अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर सबसे ज्यादा नजरें मुस्लिम देशों की टिकी थीं. इसकी एक बड़ी वजह चुनाव प्रचार के दौरान मुसलमानों के खिलाफ ट्रंप की टिप्पणियां हैं.
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सबसे घनी आबादी वाले अरब देश मिस्र की राजधानी काहिरा में नाई की दुकान पर बैठे लोगों से जब पूछा गया कि वो ट्रंप की जीत पर क्या कहेंगे, तो वो एक दूसरे का मुंह ताकते नजर आए. दो लोगों ने कहा कि उन्हें तो पता ही नहीं है कि अमेरिका में कौन कौन चुनावी मैदान में है. वहीं हेयर ड्रेसर मोना ने अपने देश में चल रहे आर्थिक संकट की तरफ इशारा करते हुए कहा, "जो यहां हो रहा है, हमारी नजर उस पर रहती है, हमारे लिए तो यही काफी है.”
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि उसे अमेरिकी चुनाव के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन इतना पता है कि "ट्रंप मुसलमानों के लिए ठीक नहीं हैं". इसी तरह शहर के चिड़ियाघर के पास मिले तीन यूनिवर्सिटी छात्र शर्माते हुए कहते हैं कि उन्हें भी अमेरिकी चुनाव के बारे में ज्यादा नहीं पता. काहिरा ही वो शहर है जहां आठ साल पहले चुनाव जीतने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबमा ने अहम भाषण देते हुए मुसलमानों के प्रति अमेरिकी रवैये में बदलाव पर जोर दिया.
ट्रंप की जीत पर क्या बोली दुनिया, देखिए
ट्रंप पर क्या बोली दुनिया
अमेरिका में रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप की जीत पर दुनिया एक अजीब से सदमे में थी. खुशी की लहर तो कहीं नहीं दिख रही है. प्रतिक्रियाएं या तो बुरी हैं या संतुलित.
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इंडोनेशिया
इंडोनेशिया के सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे थे कि अमेरिका ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति कैसे चुन सकता है. इस्लामिक देश इंडोनेशिया में फेसबुक और ट्विटर समेत तमाम सोशल मीडिया वेबसाइटों पर लोग कयास लगा रहे थे कि चुनाव प्रचार के दौरान जो कुछ ट्रंप ने बोला है, उस पर वह अमल करेंगे या नहीं. कुछ लोगों ने तो यह तक डर जताया कि ट्रंप के प्रशासन में वे अपने रिश्तेदारों से मिलने अमेरिका जा पाएंगे या नहीं.
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क्यूबा
अमेरिका के साथ संबंध सामान्य करने में जुटे क्यूबा को बराक ओबामा प्रशासन से जिस तरह का समर्थन मिल रहा था, उस पर अब संदेह के बादल नजर आने लगे हैं. ट्रंप ने वादा किया है कि अगर क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने और ज्यादा राजनीतिक आजादी नहीं दी तो वह संबंधों को बेहतर बनाने वाले फैसले पलट देंगे. कुछ लोगों ने कहा कि उनकी जिंदगी में जो थोड़े बहुत सुधार होने लगे थे, अब क्या पता वे फिर से छिन जाएं.
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चीन
चीन के ब्लॉगर वांग यिमिंग ने उम्मीद जताई है कि एक रिपब्लिकन राष्ट्रपति चीन में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए ज्यादा जोर लगाएगा.बीजिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लू बिन कहते हैं कि वह किसी के समर्थक नहीं हैं लेकिन ट्रंप की छवि एक जेंटलमैन की नहीं है और राष्ट्रपति पद पर आप ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो देश की छवि पेश करे.
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री जूली बिशप ने कहा कि सरकार तो जो बनेगा, उसके साथ काम करेगी. उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारा मुख्य सुरक्षा सहयोगी है और सबसे बड़ा विदेशी निवेशक भी.
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न्यूजीलैंड
एक बार में अमेरिकी चुनावों के नतीजे देखते वक्त 22 साल की एक स्टूडेंट सारा पेरेरा ने कहा कि वह अमेरिकी संसद में इंटर्नशिप करने जा रही हैं लेकिन ट्रंप की जीत से डर लग रहा है. इसी हफ्ते एक स्कॉलरशिप पर अमेरिका जा रही सारा कहती हैं कि ट्रंप का राष्ट्रपति बनना अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए विनाशकारी हो सकता है.
