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ट्यूनीशिया में क्रांति का एक साल

१४ जनवरी २०१२

ट्यूनीशिया में तानाशाह बेन अली के सत्ता से हटने के एक साल बाद भी ट्यूनीशिया के लोग सामाजिक और आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

हालांकि एक साल बाद ट्यूनीशिया के नागरिकों का जीवन पहले से आसान हो गया है. पिछले साल अक्तूबर में उन्होंने 23 साल बाद आम चुनावों में हिस्सा लिया और अब संविधान को दोबारा लिखने पर ध्यान दिया जा रहा है. देश में स्थिरता धीरे धीरे वापस लौट रही है लेकिन लोगों में अब भी स्थिति को लेकर असंतुष्टि बनी हुई है. 48 साल की सूहा का कहना है कि बेन अली तो चले गए हैं. इतिहास के इस पन्ने को पलटना होगा और भविष्य की ओर देखना होगा.

तस्वीर: AP

पिछले साल क्रांति के बाद देश में सुधार लाने में वकील यधबेन अचूर का बडा हाथ रहा है. बेन अली के बारे में उनका कहना है, "बेन अली एक बुरा सपना था, राजनीतिक तौर पर एक अरुचि का विषय." अचूर का कहना है कि बेन अली अब खतरा नहीं हैं लेकिन पूरी शासन प्रणाली को बदलने में अभी वक्त लगेगा. बेन अली को जिन कारणों के लिए सत्ता से हटाया गया था, वह परेशानियां अब भी देश में हैं और इनमें से बेरोजगारी एक बहुत बड़ी परेशानी है. देश में इस वक्त 19 प्रतिशत लोगों के पास नौकरी नहीं है और उन जगहों में जहां पहले भी विकास की गति धीमी थी, वहां बेरोजगारी 50 प्रतिशत तक पहुंच गई है. नए नेता भ्रष्टाचार को भी काबू में करने की कोशिश कर रहे हैं. भ्रष्टाचार पर शोध कर रहे संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक 183 देशों में से ट्यूनीशिया 73वीं जगह पर है. पहले यह 59वें पर था. देश के नए राष्ट्रपति मुंसिफ मार्जूकी और प्रधानमंत्री हमादी जेलाबी देश के अलग अलग भागों से विरोध का सामना कर रहे हैं.

तस्वीर: DW

इन्हीं कारणों से अब देश के कई युवा क्रांति से खुश नहीं हैं. 21 साल के बशीर हबाची को पिछले साल पुलिस के साथ झड़पों में गोलियों का भी सामना करना पड़ा था. लेकिन आज हबाची के लिए प्रगति ना के बराबर है. कहता है, "मुझे आजाद और लोकतांत्रिक ट्यूनीशिया पर विश्वास था लेकिन मैंने अपनी जान बेकार में दांव पर रखी." हबाची का मानना है कि उसे भी बाकी लोगों की तरह टीवी पर विरोध देखना चाहिए था. इस बीच नई इस्लामी सरकार अब तक क्रांति में पीड़ित लोगों की सूची नहीं बना पाई है. 14 जनवरी को विरोध को एक साल हो जाएगा, लेकिन देश में किसी भी तरह के समारोह की योजना नहीं बनाई गई है.

दिसंबर 2010 में शुरू हुए विरोध को तब के नेता बेन अली ने सुरक्षा बलों का इस्तेमाल कर के दबाने की कोशिश की थी. 300 लोगों की जाने गईं. क्रांति शुरू होने के चार हफ्तों बाद बेन अली अपनी पत्नी के साथ 145 जनवरी को सऊदी अरब निकल गए. इस घटना के बाद मिस्र में तब के नेता होस्नी मुबारक के खिलाफ आवाजे उठने लगी और विरोध ने अरब क्रांति का स्वरूप ले लिया.

रिपोर्टः एएफपी/एमजी

संपादनः एन रंजन

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