दिए जाने के बाद महिलाएं दूसरे के साथ सहयोग करने से कतराने लगती हैं , भले ही ऐसा करना उनके अपने हित में हो. लोगों के साथ काम करने और अकेले काम करने के बीच सही संतुलन और इस बात को जानना कि कब क्या अच्छा है, जीवन के महत्वपूर्ण हुनरों में शामिल है.

तस्वीर: dpa/PA

कुछ मामलों में दूसरों के साथ हाथ मिलाना लक्ष्य को हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका होता है. यही वजह है कि शेर और लकड़बग्घे झुंड में शिकार करते हैं तथा इंसान खेल के मैदान पर, प्रयोगशाला में और लड़ाई के मैदान में एक दूसरे का साथ देते हैं. लेकिन कभी कभी दलीय सोच से बाहर निकलना और अकेले कुछ करना आगे बढ़ने के लिए जरूरी होता है. आम तौर पर इन दो ध्रुवों के बीच चुन सकने की लोगों की क्षमता शिक्षा और अनुभव से आती है, लेकिन इनमें से कुछ जज्बात जन्मजात भी होते हैं.

हारमोन का खेल

ग्रुप में फैसला लेने के जैविक पहलुओं पर पहले हुए शोधों से पता चला था कि स्वाभाविक रूप से पैदा होने वाला हॉरमोन ऑक्सीटोसिन दूसरों के साथ मिलकर काम करने की प्रवृति को बढ़ावा देता है. साथ ही यह भी जानी मानी बात है कि टेस्टोस्टेरोन जोखिम लेने और असामाजिक बर्ताव के अलावा दलीय खेल या शेयर बाजारों में दिखने वाली आक्रामकता को बढ़ावा देता है. लेकिन यह बात पता नहीं थी कि अल्फा पुरुष हॉरमोन जो महिलाओं में बहुत कम मात्रा में होता है, सहयोग छोड़ने और अपनी करने को प्रेरित करता है.

इसका पता करने के लिए निकोलस राइट और उनके साथियों ने 17 महिला जोड़ों के साथ एक सप्ताह के अंतराल पर दो दिन कई टेस्ट किए. ये महिलाएं एक दूसरे से परिचित नहीं थीं. पहले दिन हर जोड़े के दोनों वोलंटियर को टेस्टोस्टेरोन की डोज दी गई. दूसरे दिन उन्हें वैसी ही दिखने वाली नकली दवा दी गई. टेस्ट के लिए महिला वोलंटियरों को इसलिए चुना गया कि पुरुषों को हॉरमोन का अतिरिक्त डोज देने से शरीर उसका उत्पादन कम कर देता है.

तस्वीर: dpa

परीक्षण के दौरान हर जोड़े की दोनों महिलाओं को एक ही कमरे में लेकिन अलग अलग कम्प्यूटरों के सामने बिठा दिया गया. उन्हें एक जैसी दो तस्वीरें दिखाई गईं और उनमें से एक को चुनने को कहा गया जिसमें मुश्किल से दिखने वाला हाइ कंट्रास्ट पैटर्न था. अगर दोनों का चुनाव एक जैसा था तो टेस्ट वहीं रोक दिया गया. लेकिन चुनाव अलग अलग होने पर उन्हें एक दूसरे से सलाह करने और मिल कर फैसला लेने को कहा गया.

अंत में शोधकर्ताओं ने पाया कि टेस्टोस्टेरोन हॉरमोन लेने वाले जोड़ों की तुलना में नकली दवा लेने वाले जोड़े सही जवाब पाने में ज्यादा सफल रहे. राइट ने एक बयान में कहा, "टेस्टोस्टेरोन की अधिक मात्रा के कारण वे लोग अहंकारी बर्ताव कर रहे थे और सहयोगी के बदले अपने चुनाव को प्राथमिकता दे रहे थे, भले ही वह गलत क्यों न हो." उनका कहना है कि बहुत ज्यादा टेस्टोस्टेरोन दूसरे लोगों के विचारों के प्रति हमें अंधा बना देता है. निकोलस राइट की राय है कि शरीर में हॉरमोन का स्तर दूसरों के साथ काम करने के हमारे प्रयासों को तहस नहस कर दे सकता है.

रिपोर्ट: एएफपी/महेश झा

संपादन: आभा एम

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