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ट्यूनीशियाई चुनावों में इस्लामपंथी आगे

२४ अक्टूबर २०११

ट्यूनीशिया में उदारवादी इस्लामपंथी पार्टी की बढ़त की खबरों के बीच संसदीय चुनाव के अंतिम नतीजे का इंतजार है. इस साल कामयाब विद्रोह के बाद राष्ट्रपति बेन अली सत्ता छोड़ सऊदी अरब भाग गए. विश्व समुदाय ने चुनावों की तारीफ की.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

ताजा चुनाव के नतीजे ट्यूनीशिया में एक बड़े बदलाव का संकेत हो सकते हैं, जो लंबे समय से अपनी धर्मनिरपेक्षता के लिए जाना जाता है. बहुत से सर्वे बताते हैं कि इस्लामपंथी इनाहदा पार्टी के हिस्से में सबसे ज्यादा वोट आएंगे. इसके चलते धर्मनिरपेक्ष धड़े में चिंता है. ट्यूनीशिया जैसे नतीजे अरब दुनिया के उन देशों में भी देखे जा सकते हैं जहां सत्ता परिवर्तन के बाद चुनाव होने हैं या हो रहे हैं.

ट्यूनीशिया रेडियो पर दिए जा रहे उत्तरी शहर बेजा के चुनाव नतीजों के मुताबिक इनाहदा पार्टी को बढ़त मिली है जबकि मध्य-वामपंथी कांग्रेस फॉर द रिपब्लिक पार्टी (सीआरपी) भी अच्छा प्रदर्शन कर रही है. चुनावों की गिनती के वक्त राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि भी मौजूद हैं. इनाहदा के एक अधिकारी ने बताया, "इनाहादा के लिए नतीजे बहुत अच्छे हैं. हम अभी ब्योरा नहीं देना चाहते लेकिन यह साफ है कि इनाहदा को कामयाबी मिली है."

सबसे आगे इनाहदा

इनाहदा ने कहा है कि देश में रविवार को हुए चुनाव से पहले विदेशों में रह रहे ट्यूनीशियाई लोगों ने जो वोट दिए हैं उनमें से भी ज्यादातर उसी के खाते में आए हैं. इनाहदा की चुनावी मुहिम के प्रबंधक अब्देलहामिद ज्लाजी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा, "इनाहदा विदेशी चुनाव केंद्रों पर सबसे आगे है. हमें 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हैं."

चुनावों से अस्तित्व में आने वाली 217 सदस्यीय असेंबली देश के संविधान को फिर से लिखेगी और एक नई अंतरिम सरकार बनाएगी. उसका काम संसदीय और राष्ट्रपति चुनावों की तारीख तय करना भी होगा. रविवार को हुए चुनाव में 90 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ जो इस बात का संकेत है कि लोग वर्षों के दमन के बाद मिले अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करना चाहते हैं.

सीआरपी के समीर बिन ओमर को उम्मीद है कि उनकी पार्टी दूसरे नंबर पर आएगी जो प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के लिए एक धक्का होगा. पीडीपी पहले ही इस बात का एलान कर चुकी है कि वह इनाहदा के साथ मिल कर कोई गठबंधन सरकार नहीं बनाएगी.

अपदस्थ राष्ट्रपति जिने अल-अबीदिन बेन अली की पूर्व सत्ताधारी पार्टी आरसीडी को भंग कर दिया गया और किसी भी राजनीतिक गुट ने पिछली सत्ता के समर्थकों पर ध्यान नहीं दिया है. बिन ओमर कहते हैं, "पूरे देश से मिले आंकड़ों के मुताबिक हम इनाहदा के बाद दूसरे नंबर हैं."

सरकारी रेडियो के मुताबिक दो प्रांतीय शहरों स्फाक्स और केफ में जारी गिनती में इनाहदा बढ़त बनाए हुए है. स्फाक्स में सीपीआर दूसरे नंबर है जबकि एक अन्य सोशलिस्ट समूह एत्ताकातोल केफ में दूसरे नंबर पर है.

चुनावों की तारीफ

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने ट्यूनीशिया के चुनावों की सराहना की है और उम्मीद जताई है कि पूरी प्रक्रिया सुगमता से पूरी हो जाएगी. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि जनवरी में ट्यूनीशिया में हुई क्रांति ने देश के इतिहास की दिशा बदल दी है. रविवार को व्हाइट हाउस की तरफ से जारी एक बयान में ओबामा ने कहा, "ट्यूनीशिया में बहुत से लोगों ने सड़कों पर उतर कर अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किए. आज वे कतारों में खड़े हैं और अपना भविष्य निर्धारित करने के लिए वोट डाल रहे हैं."

सरकारी दमन और निराशा से परेशान सब्जी बेचने वाले मोहम्मद बोअजीजी की आत्महत्या से ट्यूनीशिया में बगावत की लहर शुरू हुई जिसने बेन अली की 23 साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेंका. इसके बाद मिस्र, लीबिया, यमन, सीरिया और बहरीन में भी दशकों से कायम सत्ताओं के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए जिससे मध्यपूर्व और उत्तर अफ्रीका की राजनीतिक परिस्थितियों में आमूल चूल बदलाव आया है.

मिस्र में अगले महीने चुनाव होने जा रहे हैं और वहां सैद्धांतिक रूप से इनाहदा की सहयोगी मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी के जीतने अनुमान लगाए जा रहे हैं. वैसे पश्चिमी राजनयिकों का मानना है कि ट्यूनिशिया में इनाहदा को बहुमत नहीं मिलेगा और उसे धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के साथ गठबंधन करना होगा. इस तरह उसका असर कम होगा.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एएफपी/ए कुमार

संपादनः महेश झा

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