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ट्युबिन्गनः विश्वविद्यालयों का गांव

शिव प्रसाद जोशी२७ अगस्त २००९

84 हज़ार की आबादी वाले ट्युबिन्गन में हर चौथा आदमी छात्र है. इस तरह ये शहर जर्मनी में छात्रों के सबसे सघन घनत्व वाला शहर है. पढ़ने लिखने वालों का मक्का है ये शहर. यहां का माहौल ही कुछ ऐसा है.

ट्युबिन्गनतस्वीर: picture alliance/dpa

हाइडलबर्ग और फ्राईबुर्ग के साथ ट्युबिन्गन दक्षिणी जर्मनी की तीन सबसे प्रसिद्ध यूनिवर्सिटियों में से एक है. 1477 में काउंट एबरहार्ड द बियेर्डड ने इसकी स्थापना की थी. “ट्युबिन्गन के पास यूनिवर्सिटी नहीं है, वो एक यूनिवर्सिटी है.” ये कहावत इस शहर का अतीत ही नहीं उसका आज भी उद्घाटित करती है. यूनिवर्सिटी का एक मोटो था- अटेम्पटो- मेरा है जोखिम. ये मोटो संस्थान की कामयाबी को शक की निगार से देखने वालों के लिए एक करारा जवाब था. आज भी ये मोटो जारी है. और संस्थान की असंदिग्ध कामयाबी जारी है.

तस्वीरों का शहर

अंदर पढ़ाई, बाहर सौर ऊर्जातस्वीर: www.tuebingen-macht-blau.de

ट्युबिन्गन की ज्यादातर लोकप्रियता की वजह ये हैं कि शहर का ऐतिहासिक सेंटर पिछले 500 सालों में करीब करीब जस का तस है. उसकी संकरी और घुमावदार गलियां और उसके दर्शनीय लकड़ी वाले मकान देखने पर लगता है कि ट्युबिन्गन जर्मनी के रोमानी अतीत का पर्याय है. ट्युबिन्गन में सबसे ज्यादा तस्वीरी जगह है नेकर नदी का तट और उसकी पृष्ठभूमि में सटे हुए मकान और प्रसिद्ध ह्योलडेरलिनटुर्म. महान जर्मन कवि फ्रीडरिश ह्योल्डेरलिन का एक टावर है. वो इस मध्ययुगीन टावर में 1807 से 36 साल बाद अपनी मृत्यु तक यहां रहते आए थे.

स्कॉलरों का मक्का
श्लॉस होहेनट्युबिन्गेन रिनेसां काल का एक कैसल है और इसी में यूनिवर्सिटी बसायी गयी है. कैसल के ठीक नीचे इंवाजेलिश्टे श्टिफ्ट है. इस ऐतिहासिक प्रोटेस्टेट धर्म-केंद्र की स्थापना 1536 में की गयी थी. यूनिवर्सिटी की धर्मशास्त्री फैकल्टी का ये भी एक हिस्सा है. इस सेमिनरी से जर्मनी के कई महानतम कवियों और विचारकों का भी जुड़ाव रहा है. खगोलविज्ञानी योहानस कैपलर ने यहां अध्ययन किया था. कविवर फ्रीडरिश ह्योल्डेरलिन, विल्हेल्म हाउफ, एदुआग म्योरिके और दार्शनिक हेगेल और शेलिंग ने भी यहां अध्ययन किया था.

15वीं शताब्दी में तैयार हुई मोनेस्ट्रीतस्वीर: Staatsanzeiger-Verlag

स्थिरता भी गति है

ट्युबिन्गन का ऐतिहासिक केंद्र इतना अलस और सुप्त सा है कि किसी को ये हैरानी हो सकती है कि यहां कोई रहता भी है या नहीं. ऐसा लगता है कि इसके एक म्युज़ियम के पात्रों की तरह ही यहां के लोग भी है. ख़ामोश स्थिर और गतिहीन. म्युज़ियम में यूनिवर्सिटी के पुराने दौर की झलक देखी जा सकती है. समय लगता है ट्युबिन्गेन में आकर ठहर जाता है. डेढ़ सौ साल पहले भी ट्युबिन्गेन के प्रोफेसर अपने शहर को मज़ाक में युनिवर्सिटी गांव कहते थे. और कई अर्थों में ये मज़ाक आज के दौर में वास्तविकता से कमतर नहीं लगता.

और ये रहा भविष्य

शहर के दक्षिणी किनारे पर ट्युबिन्गेन की दर्शनीय पोस्टकार्ड सुंदरता से इतर एक प्रतीक उभर रहा है. जो जगह कभी सेना के बैरक हुआ करती थी वहां एक पूरी तरह से नया शहर बनाया जा रहा है.कांच और इस्पात के अत्याधुनिक और भविष्यगामी अपार्टमेंट, स्टोर, कार्यालय बना दिए गए हैं. ऐसा लगता है कि एक गांव के पास उसका एक शहर भी आ खड़ा हुआ है. कि गांव गांव न रहे और शहर को गांव की कमी न खले. ट्युबिन्गन जैसे शहर का ही ये अनोखापन और विरल अहसास है कि वो गांव भी है शहर भी और एक यूनिवर्सिटी भी. सपनों से बना एक स्थिर अनश्वर दृश्य तो वो है ही.

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