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जापान
जापान के विशेषज्ञों को लग रहा है कि अमेरिका की जापान नीति में बड़ा बदलाव हो सकता है. लेकिन सरकार ने कहा है कि वह अमेरिका-जापान रणनीतिक संबंधों की बेहतरी के लिए काम करती रहेगी.
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भारत
भारत में डॉनल्ड ट्रंप की जीत की उम्मीद की जा रही थी. वहां उन्हें बड़ी संख्या में समर्थक मिले थे. इसलिए एक तरह की खुशी देखी जा रही है. भारत के जाने माने पत्रकार प्रभु चावला ने ट्वीट किया है कि उदारवादियों ने कहा था, मोदी जीते तो देश छोड़ जाएंगे. अब वे अमेरिका भी नहीं जा सकते जो हमेशा उनका नेचुरल हैबिटैट रहा है.
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जर्मनी
जर्मनी की रक्षा मंत्री उरसुला फॉन डेअ लाएन ने कहा है कि अमेरिका का घटनाक्रम उनके लिए एक बड़ा धक्का है. अमेरिकी चुनाव नतीजों में रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप की बढ़त के बाद उनका ये बयान आया है. जर्मन टीवी चैनल एआरडी से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ट्रंप इस बात को जानते हैं कि ये वोट उनके लिए नहीं हैं, बल्कि वॉशिंगटन के खिलाफ है, वहां के प्रतिष्ठान के खिलाफ हैं."
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वहीं, कतर में रहने वाले लीबियाई मूल के एक अमेरिकी लेखक हेंद एमरी कहते हैं, "मुझे लगता है कि अरब दुनिया खुद अपने अस्तित्व के संकट के जूझ रही है. यहां लोगों के पास ये सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं है कि अगले अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियों का उन पर क्या फर्क पड़ेगा.”
लेकिन बगदाद के एक कैफे में लोग अमेरिकी चुनाव नतीजों पर गहरी नजर रखे हुए थे. वहां मौजूद 27 वर्षीय हैदर हसन बगदाद की तबाही के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को जिम्मेदार मानते हैं जिन्होंने 2003 में इराक पर हमले का आदेश दिया था. फिर भी हसन ट्रंप के समर्थक हैं. वह कहते हैं, "रिपब्लिकन शासन में इराक ने जो मुश्किलें झेली हैं, उनके बावजूद मैं ट्रप का समर्थन करता हूं, आतंकवाद के खिलाफ ट्रंप का सख्त रुख मुझे पसंद है.”
कहीं खुशी कहीं गम, देखिए
कहीं खुशी, कहीं गम
अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत किसी के लिए चमत्कार है तो किसी के लिए एक बड़ा सदमा. डॉनल्ड ट्रंप की जीत पर लोगों की प्रतिक्रिया बयान करती कुछ तस्वीरें.
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मैं तो ट्रंप के साथ हूं
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क्लिंटन का कैंप: क्या से क्या हो गया...
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उफ्फ..
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ट्रंप समर्थकों की खुशी का ठिकाना नहीं है.. वाह.. कर दिखाया..
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टूट गई उम्मीद..
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ऐसा तो नहीं सोचा था..
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नफरत के खिलाफ..
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ट्रंप की फतह
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जीत का जश्न
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लेकिन इसी कैफे में बैठे मुस्तफा अल रुबैई की राय उनसे अलग है. वो कहते हैं कि डेमोक्रैट्स कहीं ज्यादा समझदार हैं. डेमोक्रैट राष्ट्रपति ओबामा ने ही इराक से सेना हटाने का फैसला किया है. यूएई में रहने वाले विश्लेषक अब्देल खालिद अब्दुल्लाह कहते हैं कि खाड़ी देशों में ट्रंप के मुकाबले क्लिंटन को ज्यादा समर्थन हासिल था. उनके मुताबिक, "क्लिंटन को इस क्षेत्र के मुद्दों की जानकारी थी.”
हालांकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ईरान के साथ मेल-मिलाप बढ़ाने की ओबामा की नीति बिल्कुल पसंद नहीं आई. सऊदी लेखक जमाल खाशोगी कहते हैं कि क्लिंटन सऊदी अरब को लेकर कहीं स्पष्ट रुख रखती थीं लेकिन ट्रंप के बारे में कुछ कह ही नहीं सकते कि वो क्या कब क्या करेंगे?