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टोगो की विदाई और माली का करिश्मा

अनवर जे अशरफ़ (संपादन: एस जोशी)१० जनवरी २०१०

यूं तो फ़ुटबॉल बड़ी टीमों और बड़े सितारों का खेल समझा जाता है लेकिन कई बार कम चमक वाले सितारे भी ऐसी छटा बिखेर जाते हैं कि बड़े तारे मद्धिम पड़ जाते हैं. अफ्रीकी नेशन्स कप का पहला मैच इसकी मिसाल रही.

अंगोला के स्टार फ्लेवियोतस्वीर: AP

छोटे से अफ्रीकी देश माली ने जो करिश्मा कर दिखाया, वह शायद अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल में पहले कभी न देखा गया हो. अंगोला से चार गोल से पिछड़ने के बाद माली ने मुक़ाबला बराबर किया और वह भी आख़िरी 11 मिनट में. टोगो की राष्ट्रीय फ़ुटबॉल टीम पर हमले के बाद अफ्रीकी नेशन कप दुनिया की नज़रों में आया है लेकिन इसके मैचों पर शायद ही किसी की नज़र हो.

मेज़बान अंगोला और माली की टक्कर में कोई जोड़ था ही नहीं. अंगोला के राष्ट्रपति खोसे एडवार्डो डस सांतोस की मौजूदगी में टूर्नामेंट का उद्घाटन और फिर दे दना दन गोल. हाफ़ टाइम तक लाल जर्सी वाली अंगोला ने दो गोल कर दिए और पूरा स्टेडियम तालियों से गूंज उठा.

जुटी बेशुमार भीड़तस्वीर: AP

पर मैच ने नाटकीय मोड़ दूसरी पारी में लिया. यह एक करिश्माई कहानी की शुरुआत रही. सबसे पहले माली की रक्षा पंक्ति ने अपने डी के अंदर दो बार अंगोला के खिलाड़ियों के साथ फ़ाउल खेला और दोनों बार अंगोला को माली के ख़िलाफ़ पेनाल्टी किक मिली. अंगोला के खिलाड़ियों ने दोनों बार गेंद को जाल में उलझा दिया और गोल का फ़ासला 4-0 का हो गया.

खेल के 79वें मिनट तक सब कुछ ऐसा ही चल रहा था. अंगोला की टीम माली पर भारी पड़ रही थी और वक़्त बेवक़्त हमले जारी थे. पर ड्रामे की स्क्रिप्ट शायद यहीं लिखी गई.

माली के तेज़ तर्रार आक्रामक खिलाड़ी सेदू कीता को गेंद मिली तो उन्होंने बमुश्किल इसे गोलपोस्ट में डाल दिया. आख़िरी लम्हों में हुए इस गोल को फ़ुटबॉल पंडित सांत्वना गोल क़रार देने लगे और देखते देखते आख़िरी सीटी का वक्त भी आ गया. खेल में सिर्फ़ दो मिनट बचे थे कि 88वें मिनट में माली के फ़्रेडरिक कनाउटे ने एक बार फिर गेंद जाल में डाल दी. दो मिनट बाक़ी और माली दो गोल से पीछे.

फ़ुटबॉल के फ़ैनतस्वीर: AP

रेफ़री ने घड़ी देखी. देखा कि वक्त हो गया है और सिर्फ़ इंज्यूरी टाइम के लिए कुछ मिनट देने हैं. रेफ़री ने सीटी बजा कर इसका एलान कर दिया और मेज़बान अंगोला के खिलाड़ियों ने राहत की सांस ली. सोचा, चलो, अब सिर्फ़ इंज्यूरी टाइम काटना है.

लेकिन माली के फ़ुटबॉलरों ने तो कुछ और ही ठान रखा था. एक्स्ट्रा टाइम में दना दन दो गोल और दाग़ दिए. गेंद मानो माली के फ़ुटबॉलरों के बूट में चिपक गई हो. गोलपोस्ट तक उन्हें कोई रोक ही नहीं पाया. पल भर पहले तक जिस स्टेडियम में तालियां और शोर गूंज रहा था, वहां सन्नाटा पसर गया. अंगोला यह मैच नहीं जीत पाया.

माली के लिए चमत्कार हो गया. वह देश इस मैच को कभी नहीं भूलेगा. भले ही अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल के लिए यह कोई मायने न रखे. फ़ुटबॉल की दुनिया में ऐसे मैच कभी कभी ही होते हैं. इस बार वर्ल्ड कप भी अफ्रीकी देश दक्षिण अफ्रीका में हो रहा है और अंगोला या माली की टीमें वर्ल्ड कप में नहीं खेल रही हैं.

दुनिया इस टूर्नामेंट को टोगो की टीम पर हुए हमले के लिए याद रखेगी और यह याद रखेगी कि इसके बाद टोगो की टीम मुक़ाबले में हिस्सा लिए बग़ैर लौट गई लेकन अंगोला और माली का ये मैच भी कहीं न कहीं ज़रूर दर्ज किया जाएगा. कम से कम फ़ुटबॉल के दीवानों की स्मृति में तो ये अमिट रहेगा.

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